जन जागरण के प्रेरक स्वामी विवेकानंद


स्वामी विवेकानंद अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस से बेहद प्रभावित थे। उनके नाम पर ही उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की जो आज भी कार्यरत है। अमेरिका के शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन हुआ था। स्वामी विवेकानंद ने 1883 में विश्व धर्म संसद में भारत का प्रतिनिधित्व किया।


जनजागरण की बात तो बहुत लोग करते हैं लेकिन स्वामी विवेकानंद जैसा भाव उनमें नहीं दिखाई पड़ता। अमेरिका के शिकागो में विश्व धर्म संसद को संबोधित करते ही उनका नाम पूरी दुनिया में छा गया है। अमेरिका छोड़ने से पहले उन्होंने कहा ह्यभारत को मुझे सुनना होगामैं भारत को उसकी नींव तक हिला दूंगा। मैं उसकी राष्ट्रीय शिराओं में विद्युत-संचार प्रवाहित कर दूंगा। यह भारत, मेरा अपना भारत, वही वेदांतसत्य की प्रशंसा कर सकता है, जिसको मैंने यहां मुक्त हस्त और प्राणों की बाजी लगाकर दिया है। भारत मुझे विजयोल्लास के साथ ग्रहण करेगा। यही हुआ भी था। देश में जगह-जगह स्वामी जी का स्वागत किया गया। अब वे अनजाने संन्यासी नहीं रह गये थे। स्वामी विवेकानंद का स्वदेश लौटे विजयी वीर की तरह स्वागत हुआ था और स्वामी जी ने भी राष्ट्रीय जन जागरण का ऐसा बीज बोया जो आज विश्व के विकसित राष्ट्रों के साथ गर्व के साथ खड़ा है। स्वामी विवेकानंद की जयंती 12 जनवरी पर हम भारतवासी उन्हें विशेष रूप से याद करते हैं।


स्वामी विवेकानंद भारत के चुनिन्दा महापुरुषों में से एक हैं जिन्होंने भारत का गौरव पूरे विश्व में बढ़ाया। विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता के एक कुलीन परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त तथा मां का नाम भुवनेश्वरी देवी था।स्वामी विवेकानंद का वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। उन्होंने विदेशों में उच्च शिक्षा ग्रहण की तथा भारत आकर समाज सुधार तथा धर्म की सेवा की। स्वामी विवेकानंद अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस से बेहद प्रभावित थे।उनके नाम पर ही उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की जो आज भी कार्यरत है। अमेरिका के शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन हुआ था। स्वामीविवेकानंद ने 1883 में विश्व धर्म संसद में भारत का प्रतिनिधित्व किया। इस दौरान अमेरिका के शिकागो में उन्होंने अपना विश्व विख्यात भाषण भी दिया। भारत के सनातन धर्म को उन्होंने जिस तरह सबसे बेहतर बताया, उसकी दूसरी मिसाल नहीं है। मानव जाति की सेवा के लिए स्वामी विवेकानंद ने लगातार कार्य किये। इसलिए भारत में उन्हें एक देशभक्त संत के रूप में देखा जाता हैतथा उनके जन्मदिन 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।


हमारे देश ने अनेक योगियों, ऋर्षियों, मुनियों, विद्वानों और महात्माओं को जन्म दिया ।है जिन्होंने भारत को विश्व में सम्मानपूर्ण स्थान दिलाया। ऐसे महान पुरूषों में स्वामी विवेकानंद भी थे जिन्होंने अमेरिका जैसे देश में भारत माता का नाम उज्जवल कर दिया। पांच वर्ष की आयु में उन्हें मेट्रोपोलिटन इन्स्टीट्यूट में प्रवेश दिलाया गया था। सन् 1879 में उन्हें जनरल असेम्बली कालेज में उच्च शिक्षा पाने के लिए प्रवेश दिलाया गया। यहां पर नरेन्द्र देव ने उच्च कोटि की शिक्षा प्राप्त की थी। पिता जी के निधन के बाद आपके हदय में संसार के प्रति अरूचि पैदा हो गई। आपने रामकृष्ण परमहंस से दीक्षा ले संन्यासी बनने की इच्छा प्रकट की। परमहंस जी ने उन्हें समझाया और कहा कि संन्यास का सच्चा उदेश्य मानव सेवा करना है। मानव सेवा से ही जीवन में मुक्ति मिल सकती है। परमहंस ने उन्हें दीक्षा दे दी और उनका नाम विवेकानंद रख दिया। संन्यास ले लेने के बाद उन्होंने सभी धर्मों के ग्रंथों का गंभीर अध्ययन करना आरम्भ कर दिया। विश्व धर्म सम्मेलन में उनके इस ज्ञान को पूरी दुनिया ने देखा। शिकागो में सन् 1883 ई. में विश्व धर्म सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन में विवेकानंद ने भी भाग लिया और भाषण दिया। भाषण का आरम्भ उन्होंने ह्यभाइयों और बहनों से किया। इस सम्बोधन से ही लोगों ने तालियाँ बजानी शुरू कर दीं। आपके भाषण को लोगों ने बहुत ध्यानपूर्वक सुना। आपने कहा- संसार में एक ही धर्म है और वह है मानव धर्म। राम, कृष्ण, मुहम्मद आदि इसी धर्म का प्रचार करते रहे हैं। धर्म का उदेश्य प्राणी मात्र को शांति देना है। शांति प्राप्ति का उपाय द्वेष, घृणा और कलह नहीं बल्कि प्रेम है। हिन्दू धर्म का भी यही संदेश है। सबमें एक ही आत्मा का निवास है। स्वामी जी के इस भाषण से सभी बहुत प्रभावित हुए। अमेरिका में स्वामी जी नक धाक जमा दी। इसके बाद स्वामी जी ने कई स्थानों पर व्याख्यान दिए। ऐसी अनेक संस्थाओं की स्थापना हुई जिनका उदेश्य वेदान्त का प्रचार करना था। आपने जापान, फ्रांस और इंग्लैण्ड में भी मानव धर्म का प्रचार किया।इनकी एक शिष्या थी।उनका नाम था निवेदिता।उन्होंने कलकत्ता में रहकर सेवा कार्य किया।


स्वामी जी ने जापान से अपने देशवासियों के नाम पत्र लिखा। उसमें उन्होंने लिखा कि तुम बातें बहुत करते हो पर करते कुछ नहीं। जापानवासियों को देखो। इससे तुम्हारी आँखें खुल जाएँगी। उठो जागो। रूढ़ियों के बंधन को काट दो। तुम्हारा जीवन केवल सम्पत्ति कमाने के लिए नहीं है। जीवन देश प्रेम की बलिवेदी पर समर्पित करने के लिए है। राम कृष्ण मिशन की स्थापनाः स्वामी जी चार वर्ष तक अमरीका और यूरोप में हिन्दू धर्म का प्रचार करते रहे। इसके बाद वे भारत लौट आए। उन्होंने कलकत्ता में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। इस मिशन की अनेक शाखाएँ देश के विभिन्न भागों में स्थित हैं।


निधनः बहुत अधिक परिश्रम के कारण स्वामी जी का स्वास्थ्य गिर गया। 8 जुलाई सन् 1902 में स्वामी जी का निधन हो गया। उन्होंने जीवन के थोड़े से समय में यह कमाल कर दिखाया जो लोग लम्बा जीवन जीकर भी नहीं कर पाते। स्वामी जी ने सच्चे धर्म की व्याख्या करते हुए कहा था- धर्म वह है जो भूखे को अन्न दे सके और दुखियों के दुखों को दूर कर सके।हमारे देश में समय समय पर परिस्थितियों के अनुसार संतों-महापुरूषों ने जन्म लिया है और अपने देश की दुखद परिस्थितियों का मोचन करते हुए पूरे विश्व को सुखद संदेश दिया है। इससे हमारे देश की धरती गौरवान्वित और महिमावान हो उठी है। इससे समस्त विश्व में सम्मानपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ है। देश को प्रतिष्ठा के शिखर पर पहुँचाने वाले महापुरूषों में स्वामी विवेकानंद का नाम सम्पूर्ण मानव जाति के जीवन की सार्थकता का मधुर संदेशवाहकों में से एक है।


जन पूर्वांचल ,जनवरी 201923