राष्‍ट्रपति कोविंद द्वारा राजगीर में विश्‍व शांति स्‍तूप स्‍वर्ण जयंती स्‍मारक समारोह का संबोधन



  1. इस प्राचीन बौद्ध स्थल पर निर्मित विश्व शांति स्तूप की स्वर्ण जयंती के शुभ अवसर पर यहां आकर मुझे अत्यंत प्रसन्नता हो रही है। मैं इस समारोह में बिहार सरकार, राजगीर बुद्ध विहार सोसायटी, निप्पोनज़न म्योहोजी के अनुयायियों और अति सम्मानित फ़ूजी गुरुजी के शिष्यों को बधाई देता हूं। मैं एशिया, यूरोप, अमेरिका और विशेष रूप से जापान के विभिन्न हिस्सों से आए प्रतिनिधियों की विशेष रूप से प्रशंसा करता हूं  जिन्होंने सालगिरह के अवसर पर इस पवित्र स्थल की यात्रा की है। आप सभी विश्व शांति के राजदूत हैं।

  2. मैं रत्नागिरि पहाड़ी पर खड़ा हुआ अपने आप को भाग्यशाली समझता हूं। इस पहाड़ी के सामने वल्चर चोटी है। जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां से  भगवान बुद्ध ने सात वर्षों तक कमल सूत्र का उपदेश दिया था। मुझे  बिहार के राज्यपाल के रूप में 2015 और 2016 में वर्षगांठ समारोह में शामिल होने का सौभाग्य मिला था। मैं राजगीर बुद्ध विहार सोसाइटी का मुख्य संरक्षक भी था। मैं 'धर्म-धम्म पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन' का उद्घाटन करने के लिए वर्ष 2018 में राजगीर आया था। भगवान बुद्ध के पसंदीदा निवासों में से एक राजगीर की हर यात्रा में मुझे विशेष आनंद प्राप्त हुआ है।

  3. हम आध्यात्मिक क्रांतियों की इस पवित्र भूमि में इकट्ठे हुए हैं जिसने समाजों का स्वरूप बदल दिया है। बोधगया, राजगीर, पाटलिपुत्र और नालंदा इन परिवर्तनों के जन्म स्थान हैं। ये परिवर्तन कई शताब्दी पूर्व हुए थे और दुनिया भर में फैले थे। इस स्थान से कुछ ही दूर बोधगया में भगवान बुद्ध ने एक पेड़ के नीचे आत्मज्ञान प्राप्त किया था। जैन धर्म और हिंदू धर्म ने इस क्षेत्र में गहरी जड़ें जमा ली थीं जो प्राचीन काल से हमारे देश की आश्चर्य़जनक विविधता को दर्शाती हैं।

  4. विश्‍व शांति स्‍तूप एकता, शांति और अहिंसा का प्रतीक है। इसके संदेशों में संस्‍कृतियों, धर्मों और भूगोल से ऊपर उठकर सार्वभौमिक गूंज है। इसमें शांति प्रेमी लोकतंत्रों जापान और भारत के बीच स्‍थायी साझेदारी और विस्‍तृत सहयोग झलकता है। यह समारोह ऐसे समय पर हो रहा है जब क्‍योतो-काशी भावना के भीतर हमारे देशों के बीच आपसी सहयोग बढ़ रहा है।


 


देवियो और सज्जनो,



  1. पूर्व राष्‍ट्रपति स्‍वर्गीय डा. एस. राधाकृष्‍णन ने 1965 में इस स्‍तूप की आधारशिला रखी थी। इसका उद्धाटन एक अन्‍य पूर्व राष्‍ट्रपति स्‍वर्गीय वी.वी. गिरी ने गांधी शताब्‍दी वर्ष 1969 में किया। जैसाकि हम सभी जानते हैं, महात्‍मा गांधी ने प्रेम और करूणा से भरे महा-कारूणिक बुद्ध के आदर्शों का अनुसरण किया। गांधीवादी लोकाचार में बुद्ध की शिक्षाओं की झलक मिलती है। मुझे खुशी है कि महात्‍मा गांधी की 150वीं जयंती के इस महीने में, हम विश्‍व शांति स्‍तूप के 50 वर्ष पूरे होने पर एकत्र हुए हैं। अत: स्‍तूप की स्‍वर्ण जयंती पर हम आधुनिक विश्‍व में शांति के महान मसीहा को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

  2. यह सर्वविदित है कि फूजी गुरूजी ने विश्‍व में शांति स्‍तूपों के निर्माण का विचार रखा था। यह आकर्षक स्‍तूप मुख्य रूप से फूजी गुरुजी के अथक प्रयासों और प्रसिद्ध बौद्ध वास्तुकार और कलाकार उपेंद्र महारथी के बेहतरीन काम का परिणाम है। फूजी गुरुजी गांधीजी से मिले और वर्धा आश्रम में भी रहे। गांधीजी और गुरुजी अहिंसा और शांति को बढ़ावा देने के एक सामान्य लक्ष्य से बंधी हुई दो महान आत्माएं थे। गाँधी जी पर जापान के निशिरेन बौद्ध धर्म का ऐसा प्रभाव पड़ा कि उन्होंने 'नम यो हो रेंगे क्‍यो' जपना सीखा और उनके प्रार्थना सत्र की शुरुआत इसी से शुरू होती थी। मैं अभी जापान की यात्रा से लौटा हूं। यात्रा के दौरान, 21 अक्टूबर को, मैं फ़ूजी गुरुजी द्वारा स्थापित गोटेम्बा पीस फाउंडेशन के एक प्रतिनिधिमंडल से भी मिला।

  3. मुझे लगभग 45 साल पहले फ़ूजी गुरुजी से मिलने का सौभाग्य मिला था। मुझे आज भी वह शाम याद है, शायद वह वर्ष 1974 था, जब उन्होंने स्वर्गीय मोरारजी देसाई के नई दिल्ली आवास में प्रवेश किया था। वे अपने शिष्यों के संग मंत्रोच्चार करते और बाजे-गाजे के साथ पधारे थे और मोरारजी भाई ने हाथ जोड़कर उनका स्वागत किया था। बौद्ध भिक्षु फ़ूजी गुरुजी और सनातन धर्म के अनुयायी तथा हिन्दू जीवन शैली का पालन करने वाले मोरारजी देसाई विश्व शांति के अपने साझा आध्यात्मिक उद्देश्य के आधार पर एक-दूसरे से बंधे हुए थे। मुझे मोरारजी देसाई के साथ काम करने का सौभाग्य मिला है, जो 1977 से 1979 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे।


 


देवियो और सज्जनो,


 



  1. हमारे लोकतंत्र पर बौद्ध आदर्शों और प्रतीकों का गहरा और व्यापक प्रभाव है। हमने अशोक की लाट को अपने राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में अपनाया है। हमारी संसद के निचले सदन में, जिसे लोकसभा कहा जाता है, अध्यक्ष की कुर्सी के ऊपर "धर्म चक्र परावर्तन" शब्द अंकित हैं, जिसका अर्थ, 'धम्म या सत्यनिष्ठा के चक्र को गति देना' है। हमारे संविधान के मुख्य प्रणेता डॉ. भीमराव अंबेडकर ने यह तत्व उजागर किया है कि हमारा संसदीय लोकतंत्र प्राचीन बौद्ध संघों का ऋणी है।


 



  1. प्राचीन काल में बुद्ध के अनुयायियों ने एशिया के अधिकांश हिस्सों में बुद्ध के संदेश को फैलाया था। बुद्ध के संदेश से ही वैश्वीकरण की शुरूआती लहर अस्तित्व में आई थी। बुद्ध के अष्टांग मार्ग ने न केवल विश्व के आध्यात्मिक परिदृश्य को बदला, बल्कि नैतिक और सतत् सामाजिक, राजनीतिक तथा वाणिज्यिक व्यवहारों को भी प्रोत्साहित किया। आगे चलकर बौद्ध धर्म अन्य महाद्वीपों में भी फैल गया। बौद्ध धर्म करुणा, समानता, संयम और अहिंसा पर जोर देता है, जो आधुनिक मानस को आकर्षित करता है। बुद्ध के मार्ग की बुनियादी भावना को आगे बढ़ाते हुए, महात्मा गांधी ने सभी महाद्वीपों के नेताओं और लोगों को एक विश्व आदर्श के रूप में प्रभावित किया है। भगवान बुद्ध और महात्मा गांधी ने विचारणा, कर्मणा और वाचा की एकता का प्रचार किया। उन्होंने हमें अच्छाई के लिए अपनी अंतर्निहित क्षमता प्रदर्शित की।  उनका जीवन ही उनका संदेश बन गया। बुद्ध और महात्मा गांधी की कालातीत शिक्षाओं में व्यक्ति, समुदाय, देश और पूरे विश्व के सामने आने वाली मूलभूत समस्याओं का समाधान पाया जा सकता है।


 



  1. राष्‍ट्रप‍ति ने कहा कि बुद्ध के आदर्शों के साथ बड़ी संख्‍या में लोगों को जोड़ने की आवश्‍यकता है। बुद्ध से संबधित स्‍थानों में विरासत पर्यटन को बढ़ावा देकर लोगों और विशेष रूप से युवाओं को बौद्धधर्म की मूल भावना के प्रति  आकर्षित करना एक प्रभावी तरीका हो सकता है। मुझे बताया गया है कि जापानी संस्‍थाएं बौद्ध सर्किट के विकास में सहायता प्रदान कर रही हैं। केन्‍द्रीय पर्यटन मंत्रालय और बिहार सरकार एक एकीकृत बौद्ध सर्किट प‍र्यटन विकास परियोजना पर अंतरराष्‍ट्रीय वित्‍त निगम के साथ सहयोग कर रहे हैं।  बेहतर संपर्क और सुविधाएं प्रदान करने के इन प्रयासों से पर्यटकों को गुणवत्‍ता युक्‍त सेवाएं देना जारी रखा जा सकेगा।

  2. भगवान बुद्ध ने कहा था कि, 'नाथी सांति परमसुखम' अर्थात शांति ही परमसुख है। शांति विकास की पूर्व शर्त है। बुद्ध की शिक्षाओं में मन की शांति को बाह्य शांति प्राप्‍त करने की आवश्‍यक शर्त माना गया है। आध्‍यात्मिकता, शांति और विकास एक दूसरे के पूरक हैं जबकि संघर्ष, अंशाति और कम विकास एक दूसरे की वजह हैं। गरीबी और संघर्षों की घटनाएं कम करने के लिए आज के समारोह में शामिल हर व्‍यक्ति का उद्देश्‍य शांति और सौहार्द को बढ़ावा देना होना चाहिए।

  3. बुद्ध से लेकर गांधी तक एशिया के इन प्रदीप पुंजों ने दुनिया का सही पथ प्रदर्शन किया है। मुझे पूर्ण विश्‍वास है कि उनकी शिक्षाएं हमारे लिए शांति,सौहार्द और समृद्धि से परिपूर्ण भविष्‍य का मार्ग प्रशस्‍त करेंगी।