केन्द्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में विमुक्त, घुमंतू और अर्द्धघुमंतू समुदायों (डीएनसीएस) के लिए विकास एवं कल्याण बोर्ड के गठन के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई।
पृष्ठभूमि :
सरकार देश के सर्वाधिक वंचित नागरिकों तक पहुंच बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। विमुक्त घुमंतू और अर्द्धघुमंतू समुदाय (डीएनसी) देश के सबसे अधिक वंचित समुदाय हैं। इन समुदायों तक पहुंच बनाना मुश्किल है, ये ज्यादा दिखाई नहीं देते और इसलिए अक्सर छूट जाते हैं। जहां अधिकतर विमुक्त घुमंतू समुदाय अनुसूचित जातियों (एससी) अनुसूचित जनजातियों (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में शामिल हैं, इसके बावजूद कुछ विमुक्त घुमंतू समुदाय किसी भी एससी, एसटी या ओबीसी श्रेणियों में कवर नहीं किये गये हैं।
इसलिए, नीति आयोग के उपाध्यक्ष की अध्यक्षता में एक समिति केगठनको मंजूरी प्रदान की गई है, जो विमुक्त, घुमंतू और अर्धघुमंतू समुदायों के (डीएनसीएस) लोगों की पहचान की प्रक्रिया को पूराकरेगी, जिन्हें अब तक औपचारिक रूप से वर्गीकृत नहीं किया गया है।विमुक्त, घुमंतू और अर्ध-घुमंतू समुदायों के (डीएनसीएस) लोगों की राज्य-वार सूची को तैयार करने तथा विमुक्त और घुमंतू जनजातियों के बारे में केंद्र या राज्य सरकारों द्वारा अपनाये जासकने वाले उचित उपाय सुझाने के लिए सरकार ने जुलाई 2014 में तीन वर्ष की अवधि के लिए एक राष्ट्रीय आयोग का गठन किया था। आयोग ने अपना कार्य 09. 01.2015 को शुरू किया और अपनी रिपोर्ट 8 जनवरी 2018 को सौंप दी।
आयोग ने इन समुदायों के लिए एक स्थायी आयोग की स्थापना की सिफारिश की थीचूंकि अधिकांश डीएनटी को एससी,एसटी या ओबीसी के अंतर्गतकवर किया गया है, ऐसेमें उनके विकास कीयोजनाओं को लागू करने के लिए स्थायी आयोग की स्थापना करना ज्यादा प्रभावी नहीं होगा, बल्कि यह शिकायत निवारण करेगा तथा इसलिए इसका अनुसूचित जाति के लिए (राष्ट्रीय अनुसूचित जातिआयोग), अनुसूचित जनजाति के (राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग) और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए (राष्ट्रीय अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग) जैसे मौजूदा आयोगों के साथ टकराव होगा।इसके बाद सरकार ने यह निर्णय लिया कि सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के तत्वाधान में संस्था पंजीकरण अधिनियम,1860 के तहत एक विकास एवं कल्याण बोर्ड की स्थापना की जाए, जिसके माध्यम सेविमुक्त, घुमंतू और अर्धघुमंतू समुदायों (डीएनसीएस) के लोगों के विकास और कल्य़ाण कार्यक्रमों को लागू किया जा सके।आयोग द्वारा तैयार की गई समुदायों की राज्यवार सूची इस आशय से पूरी नहीं है क्योंकि कुछ समुदायों के बारे में आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि उन्हें और अधिक विधिमान्यकरण की आवश्यकता है।