पाक को धन देकर आर्थिक रूप से अपंग बनाना चाहता है चीन

लगता है पाकिस्तान ने जीवन भर बेचारा बने रहने की कसम खा ली है। यह नौबत आई है पाकिस्तान के शासकों के विदेशियों के पिछलग्गू बने रहने की नीति से। पाकिस्तान के मौजूदा और पूर्व शासकों ने विदेशी बैसाखियों से निजात दिलाने के बजाए स्थायी आर्थिक अपंगता की नीति धारण कर ली है। यही वजह है कि आतंकियों को लगातार प्रश्रय देने के बाद अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के आर्थिक मदद रोके जाने की घोषणा के बाद पाकिस्तान अब चीन की ओर मुंह ताक रहा है। चीन की विदेश नीति घोषित है कि पाकिस्तान की लगातार मदद करके उसे आणथक रूप से इस कदर अपाहिज बना दिया जाए कि उसकी सार्वभौमिकता और स्वविवेक खत्म हो जाए। ऐसा नहीं है कि अमरीका की मदद रोकने के बाद चीन सब कुछ मुफ्त में कर रहा है। इसके पीछे चीन की सोची-समझी चाल है। चीन पाकिस्तान को एक तरह का उपनिवेश बना कर अमरीका और भारत दोनों के प्रभाव को चुनौती देना चाहता है। यही वजह है कि जैसे ही अमरीकी राष्ट्रपति ने पाकिस्तान की मदद रोकने की घोषणा की, वैसे ही चीन ने पीठ थपथपा दी। चीन ने जिस तरह पाकिस्तान को आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई की सराहना की, उससे जाहिर है कि यदि अमरीका मदद रोकेगा तो चीन उसकी पूणत कर देगा। चीन की नीति प्रारंभ से दोस्ती की नहीं बल्कि धौंसपट्टी से दबाव बनाने की रही है। चीन वैसे भी नहीं चाहता कि पाकिस्तान अमरीका का बड़ा सहयोगी साबित हो। यही वजह है कि चीन पाकिस्तान की लगातार आर्थिक को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि इस मदद की कीमत देश को गिरवी रख कर चुकानी पड़ेगी। देश हमेशा के लिए बंधक बन जाएगा। उनका एकमात्र उद्देश्य मदद लेना है, बेशक इसके लिए जीवन भर घुटनों पर क्यों न चलना पड़े। यही वजह है कि दूसरों की पीठ पर सवार होने के कारण भारत से अलग होने के बाद भी पाकिस्तान आज तक आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर नहीं बना पाया। इसके विपरीत भारत आर्थिक मोर्चे पर बुलंदियां छू रहा है। विश्व की आर्थिक महाशक्ति बनने के लिए दस्तक दे रहा है। जबकि पाकिस्तान विदेशियों की मदद का मोहताज ही बना रहा। भारत ने भी दूसरे देशों से राजनयिक संबंध स्थापित किए, पर किसी तरह की कीमत चुकाने की एवज में नहीं। वैश्विक संतुलन और घरेलू जरूरतों के लिहाज से कुछ देशों को विशेष दर्जा भी जरूर दिया पर, आंख बंद करके किसी की नीतियों का पालन नहीं किया। इसके विपरीत पाकिस्तान प्रारंभ से ही पूरी तरह अमरीका और चीन परस्त रहा है। पाकिस्तान के शासक भारत से प्रतिस्पर्धा करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। भारत से ईष्र्या की यह आग पाकिस्तान को आर्थिक रूप से खोखला बना रही है। आतंकी अड्डों के कारण जहां विश्वभर में उसकी जमकर किरकिरी हो रही है, वहीं विदेशों में भी उसके नागरिकों को नीचा देखने को विवश होना पड़ रहा है। पाकिस्तान भारत के खिलाफ आतंकियों का । की, पर उसे पूरी चुकानी पड़ रही है। आतंक की यह आग खुद पाकिस्तान को लील रही है। आतंकी संगठन बेकाबू होते जा रहे हैं। आतंकी संगठन अब आस्तीन के सांप साबित हो रहे हैं। उनकी नजरें पाकिस्तान की सत्ता पर लगी हुई जनरल परवेज मुशर्रफ ने ऐसे संगठनों से गठबंधन करके चुनाव में उतरने का ऐलान किया है। ऐसा नहीं है कि उनके मंसूबे आसानी से कामयाब होंगे। पाकिस्तान के मतदाता दशकों से हिंसा का दंश झेल रहे हैं। भारत से पाकिस्तान का विरोध कई लिहाज से है, पर मतदाताओं के सामने जीवन की जरूरतों के दूसरे जरूरी मुद्दे भी सामने हैं। पाकिस्तान का लोकतंत्र भारत की तुलना में कमजोर जरूर है, पर इतना भी नहीं कि मतदाता आतंकियों को ही देश की कमान सौंप दें। पाकिस्तान का लोकतंत्र लंगडा जरूर है पर इतना कमजोर भी नहीं कि देश विरोधी ताकतों के सामने पूरी तरह ढह जाए। दूसरे शब्दों में कहें कि पाकिस्तान की राजनीति पूरी तरह दिशाहीन हो गई है उसके शासकों के पास राष्ट्र का कोई विजन नहीं है। आतंकवाद और कट्टरता के सामने लोकतंत्र बंदी बना हुआ है। देश के सत्तारूढ़ नेता उसे अंधकूप की तरफ धकेल रहे हैं। पाकिस्तान अपने संसाधनों और मानव श्रम का दोहन राष्ट्र निर्माण में करने की बजाए कभी अमरीका तो कभी चीन का खिलौना बना हुआ है। आश्चर्य तो यह है कि अमरीकी राष्ट्रपति की लताड़ के बावजूद पाक शासकों का आत्मसम्मान नहीं जागा। पाकिस्तान आतंकियों की नकेल कसने की बजाए चीन के नापाक समर्थन से बेशर्मी धारण किए हुए है और आतंकी गुटों की पैरवी में लगा हुआ है। चीन पहले ही संयुक्त राष्ट्रसंघ में आतंकी सरगना मसूद अजहर के पक्ष में वीटो देकर अपने मंसूबे साबित कर चुका है। चीन इससे पहले भारतीय उपमहाद्वीप में तेजी से विनिवेश को बढ़ावा देकर भारत की घेराबंदी करने का प्रयास कर रहा है। श्रीलंका, नेपाल और बंगलादेश के राजनीतिक हालात पाकिस्तान से बदतर नहीं हैं। यही वजह है कि इन देशों ने चीन का निवेश तो मंजूर किया, साथ ही यह भी ध्यान रखा कि ड्रेगन उनकी आर्थिक संप्रभुता को निगल नहीं जाए। इसके विपरीत पाकिस्तान पूरी तरह से सब कुछ लुटाने पर आमादा है। हर कीमत चुका कर भी मदद की दरकार रखता है। वह दिन दूर नहीं जब पाकिस्तान पूरी तरह चीन के कब्जे में होगा। चीन इसके जरिए न सिर्फ आर्थिक बल्कि सामरिक मंसूबे पूरे करने में लगा हुआ है। चीन और पाकिस्तान की इस मिलीभगत चाल से भारत पर तो ज्यादा असर नहीं पड़ने वाला पर पाकिस्तान जरूर तबाही के रास्ते पर चला जाएगा।