गाड़ियां धुलने में होती जल की बर्बादी

 


जीवन की प्राथमिक आवश्यकता, जल की स्थिति हमारे देश में इतनी भयावह है कि रोंगटे खड़े हो जाते हैं। देश में जल स्रोत तेजी से घट, सख व प्रदषित हो रहे हैं। जल प्रदूषण, सूखते जल-स्रोत, प्रदूषित होती नदियां और वर्षा जल का संचयन न हो पाने की तो खूब चर्चा और विचार-विमर्श होता है लेकिन सरेआम हमारे चारों ओर पीने के मीठे पानी की बर्बादी हो रही है उस पर शायद ही किसी का ध्यान जाता हो। ये हालात तब है जब लातूर और बुंदेलखण्ड में ‘वाटर ट्रेन' का नजारा पूरा देश देख चुका है।


देश के हर छोटे-बड़े कस्बे, शहर और महानगरों में चल रहे दोपहिया और चार पहिया वाहनों के सणवस और धुलाई सेंटर पर प्रतिदिन पीने योग्य पानी का जमकर दुरूपयोग वाहन धुलाई में हो रहा है। हैरानी की बात यह है कि पीने के पानी की इस बडी बर्बादी पर कहीं कोई चिंता और चर्चा सुनाई नहीं देती है। पूरे देश में बिना किसी रोक-टोक के धड़ल्ले से वाहन धुलाई सेंटरों की गिनती बढ़ती जा रही है। इन धुलाई सेंटरों में बीस से तीन सौ रुपये में गाड़ी धोने के नाम पर हजारों लीटर पीने का मीठा पानी बर्बाद कर दिया जाता हैइस अहम मसले पर स्थानीय प्रशासन से लेकर सामाजिक संगठनों, पर्यावरणविदों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की चुप्पी हैरान करती है।


एक अनुमान के अनुसार एक आम सर्विस सेंटर में कार धुलाई पर तकरीबन 150 से 250 लीटर और दोपहिया वाहन पर 60 से 90 लीटर पानी बहाया जाता है। देश में जिस तेजी से दोपहिया और चार पहिया वाहनों की संख्या बढ़ रही है उस अनुपात में वाहन धुलाई में खर्च होने वाले पानी की मात्रा भी बढ़ती जा रही है। एक सर्विस सेंटर संचालक एक दिन में औसतन 20 से 25 बाइक और चार से पांच चार पहिया वाहन धोता है। इस लिहाज से देश भर में धुलाई सर्विस सेंटरों पर लाखों लीटर पानी रोज बर्बाद हो रहा है। सर्विस सेंटर के अलावा घरों में प्रतिदिन वाहन धोने वालों की बड़ी तादाद है, जो गाडी धुलने में अमूल्य पानी बर्बाद करते हैं। देश में व्यावसायिक वाहनों की संख्या भी लाखों में है जिनमें कारों की तुलना में चार से छह गुना अधिक पानी खर्च होता है।


विश्व बाजार में चीन के बाद आटो उद्योग देश का सबसे तेजी से बढ़ता क्षेत्र है। विश्वभर में बनने वाली प्रत्येक छठी कार भारत में बिकती है। एक अनुमान के अनुसार वर्तमान में देश में 60-70 मिलियन वाहन हैंआटोमोबाइल इंडस्ट्रीज की वाणषक बढ़ोतरी 18-20 फीसदी है। जिस गति से देश में दोपहिया, चार पहिया और व्यवसायिक वाहनों की संख्या बढ़ रही है उस हिसाब से अगले 20 वर्षों में देश में वाहनों की संख्या 400-450 मिलियन पहुंचने के आसार हैं। तस्वीर का दूसरा रूख यह है कि देश में जल संपदा बड़ी तेजी से सुख व घट रही हैपिछले दो दशकों में पानी के बढ़ते व्यवसायिक प्रयोग व अंधाधुंध दोहन से जलस्तर में तेजी से गिरावट आई है।


आमतौर पर लोगों का सोचना है कि इस धरती पर पानी का असीमित भण्डार है जो कभी खत्म नहीं हो सकताबहुत कम लोगों को पता है कि धरती पर पानी सीमित है। दुनिया में जितनी आबादी इस समय है उससे कई गुनी आबादी की प्यास बुझाने लायक मीठा पानी इस धरती पर मौजूद है लेकिन बढ़ते हुए प्रदूषण, बंजर होती भूमि, वर्षा के आसमान वितरण जैसी कई समस्याओं ने कई देशों में पानी की कमी पैदा कर दी है। पृथ्वी पर मौजूद पानी का एक प्रतिशत से भी कम पीने योग्य है, बाकी समुद्र के खारे पानी और बर्फ के रूप में जमा हुआ हैप्रतिदिन सूरज की गर्मी से करीब एक खरब टन पानी वाष्प बनकर उड़ जाता है। विश्व के कुल उपलब्ध जल में से मात्र 0.08 प्रतिशत ही पीने के लिए उपलब्ध है। मानवीय गतिविधियां कुदरत के इस अनमोल तोहफे को बुरी तरह बर्बाद कर रही हैं।


विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार एशिया और प्रशांत क्षेत्रों में प्राकृतिक संसाधनों को सबसे अधिक दोहन किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक इस शताब्दी में पूरे विश्व में पानी की कमी होगी। एक रिपोर्ट बताती है कि 2040 तक देश में पीने का पानी खत्म हो जाएगा। केन्द्र की रिपोर्ट भी कह रही है कि देश के 91 बडे जल भंडारों में सिर्फ 22 फीसदी पानी बचा है। यह कुल 34.08 अरब घन मीटर के बराबर बैठता हैहर भारतीय औसतन 90 लीटर पानी हर दिन उपयोग करता है।


देश के पूर्वोत्तर राज्यों में पेयजल की उपलब्धता गंभीर स्थिति में है। असम में शहरी आबादी में केवल 10 फीसदी और तमिलनाडु की 50 फीसदी आबादी को ही पेयजल उपलब्ध हैपेयजल की समस्या से जूझ रहे कुछ अन्य राज्यों में केरल, आंध्र प्रदेश, बिहार, गोवा बिहार, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, मेघालय, मिजोरम, मणिपुर, त्रिपुरा व सिक्किम शामिल हैंपानी की कमी के चलते देश में वाटर ट्रेन' तक चल चुकी है। देश में 2.65 लाख गांव ऐसे हैं, जिनके पास सुरक्षित पेयजल उपलब्ध नहीं हैआजादी के समय ऐसे 225 गांव थे। यदि जल की अहमियत समझनी हो तो उन लोगों से पूछो जो रात भर जागकर जल की एक एक बूंद सहेजते हैं जो लोग जल तलाश में मीलों का सफर तय करते हैं। हमारे देश की 17 फीसदी ग्रामीण महिलाएं 1 किलोमीटर से अधिक दूर से पीने का पानी ढोकर लाती हैं।


वाहन धुलाई में व्यर्थ बहने वाले मीठे जल की बर्बादी से पूरा विश्व चिंतित हैअमेरिका, आस्ट्रेलिया, स्पेन, फ्रांस, इण्डोनेशिया, जापान, मलेशिया, रोमानिया और यूएई आदि ने कानून बनाकर वाहन धुलाई में होने वाली जल की बर्बादी को रोका हैकेन्द्र शासित प्रदेश चण्डीगढ़ में स्थानीय प्रशासन ने वाहन, घर धुलाई और बागवानी पर खर्च होने वाले पानी की बर्बादी पर रोक लगाने के दिशा में कदम उठाते हुए सुबह के समय धुलाई के कार्यों पर रोक लगाने का प्रयोग किया था, जो काफी हद तक सफल रहा। दक्षिण भारत में कुछ समाजसेवी और सामाजिक संगठन वाहनों की धुलाई में खर्च होने वाले जल की हानि व उससे होने वाले जल प्रदूषण को रोकने की दिशा में कार्य कर रहे हैंलेकिन देश में व्यापक तौर पर इस दिशा में कोई बड़ा प्रयास या अभियान नहल चल रहा है। दिल्ली में पानी की किल्लत की प्रमुख वजह है वाहनों की सफाई में पानी का बर्बादीएक अनुमान के मुताबिक हमारे यहां कम से कम पांच करोड़ लीटर पानी कार, बस, टैक्सी और दो पहिया वाहनों की सफाई में बर्बाद हो जाता है जबकि अमेरिका जैसे देशों में जहां कारों की संख्या भारत की तुलना में कहीं ज्यादा है, कारों की सफाई में पानी का कम से कम इस्तेमाल होता हैराजधानी सहित देश के तमाम हिस्सों में पानी के बढ़ते संकट की बड़ी वजह पानी की बर्बादी है। वाहन धुलाई के वक्त पानी के साथ बहने वाले तेल, डीजल, ग्रीस से होने वाले जल व भूप्रदूषण की रोकथाम के लिए गंदगी निवारण संयंत्र की कोई व्यवस्था गिने चुने सर्विस सेंटरों पर ही उपलब्ध है। गली-मोहल्ले में खुले सर्विस व धुलाई सेंटरों में गंदगी निवारण संयंत्र की बात सोचना भी बेमानी है।


विकसित देशों में वाहन धोने की उन्नत तकनीकें प्रयोग में लाई जा रही हैं। देश के चुनिदा शहरों में कम पानी के खर्च वाली धुलाई तकनीक खासकर चार पहिया वाहनों की धुलाई में इस्तेमाल हो रही है। लेकिन फिलहाल ये सुविधा गिने-चुने शहरों में काफी कम संख्या में ही उपलब्ध है। आपको जानकर हैरानी होगी कि पाइप से कार धोने में एक बार में डेढ़ सौ से दो सौ लीटर पानी खर्च होता है। जबकि बाल्टी में पानी लेकर कार साफ करें, तो महज 20 लीटर खर्च होगा। यानी हर बार आप करीब 130 लीटर से ज्यादा पानी बचा सकते हैं। लेकिन ज्यादातर लोगों को पाइप से वाहन धोना ही पसंद आता है।


इन तमाम चिंतित करने वाली खबरों के बीच कुछ सुखद खबरें में सुनने-पढ़ने में आ रही हैं। देश की एक कार निर्माता कंपनी निसान मोटर प्राइवेट लिमिटेड ने एक बड़ा काम किया है जिससे हर किसी को प्रेरणा लेने की जरूरत है। कंपनी के एडवांस फोम वाश तकनीक के सहारे पानी की खपत में 45 फीसदी की कमी आई है। फोम वाश तकनीक से बीते चार सालों में निसान ने भारत में स्थित अपने सर्विस सेंटरों पर लगभग 61 लाख लीटर पानी की बचत की है। कम्पनी के सर्विस सेंटर पर जिस पुरानी तकनीक से कार की धुलाई होती थी, उसमें एक कार को धोने में लगभग 160 लीटर पानी बर्बाद होता था। वर्ष 2014 में कम्पनी ने नयी तकनीक से वाहन धुलाई शुरू की। इससे एक कार को धोने में सिर्फ 95 लीटर पानी खर्च होता है। पिछले चार वर्षों में जितना पानी अब तक कंपनी ने बचाया है उससे लगभग 25 हजार घरों को एक दिन पानी की आपूर्ति की जा सकती हैनिसान की भांति अन्य वाहन उद्योग से जुड़ी कम्पनियों को कम पानी खर्च वाली तकनीक को अपनाना चाहिए।


जल संरक्षण के लिए लाखों-करोड़ों के विज्ञापन जारी करने वाले सरकारी अमले का ध्यान जल की इस बडी बर्बादी की ओर अभी तक क्यों नहीं गया है, यह बात समझ से परे है। यह बात भी दीगर है कि सर्विस सेंटरों व धुलाई सेंटरों में वाहन धुलाई के नाम पर जल की बर्बादी को रोकने के लिए कोई नियम या कानून देश में नहीं हैसरकारी अमले की सुस्ती, लापरवाही और कानून के प्रभावी न होने के कारण हर दिन देशभर में हजारों सर्विस व धुलाई सेंटर और आम आदमी बड़ी बेरहमी से साफ और मीठे पानी को वाहन धोने में बर्बाद कर रहे हैं। पानी की इस बर्बादी को रोकने के लिए सरकारी मशीनरी के साथ, नागरिकों व सामाजिक संगठनों को तत्काल गंभीर कदम उठाने होंगे। पानी का बेतहाशा उपभोग लाखों देशवासियों के लिए कितना बड़ा संकट पैदा कर रहा है यह शायद ही कोई सोचता हो। पानी की ऐसी कमी के बावजूद कारों की धुलाई में साफ पानी की बरबादी क्या किसी के दिल में चुभती है?


जन पूर्वांचल , मार्च 2018