वैश्विक युग की महत्ता को स्वीकार करते हुए एक ‘विश्व भाषा’ होनी चाहिए


दुनिया भर में आई सूचना एवं संचार क्रांति से देशों के मध्य दूरियां कम होती जा रहीं हैं। इस लिए विभिन्न देशों के नागरिकों के मध्य सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने तथा विश्वव्यापी समस्याओं को समझने तथा उनके समधान पर विचार-विमर्श करने के लिए संसार की एक विश्व भाषा होनी चाहिए। संयुक्त राष्ट्र संघ ने छः भाषाओं अरबी, चीनी, अंग्रेजी, फ्रेन्च, रूसी एवं स्पेनिश को विश्व की सम्पर्क भाषाओं (लिंक लेंग्वेज) के रूप में स्वीकारा है, लेकिन अंग्रेजी को छोड़कर शेष पांच भाषायें अपने देश में ही सिमट कर रह गयी। आज अंग्रेजी विश्व भाषा के रूप में सारे विश्व में फैल गयी है। अंग्रेजी आज तकनीकी, संचार, आधुनिक चिकित्सा, इण्टरनेट, कम्प्यूटर की विश्वव्यापी भाषा भी बन गयी है। इस लिए वैश्विक युग की महत्ता को स्वीकार करते हुए हमें संसार के सभी बच्चों को अपनी राष्ट्र भाषा के साथ ही विश्व भाषा के रूप में अंग्रेजी का बचपन से ही अच्छा ज्ञान कराना चाहिए।


बच्चों में बाल्यावस्था से ‘विश्वव्यापी समझ’ विकसित करनी चाहिए -


हम अपने विद्यालय में विश्व के विभिन्न देशों के छात्रों को प्रतिवर्ष विभिन्न विषयों की अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की 29 शैक्षिक प्रतियोगिताओं में प्रतिभाग करने के लिए आमंत्रित करते हैं। इसके साथ ही हमारे विद्यालय के सर्वाधिक छात्र वर्ष भर दूसरे देशों में आयोजित शैक्षिक कार्यक्रमों में प्रतिभाग करने जाते हैं। बच्चों की ‘वर्ल्ड पार्लियामेन्ट’ का आयोजन हम अपने प्रत्येक शैक्षिक कार्यक्रम के प्रारम्भ में करते हैं। बच्चों की इस वर्ल्ड पार्लियामेन्ट में विश्व के विभिन्न देशों के प्रतिनिधि बने बच्चे विश्व की समस्याओं तथा उनके समाधान पर चर्चा करते हैं। बच्चों की प्रत्येक वर्ल्ड पार्लियामेन्ट का एजेण्डा अलग-अलग होता है। इस प्रकार हम बच्चों में बाल्यावस्था से ही उन्हें विश्व की समस्याओं का ज्ञान कराने के साथ ही उनमें उसके समाधान आपसी परामर्श द्वारा निकालने की क्षमता विकसित कर रहे हैं। साथ ही विश्व भर के बच्चों को यह संकल्प कराया जा रहा है कि एक दिन दुनियाँ एक करूँगा धरती स्वर्ग बनाऊँगा, विश्व शान्ति का सपना एक दिन सच कर दिखलाऊँगा।


बच्चों को ‘विश्व नागरिक’ के रूप में विकसित करें -


बच्चों को बाल्यावस्था से विद्यालय, परिवार तथा समाज के द्वारा यह विचार देना चाहिए कि ईश्वर एक है। सभी धर्म एक हैं तथा सम्पूर्ण मानवजाति एक है। सभी प्रकार के पूर्वाग्रह दूर होकर व्यक्ति स्वयं सत्य की खोज करे,। विश्व की एक सहायक विश्व भाषा हो। सारे विश्व की एक अर्थ व्यवस्था हो और एक प्रभावशाली विश्व न्यायालय का गठन हो। एक प्रभावशाली अन्तर्राष्ट्रीय कानून बनाने वाली विश्व संसद का निर्माण हो और विश्व की एक राजनैतिक व्यवस्था हो, एक भाषा, एक मुद्रा हो। विश्व सरकार बने तथा संस्कृतियों की विविधता की रक्षा हो। इस प्रकार विश्व की एक न्यायपूर्ण विश्व व्यवस्था बनाकर निकट भविष्य में सारी वसुधा को कुटुम्ब बनाने की परिकल्पना साकार होगी।


20वीं सदी की शिक्षा के परिणाम दुखदायी रहे हैं -


20वीं सदी की शिक्षा ने संकुलित राष्ट्रीयता पैदा की थी जिसके दुखदायी परिणाम दो विश्व युद्धों, हिरोशिमा व नाकासाकी का महाविनाश तथा राष्ट्रों के बीच अनेक युद्धों के रूप में सामने आ चुके हैं। प्रतिवर्ष 155 देशों का रक्षा बजट बहुत तेजी से बढ़ता जा रहा है। इस पर सभी देशों को मिल-बैठकर विचार करना चाहिए। आतंकवाद तथा पड़ोसी देशों से देश को सुरक्षित करने के लिए शान्ति प्रिय देश भारत को भी अपना रक्षा बजट प्रतिवर्ष बढ़ाना पड़ रहा है। भारत का रक्षा बजट दुनिया में आठवें नम्बर पर है। हम जैसे गरीब देश रक्षा बजट के मामले में जर्मनी आदि देशों से आगे हैं। युद्ध तथा युद्धों की तैयारी में हजारों करोड़ डालर विश्व में प्रतिदिन खर्च हो रहे हैं। शान्ति पर कुछ भी खर्चा नहीं आता है। युद्धों तथा युद्धों की तैयारी से पैसा बचाकर इस पैसे से संसार के प्रत्येक बच्चे के लिए शिक्षा, सुरक्षा, चिकित्सा, रोटी, कपड़ा और मकान की अच्छी व्यवस्था की जा सकती है।


21वीं सदी की शिक्षा विश्वव्यापी होनी चाहिए -


युद्ध के विचार मानव मस्तिष्क में उत्पन्न होते हैं और मनुष्य के विचार ग्रहण करने की सबसे श्रेष्ठ अवस्था बचपन है। इसलिए हमें मानव मस्तिष्क में शान्ति के विचार बचपन से ही डालना होगा। 21वीं सदी की शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो बालक को सारे विश्व से प्रेम करने के विश्वव्यापी दृष्टिकोण को विकसित करे। हम बड़ी उम्र के लोगों की जिम्मेदारी हैं कि संसार से जाने के पूर्व हमें विश्व के बच्चों को सुरक्षित भविष्य देकर जाना चाहिए। एकता तथा शान्ति से ओतप्रोत उद्देश्यपूर्ण शिक्षा ही इसका  एक मात्र समाधान है। विश्व एकता की शिक्षा इस युग की सबसे बड़ी आवश्यकता है। यह पृथ्वी पूरी की पूरी हमारे परमात्मा की है। परमात्मा की बनायी पृथ्वी अपनी ही है। यह परायी नहीं है। यह विश्व परिवार हमारे परमात्मा का है। सारे विश्व की एक न्यायपूर्ण विश्व व्यवस्था बनाकर आध्यात्मिक साम्राज्य स्थापित करना है।


हम सबको मिलकर मानव-जाति का भाग्य संवारना है -


हम सबको मिलकर मानव-जाति का भाग्य संवारना है। जाति-धर्म तथा संकुचित राष्ट्रीयता के नाम पर एक-दूसरे से नफरत करने का परिणाम बड़ा विनाशकारी होता है। इसी प्रकार यह सभी जानते हैं कि दो राष्ट्रां या अनेक राष्ट्रों के बीच युद्ध का परिणाम कितना विनाशकारी होता है और विश्व शान्ति में ही सभी देशों का विकास एवं दुनिया भर के बच्चों का भविष्य सुरक्षित रहता है। हमें दुनिया भर के बच्चों के मन-मस्तिष्क में इस बात का बीजारोपण करना है कि यह सारी पृथ्वी हमारा अपना घर है और हमें मिलकर इसे सुन्दर व सुरक्षित बनाने के लिए प्रयास करना है। इसके लिए हमें विश्व की एक भाषा के महत्व को स्वीकार करना होगा, जिसके माध्यम से ही दुनिया भर के बच्चे आपसी बातचीत एवं परामर्श के द्वारा न केवल विश्वव्यापी समस्याओं को समझेंगे बल्कि उनका समाधान करके सारे विश्व में एकता एवं शांति भी स्थापित करेंगे।


डॉ. जगदीश गाँधी