(1) थक कर न बैठ, ऐ मंजिल के मुसाफिर :-
विचार ही व्यक्ति को महान बनाते हैं और विचार ही उसे नीचे भी गिराते हैं। जो व्यक्ति अपने जीवन में कभी भी असफल नहीं हुआ वो कभी भी महान नहीं हो सकता क्योंकि बिना श्रम एवं त्याग के अगर हम कुछ पाते हैं तो हमको उसकी कीमत पता नहीं होती। किसी ने सही ही कहा है कि रख हौसला वो मंजर भी आयेगा, प्यासे के पास चलकर समंदर भी आयेगा। थक कर न बैठ ऐ मंजिल के मुसाफिर मंजिल भी मिलेगी, और मिलने का मजा भी आयेगा। अपनी जिंदगी में जो लोग असफलता से डर कर बैठ जाते हैं वे अपनी जिंदगी में कभी भी सफल व्यक्ति नहीं कहें जा सकते। हमें अपनी मंजिल को पाने के लिए निरन्तर आगे ही बढ़ते जाना चाहिए। क्यों डरें कि जिंदगी में क्या होगा, हर वक्त क्यों सोचें कि बुरा होगा। बढ़ते रहें मंजिलों की ओर हमें कुछ न भी मिला तो क्या? तजुर्बा तो नया होगा।
(2) मैदान में डटे रहने से जीत होती है :-
हम मकान बदलते हैं, वस्तुयें बदलते हैं, स्वादिष्ट भोजन करते हैं, कपड़े बदलते हैं, फिर भी दुखी रहते हैं क्यांकि हम अपना स्वभाव नहीं बदलते। समुद्र का पूरा पानी एक जहाज को तब तक नहीं डुबा सकता जब तक वह उसके अंदर प्रवेश नहीं करता इसी तरह दुनियाँ की सारी नकारात्मकता आपको तब तक विचलित नहीं कर सकती जब तक आप स्वयं उसे अपने मन में हावी नहीं होने देते। असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो, क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो। कुछ किये बिना ही जय-जयकार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। इसलिए जब तक हम सफल न हो जायें तब तक हमें निरन्तर पूरे मनोयोग से प्रयास करते रहना चाहिए क्योंकि मैदान में डटे रहने से ही जीत होती है।
(3) हे ईश्वर, मुझे अपने प्रकाश से वंचित न रख :-
याद रखिये खुशी इस बात पर निर्भर नहीं करती कि आप कौन हैं या आपके पास क्या है ये पूरी तरह से इस बात पर निर्भर करती है कि आप क्या सोचते हैं। ‘बोली’ एक ऐसी चीज है जिससे इंसान किसी को अपना मित्र बना लेता है या फिर शत्रु। शब्दों में आरती, इबादत-अजान, प्रार्थना, अरदास होती है। शब्दों से ही इंसान की पहचान होती है। जो लोग आपका विरोध करते हैं उनसे कभी भी घृणा न करें क्योंकि यही तो वह लोग हैं, जो यह समझते हैं कि आप उनसे बेहतर हैं। दूसरों को हमें उतनी ही जल्दी क्षमा कर देना चाहिए जितनी जल्दी कि हम ऊपर वाले से स्वयं के लिए क्षमा चाहते हैं। हमें प्रभु से प्रार्थना करनी चाहिए कि बुरे स्वभाव वाला व्यक्ति अच्छे स्वभाव का बन जाए। ‘हे मेरे प्रभु! मुझे अपने प्रकाश से वंचित न रख जिसकी चमक से तूने सारे संसार को प्रकाशित किया है। तेरे अतिरिक्त और कोई ईश्वर नहीं है, तुम ही हो सर्वशक्तिशाली, सर्वगरिमामय, सदैव क्षमाशील।
(4) आत्मा का परम आत्मा में मिलन ही हमारी मंजिल है :-
देह की मृत्यु के बाद उसे या तो जला दिया जाता है या फिर मिट्टी में दफन कर दिया जाता है। यह मानव जीवन आत्मा की अनन्त यात्रा का पड़ाव है। इस संसार में जीने का उद्देश्य लोक कल्याण की भावना से अपने कार्य-व्यवसाय के द्वारा निरन्तर अपनी आत्मा का विकास करना है। आत्मा का परम आत्मा में मिलन ही हमारी मंजिल है। विकसित आत्मा को ही इस मिलन रूपी मंजिल का परम सौभाग्य प्राप्त होता है। अन्तिम लेखा-जोखा हो उससे पहले हमें प्रतिदिन अपने कर्मों का निरीक्षण कर लेना चाहिए, क्योंकि मृत्यु का आगमन अघोषित होगा और हमें अपने कर्मों का विवरण प्रस्तुत करने को कहा जाएगा। मैं साक्षी देता हूँ, हे मेरे प्रभु, कि तुझे जानने और तेरी पूजा करने हेतु तूने मुझे उत्पन्न किया है। मैं इस क्षण अपनी शक्तिहीनता और तेरी शक्तिमानता, अपनी दरिद्रता और तेरी सम्पन्नता का साक्षी हूँ। तेरे अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं, तू ही है संकटों में सहायक, स्वयंजीवी है।