अर्थव्यवस्था का संकट और उम्मीदें


मौजूदा वित्त वर्ष में तीसरी बार नीतिगत दरों में कटौती कर रिजर्व बैंक ने इस बात का संकेत दिया है कि सुस्त पड़ी अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए हर संभव कदम उठाए जाएंगे। इसीलिए एक बार फिर रेपो दर में 0.35 फीसद की कटौती की गई है। रिवर्स रेपो दर को भी संशोधित किया गया है। रिजर्व बैंक ने यह कदम इस उम्मीद में उठाया है कि अब तो वाणिज्यिक बैंक ब्याज दरें घटाएंगे। देखने की बात यह है कि अब बैंक कर्ज की दरें घटाते हैं या नहीं। इससे पहले भी दो बार जब केंद्रीय बैंक ने नीतिगत दरों में कटौती की थी, तब भी बैंकों से जोर देकर कर्ज सस्ता करने को कहा गया था। लेकिन ज्यादातर बैंकों ने ऐसा नहीं किया। कुछ बैंकों ने ब्याज दरें घटाई भी तो बहुत ही मामूली, जिनका ग्राहकों को लाभ नहीं के बराबर मिलता। ऐसे में घर, वाहन या अन्य जरूरतों के लिए कर्ज सस्ता नहीं हुआ और बाजार उठ नहीं पाया। अभी भी हालत यह है कि कर्ज महंगा है। जाहिर है, बैंकों की हालत संतोषजनक नहीं है, डूबते कर्ज की मार से बैंक अभी तक उबर नहीं पाए हैं। ऐसे में सस्ता कर्ज देना बैंकों के लिए भी कम जोखिम भरा नहीं है। यही वजह है कि इस साल फरवरी से लेकर अब तक नीतिगत दरों में चार बार कमी किए जाने के बाद भी बैंकों ने अपनी तिजोरी नहीं खोली है। देश की अर्थव्यवस्था को लेकर इन दिनों जिस तरह की खबरें आ रही हैं, वे चिंताजनक हैं। अर्थव्यवस्था में मंदी के स्पष्ट संकेत हैं। सबसे बुरी हालत ऑटोमोबाइल और कलपुर्जा क्षेत्र की है। ज्यादातर वाहन निर्माता कंपनियों ने उत्पादन बहुत ही कम कर दिया है और बड़ी संख्या में कामगारों की छुट्टी कर दी है। रियल एस्टेट भी ठंडा पड़ा है और इसकी मार सीमेंट कारखानों पर पड़ी है। छोटे कारोबार और उद्योग भी ठप हैं। ज्यादातर उद्योगों की हालत तो यह है कि कर्ज लेने की स्थिति में भी नहीं हैं। अर्थव्यवस्था के ज्यादातर क्षेत्र मंदी की चपेट में हैं और नौकरियां जाने से लोग सड़कों पर आ रहे हैं।


आने वाले दिनों में यह स्थिति और भयावह रूप लेगी। मौद्रिक नीति में इन चिंताओं की झलक साफ है। इसीलिए केंद्रीय बैंक ने जीडीपी वृद्धि दर का पूर्वानुमान घटा कर 6.9 फीसद कर दिया है। इस साल जून में केंद्रीय बैंक ने मौजूदा वित्त वर्ष के लिए जीडीपी वृद्धि का अनुमान सात प्रतिशत रखा था। केंद्रीय बैंक भी मान रहा है कि न तो बाजार में मांग है और न ही निवेश आया। अर्थव्यवस्था की मौजूदा हालत को वैश्विक मंदी या बाहरी कारणों का हवाला देकर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। मांग बनाने और उद्योगों को संकट से निकालने के लिए पहल बैंकों को ही करनी होगी और कर्ज सस्ता करने की दिशा में बढ़ना होगा केंद्रीय बैंक की कोशिश पिछले छह-सात महीनों में मौद्रिक नीति को उदार बनाने की रही है और जनवरी से लेकर अब तक चार बार नीतिगत दरों में कटौती करके उसने ऐसा किया भी है। अप्रैल 2010 के बाद यह पहला मौका है जब नीतिगत दरें अपने सबसे कम स्तर पर हैं। हैरान करने वाली बात तो यह है कि हर दो महीने में नीतिगत दरों में कटौती के बावजूद बैंक कर्ज महंगा हो रहा है। इस साल जनवरी में बैंकों की औसत कर्ज दर 10.38 फीसद थी जो मई में बढ़ कर 10.41 फीसद हो गई। रिजर्व बैंक के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह व्यावसायिक बैंकों पर कर्ज सस्ता करने के लिए दबाव बनाए। तभी नीतिगत दरों में कटौती का लाभ लोगों तक पहुंच पाएगा l