गृह लक्ष्मी बनकर दिखाना होगा


महिलाओं को घर की लक्ष्मी कहा जाता हैलक्ष्मी धन की देवी हैं तो महिलाएं भी घर की धनदेवी बन सकती हैमहिलाओं को हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ बराबरी से काम करने का मौका मिल है और उन्होंने यह साबित भी कर दिया कि कोई ऐसा कार्य नहीं है जिसे महिलाएं नहीं कर सकतींकामकाजी महिलाओं के अलावा जो महिला घर-गृहस्थी संभालती हैं, उनका काम भी सिर्फ चूल्हा-चक्की का नहीं रह गया हैमहिलाएं बाकायदा बच्चों को होमवर्क कराते समय पर सो जाने का टाइम टेबुल बनाती हैं। सामाजिकता के क्षेत्र में भी महिलाओं का विशेष योग दान हैं। नाते-रिश्तेदारों को फोन पर बात करके तो कभी स्वयं मिलकर रिश्तों को ताजा रखती हैंपास पड़ोस से संबंध तो महिलाओं के माध् यम से ही चलते रहते हैं लेकिन महिलाओं को अभी परिवार में निवेश में भागीदारी का पूरा अक्सर नहीं मिला हैयह अवसर उन्हें मिलना चाहिए, तभी वे गृह - लक्ष्मी को साकार भूमिका निभा सकेंगीहां, इतना जरूर है कि जिस तरह घर-गृहस्थी के कार्य में महिलाएं निपुणता प्राप्त कर लेती हैं, उसी तरह सरकारी गैर सरकारी निवेश के बारे में भी वे कुछ बारीकियां सीख लें। बैंक, डाकघर के साथ म्यूचुअल फण्ड आदि के बारे में जब तक जानकारी नहीं होगी तब तक निदेश करने से घाटा भी हो सकता है। नौकरी पेशा महिलाओं के लिए भी निवेश के बारे में जानकारी करनी पड़ेगीइस प्रकार पति पत्नी और बड़े बेटे-बोटियां मिलजुल कर निवेश की रणनीति बनाएंगे तो घर में लक्ष्मी का स्थायी निवास होने से कोई नहीं रोक सकेगा।


पिछले दो दशकों में भारत और दुनिया भर में महिलाओं की जिंदगी में कई महत्वपूर्ण सामाजिक बदलाव हुए हैं। बदलाव की इस प्रक्रिया में विशेषकर शहरी महिलाओं को अक्सर ऑफिस अथवा काम-काज और घर की जिम्मेदारियों को एक साथ संभालना पड़ता है। बढ़िया शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, मीडिया और इंटरनेट से संपर्क और परिवार की बनावट में बदलाव के चलते अब महिलाएं महत्वपूर्ण पारिवारिक फैसलों में भी ज्यादा बड़ी भूमिका निभा रही हैं। कई बार ऐसा देखने में आता है कि महिलाएं पुरूषों की तुलना में घर का हिसाब-किताब संभालने में ज्यादा धीरज वाली और समझदार होती हैं। कई अध्ययन से पता चला है कि पुरूषों की तुलना में महिलाएं एक से अधिक जिम्मेदारी बेहतर ढंग से संभाल लेती है। हालांकि आम धारणा है कि महिलाओं और पुरूषों की सोच एक जैसी नहीं होती। एक उदाहरण पर गौर करें जिस परिवार में सारे फैसलेपुरूष करते हैं वहां इस बात की गुंजाइश अधिक रहती है कि वे भावनाओं से ज्यादा प्रेरित और पक्षपाती जबकि इसकी तुलना में यदि दो लोग मिलकर फैसले करते हैं तो उसमें निष्पक्षता का स्तर काफी अधिक होता है।


निवेश के मामले में भी एफिशियंट पोर्टफोलियो थ्योरी की अवधारणा यही कहती है कि ऐसे एसेट्स जो एक दूसरे से ताल्लुक नहीं रखते हों उनके संयोजन से ज्यादा स्थिर रिटर्न मिलता हैएक निश्चित समय में यदि एसेट्स में ज्यादा आपसी संबंध नहीं होता है तो वो अलग-अलग तरह से प्रदर्शन कर सकती है। जैसे कि शेयर और डेट के प्रदर्शन में तुलनात्मक रूप से कम परस्पर संबंध होता है। 100 फीसदी इक्टिवी पोर्टफोलियो की तुलना में इक्विटी और डेट का मिश्रण अधिक स्थिर हो सकता है। इसी तरह किसी निर्णय को यदि अलग-अलग सोच वाले दो लोग मिलकर लेते हैं तो कुछ समय बाद उसके अच्छे परिणाम मिलने की संभावना होती हैहालांकि निवेश संबंधी फैसले कई दशकों या पीढ़ियों तक अपना असर छोड़ सकते हैं, इसलिए फैसले लेने के मामले में पति-पत्नी दोनों की समझ और सहमति बेहद जरूरी है। महिलाओं को परिवार में आर्थिक फैसलों में क्यों सक्रिय होना चाहिए इसका एक और कारण है जीवनसाथी का निधन या उससे अलग होने की अप्रत्याशित घटना में वह पूरी तरह हालात से निपटने के लिए तैयार हो। महिला के लिए यह बेहद महत्वपूर्ण है कि उसे इन सभी आशंकाओं और उसके बाद होने वाली आर्थिक जटिलताओं के बारे में पता हो। जिस तरह महिलाएं अपने परिवार को संतुलित आहार देने में माहिर होती हैं, ठीक वैसे ही निवेश के संबंध में भी कहा जा सकता है। इससे निवेश का सबसे महत्वपूर्ण पहलू उभर कर सामने आता है कि बचत को अलग-अलग उपलब्ध विकल्पों अथवा परिसंपत्ति वर्गों में लगाया जाएपरिसंपत्ति संचयन का सबसे साधारण आइडिया है यह किसी व्यक्ति के निवेश को अलग-अलग परिसंपत्ति वर्गों जैसे कि इक्विटी, डेट, सोना, रियल एस्टेट में विभाजित करने की प्रक्रिया है। इससे व्यक्ति लंबे समय में निधि निर्माण कर सकता है और उसे जोखिम की कम से कम संभावना रहती है।


मोटे तौर पर विभिन्न एसेट्स क्लास को तीन घटकों के अनुसार बांटा जा सकता है-अनुमानित रिटर्न, निवेश में शामिल जोखिम और लिक्विडिटी मतलब व्यक्ति कितनी जल्दी अपने निवेश से बाहर निकल सकेआमतौर पर रिटर्न और जोखिम साथ-साथ चलते हैंदूसरे शब्दों में कहें तो रिस्क जितनी ज्यादा होगी, शानदार रिटर्न मिलने की संभावना उतनी ही ज्यादा होगी। जैसे कि कम समय में इक्विटी अथवा शेयर जोखिम भरे हो सकते हैं लेकिन यदि उनमें लंबे समय में निवेश बरकरार रखा जाए तो उनमें संभवत उच्च रिटर्न देने की क्षमता होती है। जबकि इसके विपरीत डेट इंस्ट्रूमेंट में इक्विटी की तरह अस्थिरता नहीं होती पर इनमें रिटर्न सीमित होता हैविभिन्न एसेट वर्गों से अनुमानित रिटर्न भी अलग-अलग होते हैं। उदाहरण के लिए अगर 30 साल के लिए 1 लाख रुपए का निवेश किया जाए तो यह 8 फीसदी कंपाउंडिंग के हिसाब से 10 लाख हो जाएगा। यह किसी बैंक के फिक्स्ड डिपॉजिट जैसे जोखिम रहित रिटर्न के बराबर होता हैदूसरी ओर 15 फीसदी कंपाउंडिग पर 1 लाख रुपए का निवेश 30 वर्षों में अप्रत्याशित रूप से बढ़कर 66 लाख रुपए हो जाएगा। अगर आप इक्टिवी रिटर्न का इतिहास देखें तो सेंसेक्स पर पिछले 30 वर्षों में करीब-करीब 14 फीसदी कंपाउंडिंग रिटर्न देने का रिकॉर्ड है। इसलिए इक्विटी से मिलने वाला रिटर्न डेट के निवेश की तुलना में ज्यादा होता है। डॉक्टर, वकील, सीए आदि सभी मामलों में हम अक्सर सबसे भरोसेमंद विशेषज्ञ से ही सलाह लेते हैंनिवेश की योजना एक गंभीर विषय होता हैऔर इस मामले में सब अपने मन से नहीं करना चाहिए। विशेषज्ञ भले ही फीस लेते हों लेकिन ये आपके भविष्य में होने वाले नुकसान के मुकाबले में काफी कम है। खुर्षों की प्राथमिकता को लेकर परिवारों में अक्सर बहस हुआ करती हैबच्चे मस्ती करना और खर्च करना चाहते हैं जबकि माता-पिता को भविष्य के लिए बचत की फिक्र रहती हैऐसी स्थिति में हमें दोनों के बीच संतुलन बनाना पड़ता है। लक्ष्य के साथ निवेश करने से लंबे समय तक निवेश में बने रहने का अनुशासन पैदा होता है और फिजूलखर्ची पर लगाम लगती हैभारतीय संदर्भ में पिछले वर्षों के दौरान लोग रिटायरमेंट और बच्चों की शिक्षा या शादी के खर्चा की बचत करने के लिए निवेश की तरफ बढ़ रहे हैंकई लोग रिटायरमेंट में काफी समय का बहाना बनाकर और बचत करने पर ध्यान नहीं देते। हमें यह याद रखना चाहिए कि कभी न कभी तो रिटायरमेंट होना ही है और उसके बाद आमदनी रूक जाएगी। इसलिए रिटायरमेंट के लिए आर्थिक तैयारी जरूरी है। इसी तरह बच्चों की शिक्षा पर भी हर दिन खर्च बढ़ रहा है। वहां भी बचत की जरूरत है। इसलिए लक्ष्य बनाकर जल्दी निवेश की शुरूआत करनी चाहिए। म्युचुअल फंड में एसआईपी के जरिए निवेश करना एक अच्छा तरीका है। आखिर में ये नहीं भूलना चाहिए कि आप अपने परिवार की एक महत्वपूर्ण सदस्य है। आपको महज टीवी सीरियल, किटी पार्टी और बच्चों की परवरिश तक सीमित नहीं रहना चाहिए। महिलाओं को आर्थिक फैसलों में भागीदारी करने की जरूरत है। यह आपके आत्मसम्मान और आपके प्रति परिवार के सम्मान के लिए भी अच्छा होगा।


धनगर चेतना ,मार्च 2017