सोचे बात विधान की

 


भनक लगी है हमको, उनके बदले हुए रुझान की।


इसीलिए हम आओ बैठे, सोचे बात विधान की ।।


 


हर ललाट पर लेख लिखा है, कैसी विधि कैसी भाषा है।


अर्थ कहा किसने पहिचाने, विधि की बात बिधाता जाने।


 


गले पड़ी है डोर सभी के, धर्म नियम अमान की।


बीत रहा है समय चलो, अब सोचे बात विधान की।।


 


पूर्वजो ने सपने पाले, आये नीव हिलाने वाले।


नीव हिली तो कलह मचेगा, राजमहल भी नहीं बचेगा।।


 


आओ चले फ़िाजत कर ले, बचे हुए सामान की।


कुशल क्षेम सोचे समाज की, सोचे बात विधान की।।


 


मूल नहीं कट जाए भूल से, सूक्ष्म नहीं हट जाए स्थूल से।


उलटी हो न कही विधि गति की, राह नहीं छूटे सहमति की।।


 


धरती को तो समझे वे जो, करते बात उडान की।


आशाओ से भरी निगाहें, सोचे बात विधान की।।


 


बनकर भीमराव या गांधी, लाकर तो दिखलाओ आंधी।


बनो कृष्ण जैसे चरवाहे, रोके इन्द्र भले ही चाहे।।


 


मेरी कलम करेगी पूजा, ऐसे हर इंसान की।


आओ बैठे बात विचारे, बदले हुए रुझान की।।


 


भनक लगी है हमको, उनके बदले हुए रुझान।


इसीलिए हम आओ बैठे, सोचे बात विधान की।।


डॉ. जे.पी. बघेल (मुम्बई)