बच्चे डिप्रेशन में आ रहे हैं तो इसके लिए माता-पिता भी है कसूरवार


आज के समय में लोग एकल परिवार में अलग-अलग रह रहे हैं। बच्चे अपने विचार, अपनी तकलीफें किसी से शेयर नहीं कर पाते हैंआज की तेज रफ्तार जिंदगी में माँ बाप नौकरी धंधा, शोहरत और रूतबे के लिए भागते रहते हैं और उनके पास बच्चों से बातचीत करने के लिए समय ही नहीं होता है। अकेलेपन में बच्चे नकारात्मक विचारों से घिर जाते हैं। किशोरावस्था के बच्चे अवसाद और डिप्रेशन से ग्रसित होकर आत्महत्या जैसे कदम उठा रहे हैं। पुराने समय में जब समाज में संयुक्त परिवार में लोग रहते थे तब बच्चे अपने दादा-दादी, नाना-नानी, चाचा-चाची और भाई-बहन के साथ ज्यादा रहते थे और अपने दिल की बात उनसे खुलकर करते थे। दादा-दादी और नाना-नानी भी बच्चों को भरपूर प्यार करते थे और उनके साथ खेलते थे और उन्हें किस्से-कहानियाँ सुनाते थे जिससे बच्चों का मनोरंजन तो होता ही था साथ ही उन्हें उन कहानियों से शिक्षा भी मिलती थी। दादा-दादी और नाना-नानी बच्चों के सारे प्रश्नों का जवाब बड़े ही शांत तरीके से देते थे और उनकी सारी जिज्ञासाओं को शांत करते थे। बच्चों को संस्कार देने के काम भी दादा-दादी और नाना-नानी ही करते थे। छट्टियों में बच्चे अपने मामा-मामी, मौसा-मौसी. बुआ-फुफाजी और चचेरे-ममेरे भाई-बहन से मिलते थे और बचपन का भरपूर आनंद उठाते थे। बच्चों को त्योहारों का आनंद भी संयुक्त परिवार में ही आता था। लेकिन अब बच्चे अपने में ही सिमट रहे हैं।


आज के समय में माता-पिता बच्चों से संवाद ही नहीं करते हैंयुवा बच्चों और अभिभावकों के मध्य तो संवादहीनता की स्थिति हैमाता-पिता अपने बच्चों के युवा मन को समझने की कोशिश ही नहीं करते हैं। माता-पिता को बच्चों से मजबूत भावनात्मक तालमेल बनाए रखने के लिए अपने टीनएजर बच्चों का बेस्ट फ्रेंड बनना होगा। बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए परिवार और दोस्तों दोनों का महत्वपूर्ण स्थान हैबच्चों को बचपन से ही अधिक से अधिक दोस्त बनाने के लिए प्रेरित करें। युवा बच्चे भटकाव के रास्ते पर न चलें इसके लिए जरूरी है कि माता-पिता उनसे दोस्ती करेंउन्हें भले-बुरे का ज्ञान माता-पिता ही करवा सकते हैं। माता-पिता का व्यवहार अपने युवा बच्चों से मित्रतापूर्ण होना चाहिए, उन्हें भरपूर समय देना चाहिए और उनकी बातें हमेशा ध्यानपूर्वक सुननी चाहिए। उनसे हमेशा संवाद करते रहना चाहिए। यदि माता-पिता दिनभर अपने मोबाइल फोन से चिपके रहेंगे और बच्चों को समय नहीं देंगे तो बच्चे तो निश्चित ही डिप्रेशन का शिकार होंगे ही।


बच्चों को बचपन से अच्छी किताबें पढ़ाने की आदत डालें। बच्चों को बचपन में और किशोरावस्था में खेलने देंउन्हें जो गेम अच्छा लगे उसी में उन्हें प्रोत्साहित करें। बच्चों की छोटी-छोटी उपलब्धियों को दिल से प्रसंशा करें जिससे बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ेगा। बच्चों को बचपन से ही उनका काम उन्हें स्वयं करने दें और उन्हें व्यावहारिक ज्ञान भी बचपन से ही सिखाएं। माता-पिता बच्चों पर अपनी इच्छाएँ और महत्वाकांक्षाएँ न थोपेंविषय और कैरियर का चुनाव उन्हें स्वयं करने दें। जो माता-पिता बड़े-बड़े पदों पर हैं वे भी अपने बच्चों के कैरियर की जब बात आती है तब तानाशाह बन जाते हैं। अपने सपने, अपनी इच्छाएँ उन पर थोपने लगते हैंऐसा नहीं है कि बच्चों के कैरियर के बारे में पैरेंट्स को सोचना नहीं चाहिए। बच्चों को खुद अपना कैरियर चुनने की आजादी होनी चाहिए। आप इस मामले में उन्हें अपनी सलाह दे सकते हैं।


माता-पिता अपने बच्चों के रोल माडल बनें। बच्चे माता-पिता से ही सीखते हैं। उन्हें ज्यादा प्रवचन न दें। सबसे ज्यादा दुख तब होता है जब हम हमारे बच्चों में अपने अवगुण देखते हैंआप स्वयं अपने माता-पिता से, अडोसी-पडोसी, रिश्तेदारों, मित्रों और समाज के लोगों से जैसा व्यवहार करेंगे उसी प्रकार का व्यवहार बच्चे आपसे करेंगे। युवा बच्चों से कभी भी टोका-टोकी न करें। उनसे संवाद के दौरान हमेशा 'नहीं' का प्रयोग न करें इससे बच्चों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता हैआजकल माता-पिता समय रहते बच्चों को समझ क्यों नहीं पाते हैं? अपने ही घरों में बच्चे उपेक्षित रहते हैं। माता-पिताकभी भी दूसरे बच्चों की उपलब्धियों के उदाहरण अपने बच्चों के सामने ना दें। हर एक बच्चे में अलग-अलग तरह की विशेषता होती है। माता-पिता को अपने बच्चों की उसी विशेषता को पहचानना है।


माता-पिता स्वयं भी प्रतिदिन व्यायाम करें और बच्चों को भी प्रतिदिन व्यायाम करने की आदत डालें। व्यायाम करने से शरीर तो फिट रहता ही है, मन भी प्रसन्न और शांत रहता है। प्रतिदिन व्यायाम करने से डिप्रेशन में कमी आ जाती है। आजकल का खानपान भी डिप्रेशन का एक मुख्य कारण हैपुराने समय में जब पूरा संयुक्त परिवार एक साथ भोजन करने बैठता था तब भोजन का स्वाद भी दोगुना हो जाता था और स्वादिष्ट और पौष्टिक खाना मन और सोच दोनों को तरोताजा रखता था। आजकल फास्टफूड खाने के कारण बच्चों को पौष्टिक आहार नहीं मिल पाता है जिससे वे कम उम्र में ही शारीरिक और मानसिक रूप से बीमार हो जाते हैंजब तक हम अपने पूर्वजों की सरल एवं प्रभावी जीवनशैली की ओर नहीं लौटते तब तक हमारे बच्चों का भविष्य भी बेरंग ही बना रहेगा।