जिस प्रकार से किसी भी देश को चलाने के लिए संविधान की आवश्यकता होती है, ठीक
उसी प्रकार से मनुष्य को अपना निजी जीवन चलाने के लिए व अपना सामाजिक जीवन चलाने
के लिए धर्म की आवश्यकता है। अगर वह इसमें सही प्रकार से सामंजस्य करता है तो वह
आध्यात्मिक कहलाता है। अध्यात्म का मतलब यह नहीं होता कि दुनियाँ से बिलकुल दूर जाकर
के जंगल में पहाड़ों की कन्दराओं में जाकर बैठ जाओं। धर्म का मतलब होता है अपने जीवन को
इस प्रकार से संचालित करना कि मानव अपने जीवन के उद्देश्य को प्राप्त कर सके। मानव
जीवन का उद्देश्य है प्रभु को प्राप्त करना और उसकी शिक्षाओं पर चलना। इस प्रकार जैसे-जैसे
हमारे जीवन में धर्म आता जायेंगा वैसे-वैसे हम आध्यात्मिक होते जायेंगे।
आध्यात्मिक चेतना के अभाव में मनुष्य कभी भी सुखी नहीं रह सकता:
आध्यात्मिक चेतना के अभाव में मनुष्य कभी भी सुखी नहीं रह सकता है। इस जगत में
केवल आध्यात्मिक चेतना वाला व्यक्ति ही सुखी रह सकता है। इसके बारे में हमें केवल अंदरूनी
ज्ञान होना चाहिए। हमें दिव्य ज्ञान होना चाहिए। हमारी आँखें सदैव खुली होनी चाहिए। हमारे
कान सदैव खुले होने चाहिए। महात्मा गाँधी ने भी कहा था कि ‘‘मैं अपने कमरे की खिड़कियों
को हमेशा खुला रखता हूँ। पता नहीं पूरब या पश्चिम से, उत्तर या दक्षिण से कहाँ से मेरे को
अच्छे विचार मिल जायें।’’ वास्तव में अच्छे विचार वही होते हैं जो कि धर्म से पोषित होते हैं।
जो विचार धर्म के अलावा होते हैं, वे टिकाऊ नहीं होते। उनका कोई अस्तित्व नहीं होता। वे
दुनियाँ में जम नहीं पाते हैं।
प्रत्येक युग अवतार, उस युग की समस्याओं के समाधान हेतु परमात्मा द्वारा भेजा जाता है:
सभी धर्मों में दो बातें विशेष रूप से बताई गई हैं। (1) सनातन पक्ष तथा (2) सामाजिक
पक्ष। सनातन पक्ष में बताया गया है कि हमें सदैव सत्य बोलना है। हमें सदैव प्रेम करना है।
हमें सदैव न्याय करना है। हमें सदैव दूसरों की सेवा करनी हैं, इत्यादि-इत्यादि। जबकि सामाजिक
पक्ष में हमें बताया गया है कि हम जिस युग में रहते हैं, हमें उस युग की समस्याओं को
समझना है। इन समस्याओं के समाधान हेतु उस युग के अवतार द्वारा जो शिक्षाएं दी गई हैं,
उन शिक्षाओं पर हमें चलना है। प्रत्येक युग का अवतार उस युग की समस्याओं के समाधान हेतु
परमात्मा द्वारा भेजा जाता है। वह युग अवतार हमें उस युग की समस्याओं को समझ करके
उसके समाधान के रूप में हमें युग धर्म देता है। इस युग का धर्म है, भगवान को पहचानना।
उनका ज्ञान प्राप्त करना और उनकी बताई हुई सामाजिक शिक्षाओं पर चलना।
इस युग की सामाजिक शिक्षा है ‘एकता‘:
इस युग की सामाजिक शिक्षा है ‘एकता’। एकता की शुरूआत परिवार से होती है।
इसीलिए कहा भी गया है कि पारिवारिक एकता के अभाव में विश्व एकता की कल्पना तक नहीं
की जा सकती। इसलिए परिवार के अंदर हमें त्याग करके, धैर्य व संयम के साथ ‘एकता’ का
प्रयास करना चाहिए। ये सब दिव्य बातों को इस युग के अवतार ने बताई हैं। हमें इन बातों को
जानने के साथ ही उन पर चलने की परम आवश्यकता है। वास्तव में अगर दुनियाँ के लोगों ने
यह समझ लिया होता कि हमारे जीवन का उद्देश्य प्रभु को जानना है, प्रभु की शिक्षाओं को
अपने जीवन धारण करना है, तो दुनियाँ में जो इतना दुःख है, इतनी परेशानी है, वे समाप्त हो
गई होतीं। वास्तव में अगर हम अपने जीवन का वास्तविक उद्देश्य जान लें तो हम परमपिता
की बनाई हुई इस सारी सृष्टि से बिना किसी भेदभाव के प्रेम करने लग जायेंगे। परिवार के
सदस्यों के बीच में एकता स्थापित हो जायेगी। मानव सारी मानवमात्र से प्रेम करने लग जायेगा
और विश्व में एकता एवं शांति की स्थापना हो जायेगी।
- डाॅ. (श्रीमती) भारती गाँधी, शिक्षाविद् एवं संस्थापिका-निदेशिका,
सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ