भारत में मंदी की मार


       हाल ही में आई खबर के मुताबिक विश्व बैंक की 2018 की रैंकिंग में भारत की अर्थव्यवस्था पांचवें स्थान से फिसल कर सातवें नंबर पर आ गई। आर्थिक मोर्चे पर तेज रफ्तार विकास के दावों के बीच यह खबर निराश करने वाली है। लेकिन सवाल है कि अर्थव्यवस्था की मजबूती जिन कारकों पर टिकी होती है, उनमें कहां और कौन-सी कमजोरी आई जिससे आर्थिक विकास के बढ़ते कदम ठहर गए या फिर पीछे की ओर लौटे। गौरतलब है कि बाजार में वाहनों की बिक्री में भारी गिरावट के मद्देनजर इस उद्योग में उत्पादन से लेकर बिक्री तक के क्षेत्र में बड़ी तादाद में कर्मचारियों को नौकरियों से निकाला जा रहा है। उद्योग संगठन फाडा यानी फेडरेशन ऑफ ऑटोमोबाइल डीलर्स एसोसिएशन के मुताबिक सिर्फ पिछले तीन महीने के दौरान खुदरा विक्रेताओं ने बिक्री में भारी कमी की वजह से करीब दो लाख कर्मचारियों की छंटनी कर दी। यही नहीं, निकट भविष्य में हालात और बिगड़ने की आशंका जाहिर की जा रही है। इसके अलावा, खबर यह भी आई कि रेलवे ने अगले साल तक तीन लाख कर्मचारियों की छंटनी का इरादा जताया है।


       सवाल है कि बाजार में सामान की खरीदारी जिस तरह रोजगार और आय पर निर्भर है, उसमें इतने पड़े पैमाने पर लोगों के रोजगार से वंचित होने का क्या असर पड़ेगा? हालत तो यह है कि नौकरियों से वंचित लोगों के सामने कई बार रोजमर्रा का सामान खरीदने से पहले सोचने की नौबत आ जाती है। इससे आगे जिस तरह बाजार में अलग-अलग वस्तुओं की खरीदारी और बिक्री में लगे सामाजिक वगों की कड़ियां एक दूसरे से जुड़ी रहती हैं, उसमें क्या वाहनों की बिक्री में पहले से छाई मंदी की सूरत और नहीं बिगड़ेगी? यह ध्यान रखने की जरूरत है कि किसी एक क्षेत्र में नौकरियों में कटौती न केवल उस व्यवसाय को प्रभावित करती है, बल्कि उससे जुड़े दूसरे कारोबार और उसमें लगे लोगों के जीवन पर भी असर पड़ता है। यही वजह है कि वाहनों की बिक्री में भारी कमी के मद्देनजर इस उद्योग की कुछ बड़ी कंपनियों में उत्पादन में कटौती की गई तो उसके लिए तकनीकी कल-पुर्जे बनाने वाली दूसरी तमाम छोटी कंपनियों पर भी इसका काफी नकारात्मक असर पड़ा।


      बाजार की ताकत इस बात से आंकी जाती है कि उसमें किसी वस्तु की मांग, खरीद और बिक्री की तस्वीर कैसी है। इस लिहाज से देखें तो कई मामलों में लोगों के सामने पैसे खर्च करने के हालात पहले की तरह नहीं रह गए हैं और अब कुछ जरूरी खरीदारी भी टालने की नौबत आ रही है। इसका सीधा असर पहले बिक्री और उसके बाद उत्पादन पर पड़ना तय है। उत्पादन में कटौती की स्थिति में औद्योगिक इकाइयां खर्च कम करने के विकल्प  अपनाती है और उसमें सबसे बड़ी मार नौकरियों पर पड़ती है। वाहन उद्योग में रोजगार, आय, खरीदारी और बिक्री की एक दूसरे से जुड़ी श्रृंखला की वजह से यह स्थिति दूसरे क्षेत्रों में भी देखी जा सकती है। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि अर्थव्यवस्था की बुनियाद पर इसका कैसा असर पड़ रहा होगा l