अर्थव्यवस्था में किसी भावी संकट का संकेत है, सोने-चांदी की कीमतों के अनुपात में भारी बढ़ोतरी


नई दिल्ली : सोने-चांदी की कीमत का अनुपात साल 2010 में निचले स्तर पर जाने के बाद लगातार बढ़ा है। फिलहाल यह अनुपात 86 से अधिक है। सवाल यह उठ रहा है कि इस कीमती धातु की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी का क्या औचित्य है ?  क्या यह अर्थव्यवस्था में किसी भावी संकट का संकेत है? वाशिंगटन स्थित सिल्वर इंस्टिट्यूट का कुछ ऐसा ही मानना है।


सिल्वर इंस्टिट्यूट ने गुरुवार को जारी अपनी सालाना वर्ल्ड सिल्वर रिपोर्ट, 2019 में कहा, ‘जब सोने-चांदी की कीमतों के अनुपात में बढ़ोतरी होती है, तो यह किसी भावी संकट का पता चलता होता है।’ सामान्यतया अगर अनुपात 80 से ऊपर है तो यह काफी अधिक माना जाता है और इस बार पिछले एक साल का औसत 82 से अधिक रहा है। यह अनुपात बताता है कि एक औंस सोने से कितनी औंस चांदी खरीदी जा सकती है। इसलिए यह अनुपात जितना अधिक होता है सोने की कीमत उतनी ही अधिक होती है और अनुपात कम होने का मतलब होता है कि चांदी में मजबूती आ रही है।


रिपोर्ट के मुताबिक, ‘संकट की स्थिति में सोने-चांदी की कीमत के अनुपात में भारी बढ़ोतरी हो सकती है। अनुपात कितना होगा, यह संकट की प्रकृति पर निर्भर करती है। अगर परिस्थितयों से लगता है कि बाजार में अस्थिरता बढ़ेगी, तो निवेशक सामान्यता चांदी की तुलना में सोने को ज्यादा तरजीह देंगे।


यह अनुपात हालांकि किसी भावी संकट का एकमात्र संकेत नहीं है। एक हालिया रिपोर्ट में वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल ने कहा है कि दुनियाभर के केंद्रीय बैंक ज्यादा से ज्यादा सोना खरीदकर अपने विदेशी मुद्रा भंडार में इसकी मात्रा बढ़ा रहे हैं, जो किसी भावी संकट का संकेत लग रहा है, जिसके लिए उन्हें लग रहा है कि डायवर्सिफिकेशन की जरूरत है। साथ ही, मौजूदा समय में डॉलर के बाद सोने को ही निवेश का बेहतर जरिया समझा जाता है। साल 2018 में दुनियाभर के केंद्रीय बैंकों ने अपने रिजर्व में 650 टन सोने को शामिल किया, जो सन् 1971 के बाद बैंकों द्वारा सालाना सोने की सबसे बड़ी खरीद थी।


सिल्वर इंस्टीट्यूट ने अतीत में बाजार में किसी बड़े संकट के आने से पहले इस अनुपात में बढ़ोतरी पर भी प्रकाश डाला है, जब यह अनुपात 80 को पार कर गया। 2008 की वैश्विक मंदी के वक्त यह अनुपात 80 को पार कर गया था। खाड़ी युद्ध के वक्त भी यह अनुपात काफी अधिक हो गया था।