बीजेपी, आरक्षण और धनगर समाज

भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का इतिहास जिसने भी पढ़ा होगा वह अच्छी तरह जानता होगा कि ये संगठन हिन्दूवादी हैं । बीजेपी हिन्दूवादी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजनीतिक इकाई हैं । हिन्दूवाद क्या है इसे भी बिना इतिहास पढ़े नहीं समझा जा सकता । जिन्हें हिन्दू धर्म के विषय में सच और सटीक जानकारी चाहिए वे अपने ही धनगर (कुरुमा) समुदाय के अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति के विद्वान, जिनकी पुस्तकें भारत ही नहीं बल्कि इंग्लेंड और अमेरिका के विश्व-विद्यालयों में भी पढ़ाई जाती हैं, डॉ कांचा इलैया “शैफर्ड” की पुस्तक, “मैं हिन्दू क्यों नहीं” को जरूर पढ़ें । गड़रिया समुदाय के ही सामाजिक क्रांति के अजेय योद्धा, महामानव ई वी रामासामी पेरियार की पुस्तक “सच्ची रामायण” तथा डॉ भीमराव अंबेडकर की “हिन्दू धर्म की पहेली” व “जाति विच्छेद” को पढ़ें । महात्मा फुले की “गुलामगीरी” एवं महापंडित राहुल सांकृत्यायन की “तुम्हारी क्षय”, “भागो नहीं दुनिया को बदलो” तथा “वोल्गा से गंगा”, नाम की पुस्तकें हर किसी ने पढ़नी चाहिए । मेरी (डॉ जे पी बघेल की) दो पुस्तकें “अजपथ के कीर्तिपुरुष” तथा “भारत के धनगर” भी इसी संदर्भ में पढ़ी जानी चाहिए ।


भारत की जनता का जीवन कई हजार साल से मनुस्मृति के कानूनों व नियमों से संचालित होता रहा है । मुसलमानों तथा अंग्रेजों के राज में भी हिन्दू जनता का जीवन मनुस्मृति के नियमों से ही संचालित होता रहा था और आज भी हिन्दुओं के रोजमर्रा के जीवन-व्यवहार में मनुस्मृति के नियमों की झलक आज भी देखी जा सकती है । मुसलमान शासकों ने हिन्दुओं के धार्मिक कानूनों या नियमों में कोई दखल नहीं दिया । हाँ, अंग्रेजों ने जरूर मनुस्मृति के कुछ अति-अमानवीय नियम-कानूनों  में दखलंदाजी की । सोचने का विषय है कि मुसलमानों को भारत से निकालने की कोशिश उनके करीब एक हजार वर्ष के शासनकाल में कभीं नहीं हुई जबकि अँग्रेजों को भारत से बाहर निकालने की बात उनके राज के एक सौ साल में ही होने लगी थी और पूरे दो सौ साल भी राज नहीं कर पाए कि अंग्रेजों को भारत छोड़ना ही पड़ा । यही इतिहास है । इतिहास के इस उपरोक्त तथ्य को जो लोग समझ पाते हैं वे बीजेपी के चरित्र की असलियत को जानते हैं । जहाँ तक जीवन-व्यवहार के नियम-कानूनों की बात है, यह बात हर किसी को जानने की जरूरत है कि आज डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर के द्वारा रचे गए और जनवरी 1950 से लागू हुए भारत के संविधान के नियमों से हम सबका जीवन नियंत्रित हो रहा है । इसलिए भारत के हर व्यक्ति ने इस संविधान को पढ़ना चाहिए ।   


  भारत के संविधान में सामाजिक तथा शैक्षणिक रूप से पिछड़े समुदायों को शिक्षा, नौकरी एवं राजनीतिक प्रतिनिधित्व में आरक्षण का प्रावधान किया गया है । 1950 से ही इस आरक्षण को दो सूचियों (शिड्यूलों),अनुसूचित जातियाँ एवं अनुसूचित जनजातियाँ, में बाँटा गया है, जो संविधान की धारा 341 तथा 342 के तहत परिभाषित व अधिसूचित है । कुछ समुदायों द्वारा तीसरे शिड्यूल की माँग होती रही है लेकिन अभी तक संविधान में इसकी व्यवस्था नहीं की जा सकी है । हम जिसे ओबीसी आरक्षण कहते हैं वह धारा 15 व 16 के अंतर्गत दिया गया है, जो सरकारों की कृपा पर निर्भर करता है, और धारा 341 व 342 की तरह स्थायी नहीं है । धारा 340 के तहत सामाजिक व शैक्षिक रूप से पिछड़े अन्य वर्ग, जिसे अन्य पिछड़ा वर्ग या ओबीसी कहा गया है, की पहचान करने का प्रावधान था । इसी धारा, अर्थात धारा 340, के तहत कालेलकर आयोग एवं मंडल आयोग बनाए गए थे । धारा 341 व 342 द्वारा अधिसूचित जातियों जनजातियों को, शिक्षा तथा नौकरियों में सदैव-सदैव के लिए और राजनीति में 10 वर्ष के लिए आरक्षण की व्यवस्था भी संविधान में की गई थी । राजनीतिक आरक्षण को हर 10 वर्ष बाद आगे बढ़ाया जाता रहा है । ओबीसी के लिए शिक्षा व नौकरियों में आरक्षण सदैव-सदैव के लिए नहीं है । इसे कोई सरकार यदि चाहे तो बंद भी कर सकती है । ओबीसी को राजनीतिक आरक्षण की व्यवस्था नहीं की गई है, लेकिन राजीव गांधी की सरकार ने पंचायतों में ओबीसी को आरक्षण की व्यवस्था कर दी थी ।


जहाँ तक धनगर समाज की बात है, तो धनगर समाज उत्तर प्रदेश तथा उत्तराखंड में अनुसूचित जाति के रूप में शामिल है । उत्तर प्रदेश में आजादी के पहले से ही, (1923 से ही), धनगर अनुसूचित जाति की सूची में शामिल था । उड़ीसा में धनगर अनुसूचित जनजाति की सूची में है । महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, गुजरात, दिल्ली, गोवा, दमन-दीव में भी धनगर आरक्षण की किसी न किसी सूची में शामिल है । कर्नाटक, गुजरात, दिल्ली, गोवा, दमन-दीव में धनगर ओबीसी की सूची में है । महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में भी ओबीसी में शामिल है । इन तीनों राज्यों में अनुसूचित जनजाति की सूची में धनगर को ही जानबूझकर धनगड लिख दिया गया है । बंगाल में धनगड अनुसूचित जाति में शामिल है, तो बिहार व झारखंड में धनगड अनुसूचित जाति तथा धनगर अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल है । अनुसंधान करने पर हमने पाया है कि भारत में धनगड नाम की किसी जाति या जनजाति का अस्तित्व कभी नहीं रहा । तो सवाल उठना चाहिए कि धनगड आया कहाँ से । मतलब साफ है कि धनगर को सूची बनाते समय गलती से या जानबूझकर धनगड लिख दिया गया जिससे धनगरों को आरक्षण 1950 से ही नहीं मिल पा रहा है । महाराष्ट्र के लिए हमने इसी आधार पर उच्च न्यायालय में याचिका दायर की हुई है । हमने अकाट्य सबूत जुटाकर न्यायालय में जमा किए हैं । हू-ब-हू हमारे ही तरह के कई मामलों में न्यायालयों ने निर्णय दिए हैं अतः हम निश्चित रूप से जीतेंगे । क्योंकि म. प्र., छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड व बंगाल में भी धनगड ही अंकित है, वहाँ भी लड़ेंगे तो जीत मिलेगी ।


ऊपर से स्पष्ट है कि 14 राज्यों में धनगर नाम संवैधानिक लाभ का हकदार है । गडरिया सब जगह नहीं है । गडरिया कहीं गडेरिया है, गड्डरिया है, गडेरी है, गायरी है, गारी है, गाडरी है या गढ़री है । पाल बघेल केवल कुछेक  राज्यों में है, लेकिन केन्द्र की सूची में मान्यता प्राप्त नहीं है । अतः आवश्यक है कि अन्य सारे नाम त्यागकर केवल धनगर नाम को ही प्रयोग किया जाए ताकि बिना रोकटोक पूरे देश में संवैधानिक लाभ लेते हुए सामाजिक प्रगति और एकता का मार्ग प्रशस्त हो सके । कानूनी स्थिति हमारे पक्ष में है । लड़ेंगे तो जीतेंगे अवश्य । आरक्षण में आने वाली जो अड़चनें हैं वे दूर हो सकती हैं परंतु प्रयास तो करने ही पड़ेंगे । प्रयास न करने, या उचित रूप से प्रयास न करने का नतीजा है कि आजादी के 72 वर्ष बाद भी धनगर समाज संवैधानिक अधिकारों से वंचित है और पिछड़े से अति पिछड़ा हो चुका है । बिना संवैधानिक संरक्षण के यह समाज अत्यंत दीनता की हालत में पहुँच जाएगा । इसलिए हर शिक्षित, समर्थ व समझदार व्यक्ति की जिम्मेदारी बनती है कि वह इस विषय में खुद को जागरूक बनाए तथा समाज को भी जागरूक बनाने का काम करे । समाज की समग्र आर्थिक व राजनीतिक समृद्धि से समाज के अमीर ही नहीं बल्कि गरीब व्यक्ति का भी दीगर समाजों में सम्मान बढ़ता है।


बीजेपी के साथ धनगरों का अनुभव


बीजेपी पार्टी देश की जनता के लिए ही नहीं बल्कि धनगरों के लिए भी बेहद झूठी साबित हुई है । आरक्षण के सवाल पर धनगर समाज का बीजेपी के साथ व्यवहार और अनुभव निराशाजनक ही नहीं बल्कि बेहद विरोधी रहा है । जहाँ उत्तर प्रदेश में सपा की सरकार ने कुछ हद तक धनगर प्रमाण-पत्र बनवाए भी थे, वहाँ बीजेपी सरकार ने प्रमाण-पत्र बनवाने में रत्तीभर भी सहयोग नहीं किया है बल्कि राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष, बीजेपी सांसद, रामशंकर कठेरिया के माध्यम से पिछले दो-दो अध्यक्षों के निर्णयों को रद्द कराने की कोशिश कर धनगरों के साथ दुश्मनी निभाने का काम किया है । कठेरिया ने संविधान तथा न्यायालय दोनों की ही अवमानना की है । इसका बदला आगरा के धनगरों ने लेना चाहिए ।


महाराष्ट्र के बारे में वर्तमान प्रधानमंत्री और महाराष्ट्र के वर्तमान मुख्यमंत्री ने 2014 के चुनावों के ठेठ पहले, धनगरों को पहली ही केबिनेट मीटिंग में जनजातीय आरक्षण लागू करने का लिखित वादा किया था । तबसे लोकसभा का कार्यकाल पूरा हो रहा है, महाराष्ट्र विधान सभा के चार साल हो लिए लेकिन धनगरों को किया गया वादा बीजेपी ने पूरा तो किया नहीं, इसके उलट टाटा इंस्टीट्यूट के माध्यम से धनगरों के आरक्षण की माँग को ही हमेशा-हमेशा के लिए खत्म करने की गंभीर साजिश बीजेपी सरकार ने की है । अब क्योंकि मामला कोर्ट में है इसलिए सरकार की साजिश कामयाब नहीं हो सकेगी । यह सर्वविदित तथ्य है कि बीजेपी सामाजिक न्याय की विरोधी विचारधारा वाली पार्टी है । उसकी इस मंशा का खुलासा आए दिन उनके नेताओं के भाषणों में होता रहता है । खुले तौर पर तो बीजेपी आरक्षण को बनाए रखने की बात करती है लेकिन नीतियों में तथा असल व्यवहार में आरक्षण को खत्म कर रही है । शिक्षा और नौकरियों के निजीकरण के द्वारा, छात्रवृत्तियों की कटौती तथा पिछड़े वर्गों को मिलने वाली सहायता बंद करके बीजेपी ने आरक्षण व्यवस्था को असरहीन कर दिया है । जनता का ध्यान इन तथ्यों पर न जाए इसके लिए बीजेपी आए दिन गाय, लव जिहाद, तीन तलाक, हिन्दू-मुस्लिम, देशभक्ति, राम मंदिर जैसे अभियान छेड़ती रहती है । बीजेपी से धनगरों को लाभ की या न्याय की कोई उम्मीद नहीं करनी चाहिए ।


उत्तर प्रदेश के धनगर समाज ने पिछले चुनावों में धनगर विरोधी सरकारों को हराने में निर्णायक भूमिका निभाई है । बसपा, सपा को हराकर बदला लिया है । महाराष्ट्र के धनगरों का आरक्षण लागू करने के लिखित वादे और मोदी जी के भावनात्मक भाषणों के सम्मोहन में धनगरों ने बीजेपी को इस उम्मीद के साथ वोट दिये कि उत्तर प्रदेश में भी प्रमाण-पत्र बनने में उनको बीजेपी का सहयोग मिलेगा । लेकिन बीजेपी का जो असली रूप सामने आया है वह भयंकर रूप से धनगर विरोधी है । इसका बदला धनगर 2019 के चुनावों में बीजेपी को हराकर लेंगे इसमें मुझे संदेह नहीं है ।   


न्याय और संवैधानिक अधिकारों को पाने के लिए धनगर समाज ने आपसी मतभेदों को दरकिनार करते हुए एकजुट होकर प्रयत्न करने होंगे अन्यथा प्रमाण-पत्र बनने में अड़चनें आती ही रहेंगी । इस बारे में समाज का नेतृत्व करने की विश्वसनीय योग्यता श्री जे पी धनगर में है जिसका उपयोग धनगर समाज के लोगों ने करना चाहिए ।