अपने बच्चों के जीवन को नैतिक मूल्यों एवं संस्कारों से सजायें

डॉ. भारती गांधी


हम अपने बच्चों को अच्छी से अच्छी भौतिक शिक्षा देने की व्यवस्था करते हैं। लेकिन हमारे बच्चों के लिए जो ज्यादा जरूरी है वह है गुणों की अर्थात् आध्यात्मिक शिक्षा। हमारा ध्यान इस ओर भी जाना चाहिए कि हमें प्रत्येक बच्चे को घर तथा स्कूल दोनों जगहों पर गुणों की अर्थात् आध्यात्मिक शिक्षा अनिवार्य रूप से दी जानी चाहिए। हमें प्रत्येक बच्चे के जीवन को गुणों के गुलदस्ते से सुगंधित बनाना चाहिए। हमें प्रत्येक बच्चे को ऐसा बनाना है जो कि सत्य भी बोलता हो, प्यार भी करता हो, अपने से बड़ों की आज्ञा भी मानता हो और सेवा के लिए भी आगे रहता हो। हमें बच्चों को ऐसा बनाना है जो कि चाहे जो कुछ भी हो जाये हमेशा सच ही बोले। एक 4 साल का बच्चा था जिसकी माँ ने उससे कहा था कि हमें हमेशा सच बोलना चाहिए। माँ अपने बेटे को रोज इस बात की याद दिलाती रहती थी कि हमें हमेशा सच बोलना है। नेशन स्कूल पढ़ने जाता था। एक दिन नेशन ने कुछ बच्चों के साथ मिलकर स्कूल के ब्लैकबोर्ड पर एक कार्टून बना दिया और सभी बच्चों ने मिलकर यह पहले से ही तय कर लिया था कि वे मास्टर साहब को नहीं बतायेंगे कि इस कार्टून को किसने बनाया है। बच्चों ने नेशन से कहा कि तुम बहुत सत्यवादी बनते हो लेकिन तुम भी मास्टर साहब को यह नहीं बताओंगे कि यह कार्टून किसने बनाया है।


क्लास में जब मास्टर साहब आये तो उन्होंने देखा कि ब्लैकबोर्ड पर कार्टून बना हुआ है तो वे बहुत नाराज हुए बच्चों से पूछा कि यह कार्टून किसने बनाया है। लेकिन किसी ने भी उनके इस प्रश्न का उत्तर नहीं दिया। म थे कि नेशन हमेशा सच ही बोलता है इसलिए उन्होंने नेशन से पूछा कि यह कार्टून किसने बनाया है। नेशन ने सभी बच्चों की तरफ देखा और फिर मास्टर साहब से बोला कि “मुझे पता तो है कि यह कार्टून किसने बनाया है लेकिन हम सभी बच्चों ने यह पहले ही तय कर लिया है कि हम यह बात किसी से नहीं बतायेंगे। इसलिए मैं आपको यह नहीं बता सकता कि यह कार्टून किसने बनाया है।'' मास्टर साहब को यह बात अच्छी नहीं लगी और उन्होंने नेशन को थप्पड़ लगा दिया। नेशन जब स्कूल की छुट्टी के बाद घर आया तो उसने हंसते हुए अपनी माँ से कहा कि “आज मुझे सच बोलने के कारण मार पड़ी है।'' माँ ने कहा कि यह कैसे हो सकता है कि तुम्हें सच बोलने के कारण मार पड़ी हो तब नेशन ने अपनी माँ पूरी घटना बताई। कहने का तात्पर्य यह है कि एक बच्चे के मन-मस्तिष्क में उसकी माँ जिसे हम किसी भी बच्चे की प्रथम शिक्षिका कहते है, की बातों का बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है क्योंकि माँ अपने बच्चे के लिए त्याग करती है। पिता की बात भी बच्चों को हमेशा याद रहती है। महात्मा गांधी के बारे में कहा जाता है कि एक बार उन्होंने सोने का कड़ा चुराने के बाद उसमें से कुछ सोना काटकर बेच दिया था। उस समय उनके पिता ने उन्हें मारा-पीटा नहीं था बल्कि बड़े ही संयम एवं सहनशीलता के साथ उनका साथ दिया था। इसका नतीजा यह हुआ कि उसके बाद उन्होंने अपने जीवन में कभी भी कोई गलत काम नहीं किया। यहाँ तक कि जब वे इंग्लैण्ड पढ़ने के लिए गए तो वहाँ भी उनका जीवन सदा वैसा ही रहा जैसा कि उनके माँ-बाप ने उन्हें संस्कार दिया था। इंग्लैण्ड में पढ़ते समय एक बार उनके क्लॉस में उस स्कूल के इन्सपेक्टर आये जो कि यह देख रहे थे कि पढ़ाई ठीक से हो रही है या नहीं? इसी क्रम में उन्होंने बच्चों के कापी में लिखी हुई कैटिल शब्द की स्पेलिंग चेक करनी शुरू कर दी। गांधी जी की कापी पर उस क्लास के मास्टर की निगाह पड़ी तो उन्होंने देखा कि मोहनदास करमचन्द्र गांधी ने केटिल की स्पेलिंग गलत लिखी हुई है। उनके मास्टर साहब ने उन्हें इशारा किया कि बगल वाली सीट पर बैठे हुए बच्चे की कापी देखकर वे अपनी स्पेलिंग को ठीक कर ले। मगर महात्मा गांधी ने ऐसा नहीं किया क्योंकि उनके माता-पिता ने यह संस्कार दिया था कि उन्हें नकल नहीं करनी चाहिए।


बच्चे जब देखते हैं कि किसी अच्छे काम को करने में उनके माता-पिता उनका साथ दे रहे हैं तो वे उस काम को कई गुना उत्साह के साथ करने लगते है। हम सभी जानते हैं कि बच्चों की रूचि अलग-अलग होती है। कोई बच्चा डॉक्टर बनना चाहता है तो कोई इंजीनियर, कोई आई.ए.एस. तो कोई वैज्ञानिक आदि। हमें अपने बच्चों में को बढ़ाने में तो अवश्य ही सहायता करनी चाहिए इसके साथ ही हमें प्रत्येक बच्चे को जीवन-मूल्यों की शिक्षा भी दिया जाना चाहिए। जोहान्सबर्ग में महात्मा गांधी एक कम्पनी की तरफ से मुकदमों की पैरवी उन्हीं मकदमों को लड़ते थे जो कि सही होते थे। परिणामस्वरूप वे वकालत के पेशे में तो बहुत ज्यादा सफल नहीं हो सके लेकिन एक इंसान के रूप में वे बहुत अधिक सफल रहे। उन्होंने अपने जीवन में सत्य एवं अहिंसा रूपी दो सद्गुणों को ग्रहण किया था। उनका कहना था कि मैं हमेशा सत्य बोलने के साथ ही किसी को भी मनसा, वाचा, कर्मणा दु:ख नहीं पहुंचाऊगां। उनके इन दो संकल्पों ने उन्हें अपने जीवन में बहुत ही ऊचाइयों पर पहुँचाया। इसीलिए हमें भी उनके जैसा बनने के साथ ही अपने बच्चों को भी वैसा ही बनाने का प्रयत्न करना चाहिए।