लोगों को ठगने वाली योजनाएं चलाना अब आसान नहीं


निवेशकों को कम समय में मोटा मुनाफा देकर अमीर बनाने का सपना दिखाने वाली पोंजी योजनाओं पर अब लगाम कसी जा सकेगी। संसद ने 'अनियमित जमा योजनाएं विधेयक, 2019' को मंजूरी दे दी है। इसलिए उम्मीद की जानी चाहिए कि नया कानून लागू होने के बाद लोगों को ठगने वाली ऐसी योजनाएं चलाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो सकेगी। देश भर में हजारों छोटी-बड़ी चिटफंड कंपनियां और समूह इस तरह की योजनाएं चला रहे हैं और नए-नए घोटाले सामने आते रहे हैं। लेकिन ऐसी योजनाओं के घोटालेबाज इसलिए बच निकलते हैं कि पोंजी योजनाओं को लेकर अब तक कोई कड़ा कानून नहीं था। ऐसे में घोटालेबाजों को सजा नहीं मिल पाती थी।


पिछले एक दशक में पश्चिम बंगाल, ओड़ीशा और असम में जिस तरह से बड़े पैमाने पर चल रही पोंजी योजनाओं का खुलासा हुआ और जो गिरफ्तारियां हुई, उससे साफ है कि करोड़ों-अरबों की ऐसी ठगी बिना रसूखदारों और राजनीतिक संरक्षण के संभव नहीं होती। पश्चिम बंगाल में जो सारदा चिटफंड घोटालापर्ल समूह, रोजवैली घोटाला सामने आया, उसकी आंच राज्य सरकार के मंत्रियों विधायकों तक पहुंची थी। जाहिर है, जहां-जहां भी ऐसी कंपनियां चल रही हैं उनके कर्ताधर्ताओं को बचाने वाले सत्ता में मौजूद हैं। पोंजी योजनाओं के नाम पर फर्जीवाड़े के अब तक करीब एक हजार मामले सामने आ चुके हैं। चौंकाने वाली यह है कि इनमें लगभग एक तिहाई मामले सिर्फ पश्चिम बंगाल के हैं। यह कारोबार इसलिए फलता-फूलता रहा कि ज्यादातर योजनाओं के निवेशक जानकारी के अभाव में शिकायत ही नहीं कर पाए और कंपनियां पैसा लेकर चंपत होती रहीं। लेकिन जब पश्चिम बंगाल में सारदा, रोजवैली जैसे घोटालों का पर्दाफाश हुआ तब सरकारों की नींद खुली। पता चला कि पर्ल समूह की निवेश योजना में पांच लाख लोगों ने पैसे जमा कर रखे थे और यह रकम पचास हजार करोड़ के करीब थी। जब मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, रिजर्व बैंक और सेबी जैसे नियामक सक्रिय हुए और बड़े मामलों की जांच सीबीआइ के हवाले की गई, तब जाकर लगा कि लोगों के साथ धोखाधड़ी करने वाली कंपनियों के खिलाफ सख्त कानून की जरूरत है।


पिछले पांच साल में सीबीआइ ने पोंजी योजनाओं में घोटालों से जुड़े दो सौ मामले दर्ज किए हैं। आंकड़े और हकीकत बताते हैं कि भारत के शासन तंत्र में भ्रष्टाचार की कितना घुसपैठ है, जिसमें गरीब लोगों का पैसा डकारने वाले लोग बिना किसी भय से कारोबार करते रहते हैं। हाल में कर्नाटक में एक पोंजी घोटाले की जांच करने वाले आइएएस अधिकारी को डेढ़ करोड़ रुपए की घूस के मामले में पकड़ा गया। इस कंपनी का मालिक चालीस हजार निवेशकों का पैसा लेकर विदेश भाग गया। ऐसी कई दुखद घटनाएं भी सामने आईं जब पोंजी योजनाओं में पैसा डूब जाने पर लोगों ने खुदकुशी जैसे कदम तक उठा लिए। ऐसी योजनाओं में पैसा लगाने वाले ज्यादातर लोग मध्यमवर्गीय होते हैं और अच्छे मुनाफे के लालच में कंपनियों में पैसा लगा देते हैंऐसे धंधे करने वाली कंपनियां इसलिए बची रहती हैं कि वे रिजर्व बैंक, सेबी जैसे नियामकों के तहत नहीं आतीं और लोगों में जागरूकता की कमी का फायदा उठाती हैं।


नए कानून में कठोर उपाय किए गए हैं। लोगों को ठगने वाली योजनाएं चलाना अब आसान नहीं होगा। ऐसा करने वालों को दस साल तक की जेल और जुटाई गई रकम का दो गुना तक जुर्माना भरना होगा। अगर नियमित जमा योजना में मियाद पूरी होने पर पैसा नहीं लौटाया तो उस सूरत में सात साल जेल और पच्चीस करोड रुपए तक का जुर्माना हो सकता है। कानून भले कितना कड़ा क्यों न हो, उससे ज्यादा जरूरी है ऐसे अपराधियों को संरक्षण मिलना बंद हो।