सीखना बन्द तो जीतना बन्द

इस दुनिया में हम बहुत कामयाब और खुशहाल लोगो को देखते है और सोचते है कि काश! हम भी उनकी तरह होते हमारी किस्मत भी ऊपर वाले ने उन लोगो की जैसी बनाई होती। और अपनी नाकामयाबी के लिय ईश्वर से लेकर हर किसी को दोष दे रहे होते हैं। हम परिस्थिति को दोष तो देते हैं। किंतु अपना आत्मावलोकन कभी नही करते कि हमारे परिश्रम और काबलियत के अभाव का कितना हिस्सा है? हम इतनी से बात क्यों नही समझना चाहते कि बिना परिश्रम के कुछ नही हो सकता। और कुछ नया सीखे बिना जीत हासिल कर पाना मुमकिन नही।


हर युग में, विश्व के समस्त क्षेत्र में हर व्यक्ति यह जरूर जानना चाहता है, कि वह जीत हासिल कैसे कर सकता है। कैसे जीत सकता है? कैसे कामयाब हो सकता है? कैसे सफलता हासिल कर सकता है? और इस सवाल के जवाब तलाश करें तो एक ही बात सामने आती है, 'सीखना बन्द तो जीतना बन्द' यही वास्तविकता है। सच्चाई है जब हम सीखना बंद कर देते हैं तो अपनी कामयाबी से दूर होने लगते है। यह सच है कि कामयाब लोग कामयाबी के लिय समर्पित होते है जबकि नाकामयाब लोग केवल कामयाब बनना चाहते हैं और परिस्थितियों को दोष देते रहते हैं।


    जीत या सफलता एक आदत है, एक नशा, एक आग है, एक जूनून है। जब तक यह नशा रहता है। हम अपनी जीत के लिये, कामयाबी के लिये, सफलता के लिए, सब कुछ करना चाहते हैं। इसके लिय निरन्तर नया सीखते रहना चाहते हैं, और सीखना चाहते हैं। यदि हम सीखना बन्द कर देते हैं, हमारा प्रगतिपथ रुक जाता है। आज तक जो कुछ भी किये हैं वह कुछ न कुछ सीखकर ही किये हैं। बिना सीखे तो एक निवाला ले पाना भी मुमकिन नही। आज जो कुछ भी हैं, और जो कुछ भी हम कर सकते हैं, वह सीखने पर ही सम्भव है।


सचिन तेन्दुलकर को क्रिकेट का भगवान इसलिये कहा जाता है क्योंकि वे हर तरह की बॉल को चार तरह से खेल सकते है। इसके लिए उन्होंने कठोर परिश्रम किया। निरंतर सीखने का प्रयास जारी रखा। जिस तरह एक पौधा अगर बढ़ नहीं रहा होता है तो वो मर रहा होता है उसी तरह अगर हम बढ़ नहीं रहे हैं, तो मर रहे हैं, अगर हम जीत नहीं रहे हैं तो हम हार रहे हैं। अर्थात सफलता हमसे दूर जा रही है। इसलिए तो कहा जाता है कि सीखना बंद तो जीतना बंद।