बढ़ती आबादी पर प्रधानमंत्री का संदेश समयानुकूल है


प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वाधीनता दिवस पर राष्ट्र के नाम अपने सम्बोधन में परिवार को छोटा रखने की अपील की है। देश की जनता भूल गई है कि परिवार को छोटा रखना केवल देश ही नहीं, खुद परिवार के भी हित में है। कोई भी राष्ट्र हो वह जिस गति से विकास करता है यदि उसकी आबादी उस अनुपात से अधिक गति से बढ़ती है तो विकास के लाभ लोगों को नहीं मिल पाते। कोई भी क्षेत्र हो उसमें संसाधन तो सीमित होते हैं और वे तेजी से बढ़ती हुई आबादी का बोझ सहन नहीं कर पाते पानी को ही ले लें।आज देश के अधिकांश इलाकों में पेयजल और सिंचाई जल दोनों के लिए मारामारी मची हुई है। आज से पच्चीस-तीस साल पहले देश में जितना पानी उपलब्ध था आज भी उतना ही या उससे कम मात्रा में उपलब्ध है इसके विपरीत आबादी तेजी से बढ़ रही है और प्रति व्यक्ति प्रतिदिन पानी की लागत में बढ़ोतरी हो रही है। ऐसे में आप निरंतर घटते जल को निरंतर बढ़ती आबादी में किस तरह न्यायसंगत तरीके से वितरित कर सकेंगे।


सरकार के आलोचक आज बार-बार पूछते हैं कि नौजवानों को नौकरियां क्यों नहीं मिलती? सवाल फिर वहीं खड़ा होता है कि तेजी से बढ़ती आबादी के अनुपात में नौकरियों में वृद्धि कैसे हो सकती है। सब जानते हैं कि सरकार का खर्चा ज्यादातर अपने कर्मचारियों के वेतन चुकाने, उनकी पेंशन की अदायगी में निकल जाता है यह भी सब जानते हैं कि सरकारी नौकरी मिलने के बाद कोई भी कर्मचारी, कोई भी अफसर काम नहीं करना चाहता ज्यादातर मामलों में कामचोरी और भ्रष्टाचार की वजह से सरकारी नौकर देश पर बोझ ही साबित होते हैं। कहने को चाहे हम कह दें कि हमने इतनी नौकरियां दे दी, लेकिन असलियत यही होती है कि हमने देश पर बोझ बढ़ा दिया। बढ़ती आबादी का मतलब है कि ज्यादा स्कुल, ज्यादा अध्यापक, ज्यादा स्कूल भवन। अब आपके पास जमीन सीमित है तो आप बढ़ती आबादी के लिए अधिक स्कूल या अधिक हस्पताल या अन्य सुविधाओं के लिए भवन कहां से जुटाएंगे। आज हालत यह हो गई है कि जमीनों के भाव आसमान छूने लगे हैं। सरकार अपनी जमीन बेचने में ज्यादा दिलचस्पी दिखाती है और स्कूलों और हस्पतालों के लिए जमीनें नहीं मिल पाती। स्कूल खोले भी तो उन भवनों में न खेल के मैदान हैं और न प्रयोगशालाएं और न ही पुस्तकालय। अध्यापकों की संख्या तो कभी पूरी हो ही नहीं सकती।


बढ़ती आबादी के लिए आप भोजन कहां से जुटाएंगे। चूंकि जमीन सीमित है इसलिए खेतों की संख्या और उनके क्षेत्रफल भी निरंतर सिकड रहे हैं। बढ़ती आबादी के लिए पर्याप्त अनाज, तिलहन, दलहन आदि पैदा कर पाना अब सम्भव नहीं रहा है। विडम्बना यह है कि किसान लगातार खेती का पेशा छोड़ रहे हैं और बढती आबादी के लिए कृषि उत्पादों की जरूरत में वृद्धि हो रही है। इसलिए बढ़ती आबादी चहुंमुखी समस्या है। बढ़ती आबादी, बढ़ती बीमारियों का कारण भी बनी है। जिन परिवारों में बच्चे ज्यादा होते हैं, वहां मां अमूमन खून की कमी और कुपोषण का शिकार होती है। ऐसी मांओं के द्वारा जन्म गये बच्चे भी बेहद कमजोर, बीमार और कुपोषित होते हैं। इन सबके इलाज और स्वास्थ्य सेवाओं को मुहैया करवाने के लिए ज्यादा हस्पतालों की जरूरत है, ज्यादा डॉक्टरों और नर्सी आदि की। सवाल उठता है कि सरकार के पास सीमित संसाधनों के चलते आप असीमित संख्या में सरकारी मुलाजिम नहीं रख सकते। एक तरफ देश में वातावरण है कि शिक्षा, इलाज, सफर आदि सस्ता और सरकार की तरफ से अनुदानित हो। दूसरी तरफ सरकार के खर्चे लगातार बढ़ रहे हैं।


यही बीमार सोच है, जिससे देश का विकास रूका हुआ है। प्रधानमंत्री ने आबादी सीमित रखने का संदेश क्या दिया कुछ राजनीतिज्ञों ने इस पर अपनी रोटियां सेंकनी शरू कर दी। खासतौर पर स्वनामधन्य मस्लिम नेताओं और कांग्रेस आदि ने आबादी सीमित रखने के विचार पर ही सवाल खड़े कर दिये, जो एक बीमार सोच का परिचायक है। इस बारे में भला दो राय कैसे हो सकती हैं कि आज के युग में परिवार सीमित होना चाहिए। एक तरफ आप कहते हैं कि नौकरियां नहीं मिल रहीं या आर्थिक गतिविधियां शिथिल हैं या बाजार में व्यापार मंदा है. पैसा है ही नहीं। दसरी तरफ आप बच्चे पैदा किये जा रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने साफ कहा है कि बच्चा पैदा करने से पहले सबको सोच लेना चाहिए कि नये बच्चे की परवरिश के लिए उनके पास पर्याप्त संसाधन हैं या नहीं। आज के आम आदमी के पास अपने मौजूदा परिवार को चलाने के लिए भी पैसा, अनाज व अन्य सुविधाएं नहीं होती हैं ऐसे में हम ज्यादा बच्चे कैसे पैदा कर सकते हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने सम्बोधन के माध्यम से बहत-सी उपयोगी बातें कही हैं। पूरे देश को उनके सम्बोधन पर गम्भीरता से विचार करना चाहिए। यदि परिवार छोटा रखने का उनका संदेश स्वागत योग्य है तो दूसरी तरफ प्लास्टिक की थैलियों का इस्तेमाल न करने का उनका संदेश भी बेहद समीचीन और समयानुकूल है। देश के पर्यावरण को बचाना है तो हर तरह के प्लास्टिक के इस्तेमाल पर रोक लगनी चाहिए। इसके विकल्प के रूप में मोदी जी ने कपड़े और जूट के थैलों की जो वकालत की है वह अनुकरणीय है।