नई दिल्ली चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) के खिलाफ एक महिला द्वारा लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों पर शनिवार को सुप्रीम कोर्ट में विशेष सुनवाई हुई। बेंच ने कहा कि चीफ जस्टिस के खिलाफ आरोपों पर एक उचित बेंच (अन्य जजों की बेंच) सुनवाई करेगी। कोर्ट ने कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता 'बेहद गंभीर खतरे' में है। इस दौरान सीजेआई ने आरोपों को निराधार बताते हुए इसे अगले हफ्ते कुछ अहम मामलों की होने वाली सुनवाई से उन्हें रोकने की कोशिश करार दिया।
विशेष सुनवाई की वजह बताते हुए सीजेआई रंजन गोगोई ने कहा, 'मैंने आज अदालत में बैठने का असामान्य और असाधारण कदम उठाया है क्योंकि चीजें बहुत आगे बढ़ चुकी हैं।...न्यायपालिका को बलि का बकरा नहीं बनाया अपनी सफाई में रंजन गोगोई ने यह भी कहा कि उनके ऊपर ऐसे आरोप इसलिए लगाए जा रहे हैं क्योंकि अगले हफ्ते उन्हें कुछ अहम केसों की सुनवाई करनी है। इसमें राहुल गांधी के खिलाफ मानहानि का केस, पीएम मोदी पर बनी फिल्म पर लगी रोक पर सुनवाई जैसे मामले शामिल हैं। गोगोई ने साफ किया कि वह अपने 7 महीने के बचे कार्यकाल में बचे सभी की सुनवाई करेंगे और उन्हें ऐसा करने से कोई नहीं रोक सकता।
सुनवाई के दौरान किसने क्या कहा -
चीफ जस्टिस: जज को इस तरह की स्थिति में काम करना पड़ेगा तो कोई भी समझदार व्यक्ति यहां काम करने नहीं आएगा। मैं उस कमिटी का हिस्सा नहीं बनूंगा जो कमिटी महिला के आरोपों की जांच करेगी। इस मामले में हमारे सहयोगी जज मामले को एग्जामिन करेंगे। मुझे मौजूदा बेंच का गठन करना पड़ा क्योंकि ये मेरी जिम्मेदारी है और ये असाधारण कदम इसलिए उठाना पड़ा क्योंकि न्यायपालिका की स्वतंत्रता खतरे में है। महिला का ये आरोप अकल्पनीय है। मैं समझता हूं कि ये उचित नहीं होगा कि आरोप का जवाब भी दूं क्योंकि ये भी आपको नीचे ले जाता है। कुछ ताकतें इसके पीछे हैं जो चीफ जस्टिस के दफ्तर को निष्क्रिय करना चाहती हैं।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता: इस मामले को बेहद गंभीरता से लिया जाना चाहिए। अनाप शनाप चीजें छापी जा रही हैं।
अटॉर्नी जनरल: मैं कोर्ट का ऑफिसर हूं लेकिन मैं सरकार के बचाव के कारण हमले का शिकार होता हूं। पहले दो केस ऐसे हुए जिसमें एक मामला पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज के खिलाफ था और दूसरा वकील के खिलाफ तब मीडिया से कहा गया था कि वह कुछ भी प्रकाशित न करे।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता: ये ब्लैकमेलिंग टेक्टिस लग रहा है। मामले में महिला के खिलाफ जांच होनी चाहिए। इस तरह की अनाप शनाप बातें प्रकाशित की गईं।
जस्टिस मिश्रा: चिंता जूडिशियरी की स्वतंत्रता को लेकर है। लोगों का जूडिशियरी में विश्वास है।
जस्टिस खन्ना: जज केस में फैसला लेते हैं लेकिन उन्हें इस तरह के तनाव में नहीं रखा जा सकता। एक पूर्व कर्मी को प्रक्रिया के तहत नौकरी से हटाया जाता है और एकाएक वह एक दिन जगती है और इस तरह का आरोप लगाती है।
चीफ जस्टिस: सुप्रीम कोर्ट के तमाम कर्मी के साथ फेयर और सभ्य तरीके से पेश आया जाता है।
जस्टिस अरुण मिश्रा: (चीफ जस्टिस पीछे की तरफ हो गए और जस्टिस मिश्रा ने बोलना शुरू किया) मेरा सुझाव है कि अप्रामाणिक तथ्यों को मीडिया को प्रकाशित नहीं करना चाहिए। (अपने आदेश में ) बेंच कोई आदेश पारित नहीं कर रही है। लेकिन क्या प्रकाशित किया जाए ये मीडिया पर छोड़ती है कि वह संयम और जिम्मेदारी से काम ले क्योंकि बदनाम करने वाले बेबुनियाद आरोपों से जूडिशियरी की स्वतंत्रता प्रभावित होती है और इससे उसकी प्रतिष्ठा पर ठेस पहुंचती है जिसकी भरपाई नहीं हो सकती। ऐसे में वह मीडिया पर छोड़ते हैं कि जिसकी जरूरत नहीं है वैसे मैटेरियल को वापस कर सकते हैं।
आरोप लगानेवाली महिला के बारे में क्या बोले चीफ जस्टिस
चीफ जस्टिस ने कहा कि महिला का पति दिल्ली पुलिस में है और उसे एक क्रिमिनल केस की वजह से सस्पेंड तक किया गया था। साथ ही महिला को भी एक दिन की कस्टडी में रहना पड़ा था। चीफ जस्टिस ने बताया कि वह महिला उनके दफ्तर में 27 अगस्त से 22 अक्टूबर तक काम कर रही थी। महिला ने अपनी शिकायत में 11 अक्टूबर का जिक्र किया है। वहीं चीफ जस्टिस के मुताबिक, उन्होंने खुद अपने प्रधान सचिव के जरिए 12 और 13 अक्टूबर को सेक्रेटरी जनरल को महिला के गलत व्यवहार के बारे में जानकारी देते हुए लिखित शिकायत दी थी।
गोगोई ने आगे कहा, 'महिला का पति लगातार मुझे फोन करके उसकी पत्नी को वापस काम पर रखने के लिए गुजारिश करता रहता था। वह अपना सस्पेंशन हटवाने में भी मेरी मदद चाहता था। उस महिला का क्रिमिनल रिकॉर्ड है। 2011 में उसपर दो एफआईआर दर्ज हुई थी। पहले केस में उसे क्लीन चिट मिल गई थी वहीं दूसरे में उसे पुलिस ने चेतावनी देकर छोड़ दिया था और कहा था कि वह अपने व्यवहार को सुधारे।' चीफ जस्टिस ने यहां एक अन्य मामले का भी जिक्र किया जिसमें महिला पर सुप्रीम कोर्ट में नौकरी लगवाने के बदले 50 हजार रुपये मांगने का आरोप है।