क्या जोर मारने लगी है, पाकिस्तान की युद्ध-आसक्ति


पाकिस्तान की युद्ध-आसक्ति फिर से जोर मारने लगी है। वहां के प्रधानमंत्री इमरान खान ने पहले संसद में परमाणु युद्ध की धमकी दी और उसके बाद जब भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने डोनाल्ड ट्रंप ने दुनिया भर के संवाददाताओं से कह दिया कि कश्मीर भारत और पाकिस्तान का द्विपक्षीय मामला है, तो वह फिर बौखला उठे। आनन- फानन में राष्ट्र के नाम संदेश में उन्होंने एक बार फिर परमाणु युद्ध की धमकी दोहराते हुए चेतावनी दे डाली कि इसका नतीजा पूरी दुनिया को भुगतना पड़ेगा। वह भारत के साथ समूची दुनिया को धमकाना चाहते हैं। वह यहीं नहीं रुकेगुजरे जुमे को उन्होंने यहां तक कह डाला कि मुस्लिमों पर जुल्म के मामले में संयुक्त राष्ट्र खामोश रहता है। साफ है। कश्मीर के मसले पर उन्हें मुस्लिम मुल्कों से अपेक्षित समर्थन नहीं मिला, अब वह उनकी गैरत को ललकार रहे हैं। इमरान कितनी भी शाब्दिक अकड़ दिखा लें, पर हकीकत में वह कमजोर प्रधानमंत्री हैं। पिछले चुनाव में उनकी पार्टी को पूरा बहुमत नहीं मिला था। संसदीय गणित उनके पक्ष में करने के लिए रावलपिंडी के सैन्य प्रतिष्ठान ने छल-बल के सारे तरीके इस्तेमाल किए थे। यही वजह है कि उन्होंने सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा को तीन साल की सेवा वृद्धि देकर एहसान चुकाया। पाकिस्तान में सेना और शासन की ऐसी जुगलबंदी लंबे समय बाद देखने को मिली है।


पिछले प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और सेना के रिश्तों की धूप-छंव जगजाहिर है। यह गठजोड़ संशय पैदा करता है, क्योंकि पाकिस्तान जन्मजात तौर पर संशयशील मुल्क है। धार्मिक आधार पर मोहम्मद अली जिन्ना देश बनाने में भले कामयाब हो गए हों, मगर यह राष्ट्र खुद को 25 साल भी संगठित नहीं रख पाया। 1971 में बांग्लादेश के अभ्युदय के साथ जिन्ना का सपना भी सदा-सर्वदा के लिए बेमानी हो गया था। वहां के नेता, पत्रकार और तथाकथित विद्वान भले ही मुस्लिम बिरादरान की दुहाई देते रहें, पर यह सच है कि पड़ोसी ईरान और अफगानिस्तान में भी अलगाववादी गतिविधियों के लिए आईएसआई ही जिम्मेदार रही है। पाक सैन्य प्रतिष्ठान ने पड़ोसियों के घर में आग लगाने के लिए जिन लड़ाकों को प्रशिक्षित किया, उन्होंने पाकिस्तान को तमाम नुकसान पहुंचाए। ऐसे तत्वों ने धार्मिक उन्माद फैलाया, तरक्कीपसंद ख्यालों का गला घोटा और खुद इतने शक्तिशाली बन बैठे कि कई बार रावलपिंडी के सैन्य प्रतिष्ठान को भी चुनौती दे डाली।


जनरल परवेज मुशर्रफ ने जब इन्हें उखाड़ने की कोशिश की, तो उन्हें बारूद से उड़ाने का षड्यंत्र रचा गयारावलपिंडी के पास हुए हमले में वह बाल-बाल बचे थेपाकिस्तानी जम्हूरियत के इस दोमुंहेपन ने अंदरूनी तौर पर उसे लगातार खोखला किया है। 1980 के दशक की शुरुआत तक वहां की प्रति व्यक्ति आय भारत से ज्यादा थी, पर पड़ोसियों से छद्म युद्ध लड़ने के प्रयास में उसकी अर्थव्यवस्था लुढ़कती चली गई। भारत की तरह पाकिस्तान में भी नौजवान आबादी ज्यादा है, पर वहां लगभग 45 फीसदी बच्चे किसी भी तरह की औपचारिक शिक्षा से वंचित रह जाते हैं और 33 प्रतिशत से ज्यादा लोग गरीबी रेखा से नीचे बसर करते हैं। यही वजह है कि दहशत का कारोबार चलाने वालों को वा आत्मघाती दस्ते बनाने में किसी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता।