जल संरक्षण के प्रति क्यों हम लापरवाह हैं


जल की उपलब्धता को लेकर वर्तमान में भारत ही नहीं अपितु समूचा विश्व चिन्तित है। जल ही जीवन है। जल के बिना सृष्टि की कल्पना नहीं की जा सकती। मानव का अस्तित्व जल पर निर्भर करता है। पृथ्वी पर कुल जल का अढ़ाई प्रतिशत भाग ही पीने के योग्य हैइनमें से 89 प्रतिशत पानी कृषि कार्यों एवं 6 प्रतिशत पानी उद्योग कार्यों पर खर्च हो जाता है। शेष 5 प्रतिशत पानी ही पेयजल पर खर्च होता हैयही जल हमारी जिन्दगानी को संवारता है। विश्व जल दिवस हर वर्ष 22 मार्च को मनाया जाता है। आज विश्व में जल का संकट सर्वत्र व्याप्त है। विश्व में चहुंमुखी विकास का दिग्दर्शन हो रहा है। किंतु स्वच्छ जल मिल पाना कठिन हो रहा है। विश्व भर में साफ जल की अनुपलब्धता के चलते ही जल जनित रोग महामारी का रूप ले रहे हैं। इंसान जल की महत्ता को लगातार भूलता गया और उसे बर्बाद करता रहा, जिसके फलस्वरूप आज जल संकट सबके सामने है। विश्व के हर नागरिक को पानी की महत्ता से अवगत कराने के लिए ही संयुक्त राष्ट्र ने विश्व जल दिवस मनाने की शुरुआत की थी। जल संरक्षण दिवस जल के प्रति चेतना और जागरूकता पैदा करने का महत्वपूर्ण अवसर है, परंतु यह तभी सार्थक हो सकता है जब हम जल के संरक्षण का असली महत्व समझकर उसे अपने जीवन में शामिल करेंजल के बिना जीवन की कल्पना विडंबना है। देश के कई हिस्सों में अभी से जबरदस्त जल संकट गहरा गया है। जनसंख्या के भारी विस्फोट के साथ कल-कारखाने, औद्योगिकीकरण और पशुपालन को बढ़ावा दिया गया, उस अनुपात में जल संरक्षण की ओर ध्यान नहीं गया, जिस कारण आज गिरता जल स्तर बेहद चिंता का कारण बना हुआ है। एक रपट में बताया गया है कि दुनिया में करीब पौने 2 अरब लोगों को शुद्ध पानी नहीं मिल पातापृथ्वी के इस जलमण्डल का 97.5 प्रतिशत भाग समुद्रों में खारे जल के रूप में है और केवल 2.4 प्रतिशत ही मीठा पानी है।


यूएचओ के अनुसार, भारत में लगभग सत्तानवे लाख लोगों को पीने के पानी के स्वच्छ स्रोत प्राप्त नहीं हैं यदि यह आंकड़ा सही है तो यह हमारे लिए बेहद दुखदाई और कष्टकारी है। धरती प्यासी है और जल प्रबंधन के लिए कोई ठोस प्रभावी नीति नहीं होने से हालात बद से बदतर होते जा रहे हैंआंकड़े बताते हैं कि पृथ्वी का 70 फीसदी हिस्सा पानी से लबालब है लेकिन इसमें पीने लायक अर्थात मीठा पानी केवल 40 घन किलोलीटर ही हैधरती पर जीवन का सबसे जरूरी स्रोत जल है क्योंकि हमें जीवन के सभी कार्यों को निष्पादित करने के लिये जल की आवश्यकता है जैसे पीने, भोजन बनाने, नहाने, कपडा धोने, फसल पैदा करने, कल कारखानों आदि के लिये। बिना इसको प्रदूषित किये भविष्य की पीढ़ी के लिये जल की उचित आपूर्ति के लिये हमें पानी को बचाने की जरूरत हैहमें पानी की बर्बादी को रोकना चाहिये, जल का उपयोग सही ढंग से करें तथा पानी की गुणवत्ता को बनाए रखें।


जल जीवन का सबसे आवश्यक घटक है और जीविका के लिए महत्वपूर्ण है। यह समुद्र, नदी, तालाब, पोखर, कुआं, नहर इत्यादि में पाया जाता है। हमारे दैनिक जीवन में जल का बहुत महत्व है। हमारा जीवन तो इसी पर निर्भर है। यह पाचन कार्य करने के लिए शरीर में मदद करता है और हमारे शरीर के तापमान को नियंत्रित करता है। यह हमारी धरती के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यह हमारे जीवन की गुणवत्ता निर्धारित करने में महत्वपूर्ण घटक है औ वनस्पति एवं प्राणियों के जीवन का आधार है उसी से हम मनष्यों, पशुओं एवं वक्षों को जीवन का देश कहा जाता है। पहले जमाने में गंगाजल वर्षों तक बोतलों, डिब्बों में बन्द रहने पर भी खराब नहीं हुआ करता था, परन्तु आज जल-प्रदूषण के कारण अनेक स्थानों पर गंगा-यमुना जैसी नदियों का जल भी छूने को जी नहीं करता। हमें इस जल को स्वच्छ करना है एवं भविष्य में इसे प्रदूषित होने से बचाना है।


राजस्थान भारत के सबसे बड़े राज्य होने के गौरव से सम्मानित है वहीं भौगोलिक स्थिति फलस्वरूप इसे सीमित एवं न्यूनतम जलस्त्रोत विरासत में प्राप्त है। इस राज्य का क्षेत्रफल 3.42 लाख वर्ग किलोमीटर है जो देश के क्षेत्रफल का लगभग 10 प्रतिशत है। प्रदेश में उपलब्ध जल स्त्रोत देश के कुल स्त्रोतों के एक प्रतिशत से भी कम हैं। प्रदेश में भूजल का स्तर तेजी से नीचे गिरता जा रहा है। कुएं, तालाब, बोरवेल सूखते जा रहे हैं। जहां 1984 में 237 में से 135 ब्लॉक्स सेफ थे, वहीं 2004 में 35 ब्लॉक्स और 201516 में सेफ ब्लॉक्स की संख्या घटकर केवल 25 ही रह गई है। हम 200 प्रतिशत भूजल का दोहन करते हैं तो केवल 2 प्रतिशत ही पुनर्भरण कर पाते हैं। राजस्थान भौगोलिक क्षेत्रफल की दृष्टि से देश का सबसे बड़ा राज्य है। हमारी आबादी देश की आबादी की 5.5 प्रतिशत है। राज्य का सतही जल संसाधन 1.16 प्रतिशत है। यहाँ गर्मी में सामान्य आदमी आवश्यक सुविधाओं के लिए त्रस्त हो जाता है। यहां पानी के स्रोत भू-गर्भ अथवा वर्षा जल है। प्रदेश में स्थाई नदियों का अभाव है। ऐसे में वर्षा जल अथवा भू-गर्भ के जल पर हमारे जीवन की सांस अटकी हुई हैगर्मी का प्रकोप बढ़ने के साथ ही जल संकट भी बढ़ने लग जाता है। इस मौसम में जल के उपभोग की मात्रा बढ़ जाती है। पीने के पानी से लेकर नहाने तक जल की मात्रा में वृद्धि होने से जल संकट उपस्थित हो जाता है। सरकार को जनता में जागरूकता लाने के लिए विशेष प्रबन्ध और उपाय करने होंगे। करोड़ों रूपयों की धनराशि जल प्रबन्धन पर प्रतिवर्ष व्यय की जा रही है। आम आदमी को जल संरक्षण एवं समझाइश के माध्यम से पानी की बचत का सन्देश देना होगा। वर्षा की अनियमितता और भूजल दोहन के कारण भी पेयजल संकट का सामना करना पड़ रहा है। आवश्यकता इस बात की है कि हम जल के महत्व को समझे और एक-एक बूंद पानी का संरक्षण करें तभी लोगों की प्यास बुझाई जा सकेगी।


मौजूदा समय में हमारा पर्यावरण जिन प्रमुख समस्याओं से जूझ रहा है, उसमें अथाह रूप से विद्यमान जल संपदा की मात्रा तथा गुणवत्ता में निरंतर ह्रास का होना भी प्रमुखता से शामिल है। चूंकि, जल को इंसानी जीवन के आधार के रूप में देखा जाता है, इसलिए उसकी निर्ममतापूर्वक बर्बादी तथा उसके प्रति सततपोषणीय दृष्टिकोण के न अपनाये जाने के कारण डा हिस्सा जल से जड़े विभिन्न संकटों का सामना कर रहा है। हालांकि, ऐसा नहीं है कि प्रभावित जनसंख्या को जल संसाधन के प्रति अपने उदासीन रवैये का आभास नहीं है। बिल्कुल है, पर वे इस दिशा में किसी भी तरह के सुधार न लाने को आदतन विवश हैं। दरअसल, जल संरक्षण के प्रति नागरिकों की असंवेदनशीलता ही शुद्ध पेयजल को इंसान की पहुंच से दूर कर रही हैहम सबको पता है और बाकायदा छोटी उम्र से ही हम सुनते आ रहे हैं कि ‘जल है तो कल है', बावजूद इसके जल की बूंदों को बेवजह बर्बाद करने का सिलसिला हर स्तर पर बदस्तूर जारी है। यह जानते हुए भी कि पृथ्वी पर 71 फीसदी जल की उपलब्धता के बावजूद उसका अल्पांश यानी मात्र 3 फीसदी हिस्सा ही पीने योग्य है। दूसरी तरफ, यह भी देखा जाता है कि समाज के एक वर्ग विशेष के बीच गर्मी के आगमन के साथ ही जल संरक्षण से संबंधित बातों पर चिं लेकिन, जैसे ही स्थिति सामान्य होती जाती है, हम भूल जाते हैं कि बहुमूल्य जल के प्रति हमारी क्या जिम्मेदारियां हैं।


हालांकि, यह भूलना कठिनाई भरा होगा कि जानलेवा तपिश और पेयजल संकट के लिहाज से बीता वर्ष 2016 भारतीयों के लिए काफी दुखदायी रहा था। पिछले साल गर्मी के मौसम में देश के एक दर्जन से अधिक राज्य सूखे की चपेट में आ गए थे। सबसे बुरी स्थिति महाराष्ट्र के लातूर, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की संयुक्त सीमा पर स्थित बुंदेलखंड की रही, जहां गर्मी और सूखे ने जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया था। तब, देश के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले लोगों के लिए शुद्ध पानी की उपलब्धता सुनिश्चित कराना प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हुई थी। यहां तक कि रेलवे के माध्यम से जल भेजने का प्रयास भी नाकाफी साबित हुआ था। गत वर्ष के सूखे ने किसानों की फसलों के एक बड़े हिस्से को बर्बाद कर दिया थाआलम यह था कि देश की एक चौथाई यानी करीबन 33 करोड़ आबादी सूखे की भायंकर चपेट में आकर शुद्ध पेयजल के लिए तरस गई थी। पानी के लिए लोगों को मारामारी देखकर लग रहा था कि आने वाले समय में लोग इसकी एक-एक बूंद का सदुपयोग करेंगेलेकिन नहीं, रात गई बात गई' की तर्ज पर गर्मी का सितम खत्म होते ही हम इस अमूल्य संसाधन के प्रति अपनी जिम्मेदारी से इतिश्री समझने लगे। गर्मी खत्म होने के उपरांत मुश्किल से ही देश के किसी कोने में जल-संरक्षण से संबंधित किसी प्रकार के जागरूकता कार्यक्रम देखने को मिले हों। अगर ईमानदारी से कहा जाए, तो जल संरक्षण के प्रति हम सभी लापरवाह हैं। जल सृष्टि के निर्माण का आधार है। जल के बिना बेहतर कल की कल्पना नहीं की जा सकती। लेकिन, वहीं दूसरी तरफ नगरीकरण और औद्योगीकरण की तीव्र रफ्तार, बढ़ता प्रदूषण तथा जनसंख्या में विस्फोटक वृद्धि के साथ प्रत्येक व्यक्ति के लिए पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित करना प्रशासन व समाज के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हुई है। विभिन्न संस्थाओं की रिपोर्टों पर गौर करें, तो वैश्विक तापमान में निरंतर होती वृद्धि और घटते भूजल स्तर से आने वाले पांच-दस सालों में उत्पन्न स्थिति बेकाबू होने वाली है। भारत भी जल संकट की ओर तेजी से बढ़ता जा रहा है और बाकायदा इसके आसार दिखाई भी देने लगे हैं। लोगों की प्यास बुझाने वाली नदियां, ताल-तलैया, एवं जल के अन्य स्रोत स्वयं ही प्यासे होते जा रहे हैं। इधर, संयुक्त राष्ट्र ने भी इस बात पर मुहर लगा दी है कि वर्ष 2025 तक भारत में जल-त्रासदी उत्पन्न होगी। ऐसे में, जल संरक्षण के आसान तरीकों को अपना कर असमय दस्तक दे रहे इस आपदा से जूझने की तैयारी कर उसके प्रभावों को कम से कम करने का प्रयास किया जाना ही मानवता के हित में है।


विडंबना यह है कि जल संरक्षण के तमाम तरीके केवल कागजों पर ही सिमट कर रह गए हैंशुद्ध पेयजल की अनुपलब्धता और संबंधित ढेरों समस्याओं को जानने के बावजूद आज भी देश की बड़ी आबादी जल संरक्षण के प्रति सचेत नहीं है। जहां, लोगों को मुश्किल से पानी मिलता है, वहां लोग जल की महत्ता को समझ रहे हैं, लेकिन जिसे अबाध व बिना किसी परेशानी के जल मिल रहा है, वे ही इसके प्रति बेपरवाह नजर आ रहे हैंगर्मी के दिनों में जल संकट की खबरें लोगों को काफी पीड़ा प्रदान करती हैं और हालात यह हो जाते हैं कि जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा पानी की बूंद-बूंद के लिए तरस रहा होता है। सिर्फ यही नहीं, मानव के साथ-साथ पशु-पक्षियों के लिए भी वैसा समय काफीकष्टकर हो जाता है। कभी-कभी हालात इतने भयावह हो जाते हैं कि पेयजल उपलब्ध कराते समय कानून और प्रशासन की मदद लेनी पड़ती है। गत वर्ष, हमने देखा था कि पेयजल संकट से जूझ रहे महाराष्ट्र के लातूर क्षेत्र में मचे हाहाकार के बीच टैंकर से जल उपलब्ध कराते समय धारा 144 लगाने की जरूरत आ पड़ी थीविगत कुछ वर्षों में नदी, तालाब, कुंआ सहित चापानल के जलस्तर में बड़े अंतर की गिरावट देखी गयी है। इसकी पुष्टि इस तथ्य से होती है कि एक दशक पहले चापानल हेतु केवल 50 से 60 फीट की खुदाई से पानी प्राप्त हो जाता था, लेकिन आज 150 से 200 फीट की खुदाई के बाद भी पानी का स्रोत बमुश्किल ही मिलता है। पेयजल के असमान वितरण के कारण हमारे देश के कुछ हिस्सों में लोगों को दूषित जल पीने की विवशता भी है। प्रदूषित जल में आर्सेनिक, लोहांस आदि की मात्रा अधिक होती है, जिसे पीने से तमाम तरह की स्वास्थ्य संबंधी व्याधियां उत्पन्न हो जाती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अध्ययन के अनुसार दुनिया भर में 86 फीसदी से अधिक बीमारियों का कारण असुरक्षित व दूषित पेयजल है। जबकि, विश्व में 1.10 अरब लोग दूषित पेयजल पीने को मजबूर हैं और साफ पानी के बगैर अपना गुजारा कर रहे हैं। जल संकट से संबंधित भयावह दृश्य मीडिया जगत में समय-समय पर प्रसारित होते रहते हैं, जो हमें बताने की कोशिश करते हैं कि जल की बूंदों को सहेजने की बजाय उसे बेवजह बर्बाद करने से भविष्य में किस तरह की त्रासदी उत्पन्न हो सकती है। वैज्ञानिकों व विद्वानों का एक तबका तो अभी से ही मान रहा है कि अगला विश्व युद्ध जल के लिए ही होगा, क्योंकि वर्तमान समय में विश्व के अनेक देश पेयजल संकट से जूझ रहे हैं। संकट की यही स्थिति, दो देशों या दो राज्यों के बीच एक-दूसरे से टकराव का कारण बन रही है। गौरतलब है कि कावेरी नदी जल मुद्दे पर तमिलनाडु और कर्नाटक राज्य कई हिंसक घटनाओं का गवाह बन चुके हैं।


दूसरी तरफ, सिंधु जल समझौते पर अभी भी दो पड़ोसी मुल्क भारत व पाकिस्तान के बीच रार है। इसके अलावा, बोलीविया, उरुग्वे, फिलीपींस, कोलंबिया और जकार्ता जैसे देशों में पानी को लेकर बड़े-बड़े प्रदर्शन होते रहते हैं। शुद्ध पेयजल के अभाव के कारण बोतलबंद पानी का व्यापार भी धड़ल्ले से चल रहा है। उपभोक्ताओं की आवश्यकता और मजबूरी का फायदा उठाकर प्यूरीफाइड जल की जगह नकली बोतलबंद पानी भी खूब बेचे जा रहे हैं और यकीनन बिक भी रहे हैं। दुर्भाग्य यह है कि सब कुछ जानने-समझने के बाद भी लोग जल संसाधन के संरक्षण के प्रति अपनी निष्क्रियता का परिचय दे रहे हैंआज भी, शहरों में फर्श चमकाने, गाडी धोने और गैर-जरूरी कार्यों में पानी को निर्ममतापूर्वक बहाया जाता है। पढ़े-लिखे लोगों से आशा की जाती है कि कम-से-कम वे इस संदर्भ में समाज में एक मानक स्थापित करें, लेकिन विडंबना यह है कि वे ही अपने दायित्वों से बेपरवाह नजर आते हैं। दुख तो इस बात का भी है कि पानी का महत्व हम तभी समझते हैं, जब लंबे समय तक पानी की सप्लाई नहल होती या 15 से 20 रुपये देकर एक बोतल पानी लेने की जरूरत पड़ती हैपैसा खर्च कर पानी पीते समय, उसकी एक-एक बूंद महत्वपूर्ण लगने लगती है, लेकिन फिर यह वैचारिकी तब धूमिल पड़ने लगती है, जब पुनः हमें बड़ी मात्रा में पानी मिलने लगता है। सवाल यह है कि जल संरक्षण के प्रति हम गंभीर क्यों ग ईली है कि रात को को जरुर को संपनी अपनी गतिविधियों को नियंत्रित ग्वे क्षण के प्रति अपने आस पड़ोस के लोगों को जागरूक करें।


धनगर चेतना ,मार्च 2017