झुका हुआ आदमी


झुका हुआ आदमी


हमेशा कमजोर नहीं होता,


तब भी नहीं,


जब वो बेटी का बाप हो


या गरीबी का मारा


या बीमारियों ने जकड़ा हो,


या उम्र की सीमा पर खड़ा,


साँसें गिनने को विवश।


 


झुका हुआ आदमी


हमेशा लाचार नहीं होता।


तब भी नहीं


जब परिवार की जिम्मेदारियाँ बढ़ती ही जाएँ।


या कर्ज से मुक्ति का मार्ग न मिले,


या अनाथ शब्द के अर्थ से


बचपन से ही परिचित हो।


या किसी के कैद में हो


और दीवारें गिरा न सके।


 


झुका हुआ आदमी


हमेशा बेचारा नहीं होता


तब भी नहीं


जब वो अपनी श्रद्धा प्रकट करता हो


या ज्ञान की भूख से नतमस्तक हो,


या कृतज्ञता दर्शाए


या परोपकार की भावना उसे


आसमान देखने न दे


या सिर्फ़ जोड़ना जानता हो,


 


झुका हुआ आदमी


आदमी तब अभागा होता है,


जब विवेकहीन हो जाए


या लोभ के फंदे में कसता चला जाए,


या जन्मभूमि के मान का दीपक न बन सके


या माँ-बाप आहें भरें


या घुटने टेक दे


जीवन-संघर्ष के आगे।


या मृत घोषित हो चुकी हो


उसकी संवेदना।


 


वर्ना तो बेहद मजबूत होता है


झुका हुआ आदमी ।


तो अपनी नजर ठीक करवाओ,


पहचानो... महसूस करो


उसकी जीवटता को,


कभी सिर न उठा सकोगे


क्योंकि तुम उतने मजबूत नहीं हो,


जितना एक झुका आदमी।


 


गीता द्विवेदी