रफ्तार का फैशनवाद


रफ्तार आज की दुनिया के सबसे अधिक सम्मोहक शब्दों में से एक है। युवा पीढ़ी तो मानो रफ्तार के लिये पागल है पर बड़े भी कम नहीं है। हरेक व्यक्ति उपलब्धियों को पाना चाहता है वह भी कम समय में! यानि की जिन्दगी की दौड़ में वह रफ्तार के साथ आगे बढ़ना चाहता है। भले ही दूसरों के सरों पर पैर रखकर ही क्यों न दौड़ना पड़े। पर यहाँ मैं रफ्तार का संदर्भ सड़क पर चलने वाले वाहनों तक ही सीमित रडुंगा जिनकी रफ्तार यदि किंचित भी सीमित हो जाए तो उन पर सवार चालकों को स्वयं अथवा उनके परिवारों को असीमित दु:ख से निजात मिल सकेगी। स्वतन्त्रताप्राप्ति के पश्चात् सड़कों के निर्माण में आशातीत वृद्धि हुई है। न केवल संख्यात्मक रूप से बल्कि गुणात्मक रूप से भी इस प्रगति का आकलन स्वतः किया जा सकता है। इसी प्रकार, आटोमोबाइल क्षेत्र में भी विगत वर्षों में दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि है। वाहनों के नित नये-नये मॉडल सड़कों पर दिखायी देते हैं जो न केवल अपनी चमक दमक बल्कि अपनी उच्च तकनीक से भली प्रभावित करते हैं। पर बेहतर सडक-मार्गों एवं बेहतर मोटर वाहनों के बीच सम्भवतः हम लोग बेहतर तालमेल नहीं बैठा सके हैं जिसका प्रमाण है वर्षानुवर्ष होने वाली सड़क दुर्घटनाएं जिनमें हजारों-लाखों लोग काल का ग्रास बनते हैंइसका एक प्रमुख कारण है रफ्तार-यानि की वाहनों को निर्धारित गति से कहीं अधिक गति देते हुए चलाना या फिर कहें-दौडाना जिससे होने वाली दुर्घटनाओं का दौर एक चिरन्तन सत्य का रूप ले चुका है। पर यह रफ्तार का सिलसिला केवल राजमार्गों तक ही सीमित हो ऐसा नहीं हैभीड़-भाड़ भरे बाजार के रास्तों में या नगरीय क्षेत्र में कहीं भी हर दिन ऐसे रफ्तार के कहर से रूबरू हुआ जा सकता हैशहरी क्षेत्र में चार पहिया वाहनों के अतिरिक्त दो पहिया वाहनों का चलन भी बहुतायत में है। विशेषकर युवा पीढ़ी के लिये रफ्तार का रोमांच सर्वाधिक हैकाफी हद तक फिल्मों से प्रभावित होकर युवा पीढ़ी दोपहिया वाहनों को तेज गति से दौड़ाने में सम्भवतः अधिक रोमांच या श्रिल का अनुभव करती है। अब तो महनगरों में बाइकर्स गैंग' जैसे शब्द भी चलन में है जिसके परिदृश्य में कई युवाओं की टोली बाइक पर सवार होकर रफ्तार से अपने वाहनों को गति देते हुए विभिन्न प्रकार के स्टंट भी करने को उपक्रम करती है और ऐसा करते हुए कई युवक मृत्यु का वरण भी कर चुके हैं उनके इस कृत्य से नागरिकों को जो परेशानी होती है वह अलग कई बार निर्दोष नागरिक या तो चोटिल हुए हैं या फिर उनके जीवन की भी इहलील समाप्त हुई है। यहां यह भी उल्लेख करना प्रासंगिक होगा कि अब रफ्तार का प्रकोप मोहल्ले व गलियों में भी दिखाई पड़ने लगा है। युवा पीढ़ी अपने दोपहिया वाहनों को तेजी से दौड़ते हुए जब मोहल्लों की अपेक्षाकृत कम चौड़ी सड़कों पर तेजी से दौड़ाते हैं तो आस-पास चलने वाले नागरिकों विशेषकर बच्चों, बूढों और महिलाओं को किन विषम परिस्थितियों से दो-चार होना पड़ता है इसका अनुमान लगाना कठिन नहीं हैइतना ही नहीं, अब तो रफ्तार के साथ-साथ बिना प्रभावी साईलेन्सर वाली गाड़ियों को भी आसानी से रास्तों पर दौड़ाते देखा जा सकता है जिनसे इतना शोर उत्पन्न होता है कि कुछ देर के लिये आस-पास के लोग तो सहम ही जाते हैं। प्रश्न यह है कि क्या कतिपय लोगों के लिये नियम-कानून, अनुशासन व प्रदूषण-मुक्त समाज जैसे शब्दों का कोई अर्थ नहीं है? पर दंड मात्र की अवधारणा से इस प्रकोप को रोका जाना सम्भव नहीं हैहर अच्छे संस्कार की प्रारम्भिक पाठशाला घर है जहां अभिभावक के रूप में बच्चे के माता-पिता उसका मार्गदर्शन करते हैं। तत्पश्चात विद्यालय में उसको विधिवत दीक्षा प्राप्त होती हैक्यों न शुरूआत घर व विद्यालय से की जाए ताकि कुसंस्कारों से भविष्य की पीढ़ी को बचाया जा सके? कार्य कठिन तो है पर असम्भव नहीं आइये संकल्प का एक दीप प्रज्जवलित करें।