हाजमा दुरुस्त करता है अमरूद


अमरूद में कई पोषक तत्व होते हैं। सबसे बड़ी बात यह कि इसके सेवन से पाचन क्रिया दुरुस्त रहती है। अमरूद से आर्थिक कमाई भी की जा सकती है। अब तो इसका रस डिब्बा बंद करके विदेशों तक में भेजा जाता है। प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार ने भी इसकी व्यवस्था कर रखी है। अमरूद को व्यावसायिक दृष्टि से लगाने के लिए मई के महीने से ही तैयारियां करनी पड़ती हैं। अमरूद का बाग लगाना है तो मई में उसके लिए गड्ढे खोदने पड़ते हैं। उद्यान विभाग के विशेषज्ञों का मानना है कि गर्मी बढ़ने की वजह से बागवान अमरूद का बाग लगाने के लिए मई में गड्ढों की खोदाई अवश्य कर लें। इसके बाद 15 दिन के अंतराल पर पौधारोपड़ करना ठीक रहेगा। सिंचाई का साधन अवश्य होना चाहिए। उत्तर प्रदेश के उद्यान विशेषज्ञ शरद चौधरी ने इस संबंध में कई जानकारियां दी हैंबागवानों के लिए ये जानकारियां काफी लाभदायक रहेंगी।


श्री चौधरी ने बताया कि अमरूद का बाग लगाने के लिए दोमट बलुई मिट्टी काफी लाभदायक रहती है। बागवान जहां अमरूद का बाग लगाना चाहते हैं, वहां पहले जुताई कर खेत को समतल कर लें। जुताई इस प्रकार करें कि खेत के खरपतवार नष्ट हो जाएं। इसके बाद पौधे लगाने के लिए गड्ढे बनाएं। एक पौध से दूसरे पौध की दूरी लगभग तीन मीटर होनी चाहिएइस प्रकार एक हेक्टेयर में लगभग 11 सौ अमरूद के पौधे लगाए जा सकेंगे। गड्ढा खोदते समय ध्यन रखें कि इनकी लम्बाई, चौड़ाई और गहराई लगभग 50 सेमी. होनी चाहिएहालांकि सभी प्रकार की भूमि पर पैदा होने वाला अमरूद का वृक्ष कठोर प्रवृत्ति का होता हैअमरूद का फल विटामिन सी एवं अन्य पोषक तत्वों से भरपूर होता है। इसके लिए गर्म एवं शुष्क जलवायु उपयुक्त है।


अमरूद की प्रमुख किस्में हैं- इलाहाबादी सफेदा, लखनऊ 49 श्वेता, ललित, एपल कलर (सुर्ख) और रेड फ्लेश्ड (लाल गूदा वादा अमरूद) अमरूद की बाग लगाने के लिए खाद और उर्वरक का भी ध्यान रखना पड़ता है। सभी राज्यों में कृषि अधि किारी अथवा उद्यान अधिकारी इसके बारे में जानकारी देते हैंफलों और सब्जियों की खेती के लिए सरकार की तरफ से अनुदान भी दिया जाता है। ग्राम विकास अधिकारी और लेखपाल से भी इसके बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है। अमरूद के पौधों को लगाने से लगभग 6 वर्ष तक खाद देने की जरूरत पड़ती है और खाद देने के साथ ही उनकी सिंचाई की भी व्यवस्था करनी पड़ती हैअमरूद का पौधा जब एक वर्ष का हो जाए तो उसे 10 कि. ग्राम गोबर की खाद, 60 ग्राम नत्रजन, 30 ग्राम फास्फोरस और 60 ग्राम पोटाश देने की जरूरत होती है। यह मात्रा धीरे-धीरे पौधे की उम्र के साथ बढ़ती रहती है। दो साल के पौधे को 20 कि.ग्राम गोबर की खाद, 120 ग्राम नत्रजन, 60 ग्राम फास्फोरस और 120 ग्राम पोटाश की जरूरत पड़ती हैइस प्रकार 6 या उसके अधिक साल के पेड़ को 60 कि.ग्राम गोबर की खाद, 360 ग्राम नत्रजन, 180 ग्राम फास्फोरस और 360 ग्राम पोटाश देने से उसमें फलन की भरपूर क्षमता पैदा होती है। अमरूद का बाग लगाने के लिए किसी विश्वसनीय पंजीकृत पौधशाला से स्वस्थ एवं उपयुक्त कलमी पौधे लेने चाहिए जो भेट कलम, पैच वडिंग, स्टूलिंग अथवा क्लेफ्ट चश्माविधि से तैयार किये गये हों। इन पौधशालाओं से कलम लगाने की विधि भी सीख सकते है और फिर अपने बाग में कई प्रकार के अमरूद पैदा करना संभव हो सकता हैपौध रोपड़ का सही समय जुलाई अथवा अगस्त का महीना होता है लेकिन खेत की तैयारी अर्थात् गड्ढा आदि बनाने का कार्य मई से ही प्रारम्भ हो जाता है। इन गड्ढों में 20 से 25 कि.ग्राम गोबर की सडी खाद भर दें। गड्ढे के ऊपरी सतह की मिः नीम की खली तथा 50 ग्राम मिथाइल पैराथियान धूल प्रति गड्ढे में भर दें। नीम की खली जून महीने में आसानी से मिल जाती है। पानी बरसते ही इन गड्ढों में अमरूद के पौधे लगा दें।


अमरूद के पौधे लगाने के बाद यदि पर्याप्त बारिश नहीं हो रही है तो सिंचाई का प्रबंध करते रहना चाहिए। इसके बाद शरद ऋतु में 15 से 20 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहेंगर्मी में तो प्रति सप्ताह सिंचाई भाला बनाकर करनी पडेगी, वरना पेड़ सूखने लगेंगे। अमरूद के तने के पास बड़ी संख्या में सकर्स निकलते हैं, इनको निराई-गुड़ाई कर निकालते रहना चाहिए। पौधों की कटाई-छंटाई भी जरूरी होती है। अमरूद के पेड़ में फल लगने लगे तो कीटों से भी सावधान हो जाना चाहिए वरना पूरी मेहनत व्यर्थ चली जाएगी। अमरूद में फल मक्खी, छाल खाने वाली इल्ली, फल बेधक और मिली बग जैसे कीट आक्रमण करते रहते हैं। इसके लिए सबसे पहले कीटों से प्रभावित फलों को नष्ट कर दें। फल मक्खी को नष्ट करने के लिए सावधानी से वाग की जुताई कर दें। पेड़ों की जड़ों को नुकसान न पहुंचे। इसके साथ ही एक मिली लीटर मिथाइल यूजीनाल के साथ 2 मिली लीटर मैलाथियान एक लीटर पानी में मिलाकर घोल बनाएं। इस घोल को चौडे मुंह वाले बर्तन में भरकर जगह-जगह बाग में लटका दें। ध्यान रहे कि इस घोल का फलों पर छिडकाव नहीं करना है। इस प्रकार अमरूद के बाग से सुन्दर और स्वादिष्ट फल प्राप्त होने लगेंगेफल अच्छे होंगे तो बाजार में उनकी कीमत भी अधिक मिलेगीबड़े स्तर पर अमरूद की बागवानी की गयी है तो उसके फलों को और उसके डिब्बा बंद रस को देश के दूरदराज के क्षेत्रों और विदेश में भी भेजा जा सकता है। उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में इसी उद्देश्य से पैकिंग हाउस बनाए गये हैं। इन पैकिंग हाउस से फल, सब्जियां और डिब्बा बंट जूस निर्यात किया जाता हैअमरूद की इलाहाबादी व लखनऊ सफेदा प्रजाति तथा अन्य राज्यों के अमरूद भी काफी स्वादिष्ट माने गये हैं। इस प्रकार की बागवानी से किसानों को अतिरिक्त आमदनी का स्रोत मिल सकता है। खाद्यान्न के साथ फल और सब्जी की खेती को बड़ी संख्या में किसान अपना भी रहे हैं।


धनगर चेतना, अप्रैल-मई 2016