मनःस्थिति का गहरा द्वंद्व ही मनुष्य को दुर्बल एवं अशक्त बनाता है


र व्यक्ति में अपनी कोई-न-कोई विशेषता होती है। इन्हीं विशेषताओं से व्यक्तित्व बनता है और किसी भी व्यक्ति का वास्तविक परिचय उसका व्यक्तित्व ही है। श्रेष्ठ व्यक्तित्व ही मानव जीवन की असली पूंजी होती है। इसके अभाव में व्यक्ति व्यावहारिक धरातल पर अत्यंत दरिद्र होता है। सभी का बाह्य जीवन व्यावहारिक पृष्ठभूमि में पलता-बढ़ता और विकसित होता है। परिस्थिति और मनःस्थिति का गहरा द्वंद्व ही मनुष्य को दुर्बल एवं अशक्त बनाता है। मनःस्थिति पर आधारित विचारधारा कहती है कि यदि मन को समझा लिया जाए तो विकट परिस्थिति में भी सुख और संतोषपूर्वक निर्वाह किया जा सकता है। संतोष एक ऐसा औजार है जिसमें साधन का मोह नहीं सताता। जब मन स्वयं अपने में संतुष्ट एवं प्रसन्न है तब परिस्थितियों की भयावहता एवं विपन्नता हमें नहीं डिगा सकती। लेकिन इस आधुनिक युग में परिस्थिति एकदम विपरीत है। हमें जो परिस्थिति मिली है उससे हम संतुष्ट नहीं हैं। हमारी मनःस्थिति भी इतनी मजबूत नहीं कि मिले हुए परिवेश-वातावरण को सहर्ष अपना सकें। हम प्रायः साधनों के अभाव के आंसू बहाते हैं, अपने भाग्य को कोसते नजर आते हैं तथा दूसरों पर दोषारोपण कर अपनी कमजोर दुर्बल मनःस्थिति को ढकने का व्यर्थ प्रयास करते हैं। इसीलिये नोबेल विजेता रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने इस छोटे वाक्य में जीवन का सार प्रस्तुत कर दिया है कि जो दीपक को अपने पीछे रखते हैं वे अपने मार्ग में अपनी ही छाया डालते हैं ।
 मनुष्य के उन्नत व्यक्तित्व की विशेषता है कि यह जीवन में प्रगति प्रदान करती है। विश्वसनीयता इसका एक प्रमुख आधार है जिससे हमारा जीवन गतिशील व प्रगतिशील होता है। जीवन का सारा क्रियाकलाप आपसी विश्वास पर ही आधारित है। इसका प्रथम चरण है किए गए वायदों को तथा दिए हुए वचनों को पूर्णरूप से निर्वाह करना। प्रायः हम वायदे तो बड़े-बड़े करते हैं लेकिन जब निभाने का वक्त आता है तो साफ मुकर जाते हैं। जब तक हम अपनी कही हुई बातों को करके नहीं दिखाते तब तक हम पर कोई विश्वास नहीं करेगा।
जो हमें अच्छा एवं लुभावना लगता है, क्यों न हम इसे औरों को बांटने लगें। क्योंकि जो दिया जाता है वह लौटकर वापस आता है और हमें निहाल कर देता है। हमें प्रतिदिन ऐसा कुछ श्रेष्ठ कार्य करना चाहिए, जिसमें दूसरों की कुछ भलाई की भावना निहित हो। ऐसा करने से हमारा व्यक्तित्व तो उन्नत बनता ही है साथ-ही-साथ पवित्र भी बनते है ।  रामकृष्ण परमहंस ने कहा है कि जिस प्रकार मैले दर्पण में सूरज का प्रतिबिम्ब नहीं पड़ता उसी प्रकार मलिन अंतःकरण में ईश्वर के प्रकाश का प्रतिबिम्ब नहीं पड़ सकता । दूसरों के दुःख में दुःखी और सुख में सुखी का दिव्य भाव जिसके पास हो वहीं सबके हृदय में बसता है। विश्वासपात्र बनने के लिए दूसरों के निजी तथा व्यक्तिगत जीवन में कोई हस्तक्षेप नहीं किया जाता। दूसरों के व्यक्तिगत पक्ष को किसी के सामने उजागर नहीं करते, बल्कि उसका समुचित सम्मान के साथ रक्षा करते हैं। हम अपने जीवन में इन विशेषताओं का समावेश करने पर किसी के विश्वासपात्र बन सकते हैं। कबीर का कहा जीवन को सदैव प्रेरित करता है, यहां भी उनका कथन मार्मिक है जिस तरह जौहरी ही असली हीरे की पहचान कर सकता है, उसी तरह गुणी ही गुणवान् की पहचान कर सकता है।
यदि हमारे व्यवहार से औरों को कुछ कष्ट होता है तो उसके लिए विनम्रतापूर्वक क्षमायाचना कर लेनी चाहिए। यदि हम दूसरों को क्षमा नहीं कर सकते तो परमात्मा कैसे हमारी अनंत भूलों, पापों को माफ करेगा। यह मान के चलिये कि मनुष्य गलतियों का पुतला है। फिर भी दूसरों की त्रुटियां क्षम्य है, लेकिन अपनी स्वयं की गलती के लिए प्रायश्चित करना चाहिए। अपने सभी कर्मों को भगवान को समर्पित कर अपनी गलती के लिए सदैव सजग व जागरूक रहना चाहिए। यही गुणों को जीवन में विकसित करने का रास्ता है। गौतम बुद्ध ने प्रेरक कहा है कि पुष्प की सुगंध वायु के विपरीत कभी नहीं जाती लेकिन मानव के सद्गुण की महक सब ओर फैल जाती है ।
  शेक्सपीयर ने यह कहकर जीवन को नई दिशा दी है कि गहरी नदी का जल प्रवाह शांत व गंभीर होता है। ठीक उसी तरह हमारा जीवन भी शांत होना चाहिए। जीवन में सदैव विनम्र रहना चाहिए। विनम्र, सुपात्र और विश्वसनीय व्यक्ति को उचित और अनुचित का भेद होता है। वह विवेक का पक्षधर होता है। जीवन में सत्कर्म, सद्व्यवहार तथा सद्आदर्श ही सर्वोपरि है।


व्यक्ति की तीन तस्वीरें हैं-



  1. लोग उसे किस रूप में समझते हैं,

  2. वह किस रूप में जीता है,

  3. वह किस रूप में अपने आपको प्रस्तुत करता है।


इनको समन्वित रूप से अपनाने में मानव जीवन की सभी समस्याओं का एक साथ समाधान हो जाता है। प्रायः सभी का मन अत्यंत चंचल होता है। धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में अर्जुन ने कृष्ण से भी यही समस्या कही थी कि हे कृष्ण, यह मन बड़ा ही चंचल है, यह बड़ा बलवान और असंतुलित स्वभाव वाला है। महारथी अर्जुन के इस सवाल को सुनकर भगवान कृष्ण ने कहा-अर्जुन, तुम्हारे इस कथन में कोई संशय नहीं है, इस मन की चंचलता किसी भी तरह से वश में आने वाली नहीं है। इसे केवल अभ्यास और वैराग्य से ही बड़ी आसानी से वश में किया जा सकता है। हेलन केलर ने तमाम तरह की वितरित स्थितियों के बावजूद अपने व्यक्तित्व को उन्नत बनाया, न केवल उन्नत बनाया बल्कि जन-जन के लिये प्रेरक भी बनी। उन्होंने इसीलिये एक बार कहा है कि जब हम अपनी तरफ से बेहतरीन करके दिखाते हैं तो हम बिल्कुल भी नहीं जानते कि उससे हमारे जीवन में या किसी और के जीवन में क्या चमत्कार होने वाला है।
मार्क ऑरेलियस अन्तोनियस का कहा जीवन को नई दिशा देता है कि आपके जीवन की खुशी आपके विचारों की गुणवत्ता पर निर्भर करती है। यही कारण है कि मानव व्यक्तित्व का एक मजबूत आधार है उसके विचार। मानव जीवन के दुःख-सुख एवं उत्थान-पतन का केंद्र बिंदु उसके विचार ही होते हैं। आदर्शवादी उच्च स्तर का चिंतन करने वाले चरित्रवान एवं सेवाभावी लोग अपनी विचार-तरंगों के माध्यम से समस्त विश्व को अपनी प्रखर प्रेरणाओं से लाभान्वित करते हैं। विचार भी अपने सजातियों की तरफ तेजी से बढ़ते हैं। दुष्ट-दुरात्मायें हमेशा कुविचारों का ही संप्रेषण करते हैं। ऐसे व्यक्ति मन ही मन कुचक्र रचते हें। शायद उन्हें मालूम नहीं गंदे विचार वाले व्यक्ति सर्वप्रथम अपना ही नुकसान करते हैं। अतः सदा पवित्र विचार रखे और दूसरों का भला सोचें।


 ललित गर्ग