सरकार का नागरिकों के सेहत की चिंता


किसी देश की संपन्नता इस बात से भी आंकी जाती है कि वहां के लोग कितने स्वस्थ और खुशहाल हैं। भारत में स्वास्थ्य स्थितियों को लेकर समय-समय पर होने वाले सर्वेक्षणों में चिंताजनक आंकड़े आते रहते हैं। यहाँ मधुमेह, रक्तचाप जैसी जीवनशैली संबंधी बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं, जो अधिक चिंता की बात है। ऐसे में प्रधानमंत्री का 'फिटनेस इंडिया आंदोलन' स्वास्थ्य के मोर्चे पर सकारात्मक नतीजे देने वाला साबित हो सकता है। पहले कार्यकाल में भी उन्होंने 'फिटनेस चैलेंज' देकर कुछ खिलाड़ियों और अभिनेताओं को उकसाया था, ताकि देश के युवा उससे प्रेरणा लें और अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत हों। योग दिवस के जरिए भी यही जागरूकता पैदा करने का प्रयास किया गया। अब तो अस्पतालों में भी चिकित्सा के साथ-साथ लोगों को योग करने, व्यायाम करने आदि की प्रेरणा दी जाती है। हालांकि सेहत ठीक रहने की प्रेरणा प्राचीन समय से दी जाती रही है। कहावत ही है कि पहला सुख नीरोगी काया। पर जैसे जैसे विकास और जीवन में सुख-सुविधाएं बढ़ती गईं, लोग इसके महत्त्व को भूलते गए या फिर कुछ व्यस्तताओं के चलते अपेक्षित ध्यान नहीं दे पाते। उस परंपरा को जीवित करना, लोगों को अपने स्वास्थ्य के प्रति सावधान करना आज बड़ी जरूरत बन गई है। नागरिकों के स्वास्थ्य का ध्यान रखने का अर्थ सिर्फ यह नहीं होता कि स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाया जाए, स्वास्थ्य सुविधाएं ठीक की जाएं, सर्वसुलभ कराई जाएं। सरकार का काम यह भी है कि वह लोगों को स्वस्थ जीवन जीने की स्थितियां मुहैया कराए, उनमें स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता पैदा करे। आंकड़े बताते हैं कि सरकारें जितना पैसा स्वास्थ्य योजनाओं पर खर्च करती हैं, स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने पर करती हैं, उसमें कमी आ जाए, तो दूसरी योजनाओं पर बेहतर तरीके से खर्च किया जा सकता है। इसलिए दुनिया के तमाम देशों में इस बात पर जोर दिया जा रहा है कि लोगों में जीवनशैली संबंधी बीमारियों के प्रति सतर्कता पैदा की जाए। आंकड़े यह भी बताते हैं कि सरकारों को जितना पैसा गंभीर बीमारियों के इलाज पर नहीं खर्च करना पड़ता उससे कहीं ज्यादा पैसा जीवनशैली संबंधी समस्याओं पर काबू पाने के लिए करना पड़ता है। जीवनशैली संबंधी बीमारियां जैसे रक्तचाप, मधुमेह, अस्थमा, हड्डियों की कमजोरी वगैरह को सामान्य रूप से स्वास्थ्य के प्रति सजग रह कर अपनी दिनचर्या में सुधार लाकर काबू किया जा सकता है। नियमित व्यायाम, योगासन आदि से शरीर में पैदा हुई अनियमितताओं को आसानी से दुरुस्त किया जा सकता है। इस तरह इन बीमारियों पर व्यय होने वाले धन की बचत होगी और उसका उपयोग दूसरी बुनियादी सुविधाओं के मद में किया जा सकता है। विचित्र है कि जिन समस्याओं पर खुद सतर्क रह कर काबू पाया जा सकता है, उनके लिए भी लोग सरकारों का मुंह जोहते रहते हैं। स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं बेहतर न होने, चिकित्सा पर खर्च बढ़ते जाने, दवाओं की कीमतें नियंत्रित न होने आदि की शिकायतें आमतौर पर सुनने को मिल जाती हैं। मगर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि शरीर में अनेक तरह की अनियमितताओं को हम खुद अपनी लापरवाही से पैदा कर लेते हैं, जो बाद में गंभीर बीमारी का कारण बनती हैं।