सामाजिक परिवर्तन के लिए उद्देश्यपूर्ण शिक्षा ही सबसे शक्तिशाली हथियार


वर्तमान परिवेश में शिक्षा का क्षेत्र पहले की अपेक्षा बहुत व्यापक हो चुका है। इसलिए आज हमें प्रत्येक बालक को अंग्रेजी, गणित, भूगोल, विज्ञान आदि विषयों के उच्च कोटि के ज्ञान के साथ ही उसे सामाजिक एवं आध्यात्मिक ज्ञान भी देना चाहिए। आज हमारी शिक्षा बच्चों को केवल उनके निर्धारित विषयों का ज्ञान कराकर केवल स्मार्ट बना रही है जबकि शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य प्रत्येक बालक को गुड तथा स्मार्ट दोनों बनाना चाहिए। यदि हमने बालक को सर्वोच्च भौतिक शिक्षा के साथ ही उसे परमात्मा की आज्ञाओं पर चलना सिखा दिया तो वह बालक परमपिता परमात्मा की बनाई हुई इस सारी दुनिया में एकता और शांति की स्थापना के लिए कार्य करके मानव जीवन के उच्चतम लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। इसके लिए हमें बाल्यावस्था से ही प्रत्येक बालक को गुड एवं स्मार्ट बनाते हुए उनमें विश्वव्यापी समस्याओं को हल करने की अपार क्षमता को विकसित करना चाहिए। अर्थात बालक को सही-गलत, अच्छे-बुरे का ज्ञान शिक्षा के माध्यम से ही प्राप्त हो सकता है और इससे बालक का शैक्षिक, सामाजिक व आध्यात्मिक संतुलित विकास संम्भव है।


रामायण की एक लाइन में सीख है कि 'सीया राम मय सब जग जानी ' अर्थात् संसार के प्रत्येक व्यक्ति के प्रति मेरा राम-सीता की तरह का श्रद्धा भाव हो। गीता का सन्देश है कि न्यायार्थ अपने बन्धु को भी दण्ड देना चाहिए। चारों वेदों का ज्ञान एक लाइन में है कि उदार चरित्र वाले के लिए यह वसुधा कुटुम्ब के समान है। समस्त प्राणी मात्र से हित में रत हो जाये। बाईबिल की एक लाइन में सीख है कि अपने पड़ोसी को भी अपने जैसा प्रेम करो। कुरान की सीख है कि ऐ खुदा सारी खिलकत को बरकत दे। गुरू ग्रन्थ साहिब की सीख है कि जब तेरे हृदय में सारे विश्व के लिए भलाई की भावना होगी तो नानक का नाम तुझे परमात्मा की ओर ले जायेगा। बहाई धर्म के पवित्र ग्रन्थ किताबे अकदस की सीख है कि यह पृथ्वी एक देश है और हम सब इसके नागरिक है। इसलिए हमें विश्व के प्रत्येक बच्चों को इन सभी धर्मों की शिक्षाओं का ज्ञान कराने के साथ ही साथ इन शिक्षाओं पर चलने वाला भी बनाना है। अर्थात सभी धर्मों का एक ही उद्देश्य है कि बालक को वह रास्ता बताना जो शांति और प्रेम की तरफ अग्रसर हो।


आज मनुष्य पवित्र ग्रन्थों की केवल आरती ही करते हैं, वे अपने जीवन में उन पवित्र ग्रंथों की शिक्षाओं को ग्रहण नहीं करते हैं। जबकि मनुष्य के जीवन का एक ही उद्देश्य है - प्रभु की शिक्षाओं को जानना तथा उसे आत्मसात करके उसके अनुरूप जीवन जीना। वास्तव में पवित्र ग्रन्थों का एक मंत्र, वचन, चौपाई, शब्द एक जीवन के लिए ही नहीं वरन् अनेक जन्मों के लिए काफी है। परमात्मा ने जो भी ज्ञान पवित्र ग्रन्थों के माध्यम से मानव जाति के लिए भेजा है वह हम सबकी भलाई के लिए भेजा है नुकसान के लिए नहीं। परमपिता परमात्मा द्वारा बनाया गया यह विश्व समाज भी अपना है, पराया नहीं है। इसलिए सारी वसुधा को सबके रहने योग्य बनाने के लिए हमें जीवन-पर्यन्त कार्य करना चाहिए। हमें इसकी शुरूआत विश्व के प्रत्येक बालक को बचपन से ही ‘संतुलित एवं उद्देश्यपूर्ण शिक्षा’ देकर करनी चाहिए। वास्तव में संतुलित एवं उद्देश्यपूर्ण शिक्षा ही वह सबसे शक्तिशाली हथियार है, जिसका उपयोग करके हम संसार भर में व्याप्त समस्याओं का समाधान आसानी से कर सकते हैं।


डॉ. जगदीश गाँधी