गडरिया समाज को हरियाणा में मिला आरक्षण, पूरे देश में हो आन्दोलन


ग्वालियर : किसी व्यक्ति या समाज को उसका अधिकार केवल और केवल उसके कार्य और उसकी मांग से ही मिलता है। यदि आप किसी के सामने गिडगिडाते रहे तो आपका अधिकार आपको नहीं मिलेगा। अधिकार पाने के लिए आपको अपने सामर्थ्य और शक्ति के दर्शन कराना होते हैं। अपने अधिकार को पाने के लिए आपको सतत् परिश्रम और संघर्श करना होता है। जिस प्रकार से सुभाशित में बताया गया है कि किसी भी कार्य को तब तक सिद्ध नहीं किया जा सकता जब तक कि उद्यम अर्थात परिश्रम ना किया जाए। वनराज चाहे जितना भी शक्तिशाली क्यों ना हो कभी भी मृग उसके मुख तक स्वयं चलकर नहीं जाता है। उसे अपने आहार के लिए सतत संघर्श और परिश्रम करना पडता है। हमारा समाज भले ही संख्या बल में पूरे देश में अधिक हो, भले ही हमारे समाज " के पास सम्पति अधिक हो, चाहे फिर हमारे समाज - को अन्य समाज से पहले सभ्यता का ज्ञान हुआ होमाना किन्तु यदि आज हमारे पास संगठित शक्ति और सामर्थ्य नहीं है तो समाज शनैः शनैः अपने उस पद से युत होता जाएगा जिस पद का वह हकदार है। आज हमारा समाज आरक्षण के लिए लंबे समय से आन्दोलन कर रहा है। निश्चित ही आन्दोलन का कहीं कहीं लाभ भी मिला है। हाल ही में हरियाणा की भाजपा सरकार ने हमारे समाज को अनुसूचित जाति में शामिल कर लिया किन्तु उसने हमारी जाति गडरिया को सांसी उपजाति में शामिल कर हमारी जाति गडरिया का महत्व कम कर दिया हैअन्य राज्यों में चाहे फिर महाराष्ट्र हो या राजस्थान, उत्तर प्रदेश हो या मध्यप्रदेश सभी राज्यों में आज एक बृहद, संगठित और व्यापक आन्दोलन की आवश्यकता है। ऐसा नहीं कि हमारे नेतृत्वकर्ता इस विषय में हाथ पर हाथ रखकर बैठे हैं, बल्कि वे संघर्ष कर रहे है। हजारों आन्दोलन इस बात का प्रमाण हैं। किन्तु जो आन्दोलन है, वे अभी भी अपर्याप्त है। जब तक गुर्जर या पाटीदार समाज की तरह हम अपनी संगठित शक्ति का परिचय राजनेताओं को नहीं देंगे तब तक हम अपने मूलभूत अधिकारों से वंचित रहगे।


आज मुट्ठीभर गुर्जर, कमरिया, मीणा, समाज का वचर्व देखते ही बनता है। ये सभी समाज संगठित आए और हर क्षेत्र में अपना दबदबा कायम किया। इनके नेताओं ने सैकडों संगठन बनाने के बजाय जा मूल सगठन है, उन्हें ही पोशित किया संगठित किया। हमारे समाज का दुर्भाग्य है, कि हर राज्य में सैकडों राष्टीय संगठन हैं, इस राज्य के लोग उस राज्य के संगठन को नहीं जानते तो उस राज्य के लोग इस राज्य के संगठन के उदेश्य और कार्यों को नहीं जानते हैं। कुछ संगठन अभी चार पांच राज्यों तक पहुंचे हैं और कार्य कर भी रहे हैं, तो उनके आकाओं के प्रति समाज में स्वीकारोत्ति नहीं है। किसी ने समाज के पैसे से मिली जमीन और संसाधनों पर अपना कब्जा कर लिया तो किसी ने समाज और संगठन के बल पर अपना राजनैतिक कद बढा लियाहालांकि जिनका राजनैतिक कद बडा भी तो वह मिथ्या ही है। क्योंकि अब तक वे दूसरे बड़े दलों के नेताओं के आगे पीछे ही दौड रहे है, उनको भले ही यह अभिमान हो कि ये सब उनके नेतृत्व कौशल के कारण मिला तो यह उनकी गलतफहमी है, क्योंकि बडे राजनीतिक दल आपको आश्रय सिर्फ इसलिए दिए हैं, कि आप एक बहुसंख्यक समाज का नेतृत्व कर रहे है, जिस दिन आपको समाज नकार देगा, राजनीतिक दल आपको आपके घर बैठा देंगे। अतः हमारे नेतृत्वकर्ताओं को बहुत सचेत रहकर समय समय पर अपने समाज की शक्ति और सामर्थ्य से इन राजनीतिक दलों को परिचित कराते रहना चाहिए।


मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार ने चुनाव के ठीक पहले समाज को घुमन्तु-अर्धघुमन्तु की लॉलीपॉप थमा दी और हम सब खुश हो गए। किन्तु उसका लाभ समाज को रत्तीभर ना तो मिल पाया और ना ही मिलेगा। वहीं सर्वण समाज के उच्च नेताओं के आव्हान पर तीन राज्यों की तस्वीर बदलने के बाद सपाक्स और नोटा के महान नेताओं के सामर्थ्य को स्वीकार कर केन्द्र सरकार ने तत्काल आरक्षण दे दिया और वह भी आठ लाख आय कमाने वाले गरीबों को। विचार किजिए जो पक्ष विपक्ष का खेल खेलते है, वे इस सवर्ण आरक्षण पर एक शब्द भी नहीं बोले और सभी सरकारों ने एक के बाद एक अपने अपने राज्यों में उसे लागू कर दिया। यह है सामर्थ्य को प्रणाम।


यदि आज भी हमारा समाज नहीं चेता और संगठित होकर एक मंच पर नहीं आया तो आने वाले समाज में हमारे बच्चे अपने कुल की पहचान खो देंगे। आज स्मार्ट सिटी के नाम पर शहरों से पशु पालकों को खदेडा जा रहा है जिनके घरों में डेयरी या पशु हैं, उनके घरों के बाहर लाल रंग का कॉस लगाया जा रहा है, किन्तु उन्ही पशुपालकों को डेयरी विस्थापन के नाम पर ना तो कोई जगह दी जा रही है, ना कोई सुरक्षा या अन्य सुविधा । मजे की बात तो ये है, कि हमारे नेतागण भी मौन है। किन्तु एक बात निश्चित है, कि हमारे समाज का अधिकार इन ग्वालानगरों की योजना में गुर्जर, अहीर, कमरिया समाज उठा ले जाएगा। सवाल यह नहीं कि हम डेयरी के विस्थापन का विरोध कर रहे हैं, सवाल यह है, कि आज छोटे छोटे मुद्दों पर हम एकजुट नही तो आगे समाज के साथ बडी बडी सुनियोजित राजनैतिक, प्रशासनिक शडयंत्रों को मात कैसे देंगे?


यदि आप सबसे पहले अपने अधिकार पाना चाहते है, तो सजग, संगठित और शिक्षित बनें उसके बाद अपने सामर्थ्य को बढ़ाने के लिए प्रयास करें। यदि ऐसा ना किया तो फिर धीरे धीर हम अपने कुल का मान अभिमान और स्वयं का स्वाभिमान सब कुछ खो देंगे।


गिरीश पाल