हिंसक विकृतियां एक महामारी है


अहिंसा की प्रासंगिकता के बीच हिंसा के तरह-तरह के पौधे उग आये हैं। हिंसक विकृतियां एक महामारी है, उसे नकारा नहीं जा सकता। अहिंसक मूल्यों के आधार पर ही मनुष्य उच्चता का अनुभव कर सकता है और मानवीय प्रकाश पा सकता है। क्योंकि अहिंसा का प्रकाश सार्वकालिक, सार्वदेशिक और सार्वजनिक है। इस प्रकाश का जितना व्यापकता से विस्तार होगा, मानव समाज का उतना ही भला होगा, वह सुरक्षित महसूस करेगा एवं जिन्दगी के प्रति धन्यता का अनुभव करेगा। इसके लिये तात्कालिक और बहुकालिक योजनाओं का निर्माण कर उसकी क्रियान्विति से प्रतिबद्ध रहना जरूरी है। क्योंकि देश एवं दुनिया में सब वर्गों के लोग हिंसा से संत्रस्त हैं। कोई भी संत्रास स्थायी नहीं होता, यदि उसे निरस्त करने का उपक्रम चालू रहता है। हिंसक लोगों एवं परिस्थितियों के बीच रहकर जो हिंसा के प्रभाव को निस्तेज कर दें,  वही शासन व्यवस्था एवं व्यक्ति की जीवनशैली अपेक्षित है। जो हिंसक परिस्थितियां एवं विवशताएं व्यक्ति की चेतना को तोड़ती एवं बिखेरती है, उन त्रासद स्थितियों से मनुष्य को अनाहत करना एवं बचाना वर्तमान की सबसे बड़ी चुनौती है। 'अहिंसा सव्व भूय खेमंकरी'-अहिंसा सब प्राणियों के लिए क्षेमंकर है, आरोग्यदायिनी और संरक्षक-संपोषक है। भारत में होने वाले अहिंसक प्रयोगों से सम्पूर्ण मानवता आप्लावित होती रही है और अब उन प्रयोगों की अधिक प्रासंगिकता है। तथागत बुद्ध द्वारा प्रतिपादित अहिंसा का सार है करुणा। गीता के अहिंसा सिद्धांत की फलश्रुति है अनासक्ति। ईसामसीह ने जिस विचार को प्रतिष्ठित किया, वह है प्रेम और मैत्री। इसी प्रकार मुहम्मद साहब के उपदेशों का सार है भाईचारा।
भगवान महावीर ने संयम प्रधान जीवनशैली के विकास हेतु व्रती-समाज का निर्माण किया। उस व्रती समाज ने अनावश्यक और आक्रामक हिंसा का बहिष्कार किया। बुद्ध की करुणा के आधार पर सामाजिक विषमता का उन्मूलन हुआ। जातिवाद की दीवारें भरभरा कर ढह पड़ी। गीता के अनासक्त योग ने निष्काम कर्म की अभिप्रेरणा दी। इसमें आचार-विचारगत पवित्रता की मूल्य-प्रतिष्ठा हुई। ईसा मसीह के प्रेम से आप्लावित सेवा भावना ने मानवीय संबंधों को प्रगाढ़ता प्रदान की। मुहम्मद साहब के भाईचारे ने संगठन को मजबूती दी। संगठित समाज शक्ति संपन्न होता है। महात्मा गांधी ने राजनीति के मंच से अहिंसा की एक ऐसी गूंज पैदा की थी कि अहिंसा की शक्तिशाली ध्वनि तरंगों ने विदेशी शासन और सत्ता के आसन को अपदस्थ कर दिया। उन्होंने सत्याग्रह, सविनय अवज्ञा आंदोलन, स्वदेशी आंदोलन आदि अनेक रूपों में अहिंसा के प्रयोग किए। सशक्त प्रस्तुति एवं अभिव्यक्ति द्वारा विश्व मानव को अहिंसा की शक्ति से परिचित कराया। इंसान की मनःस्थिति को स्वस्थ बनाने के लिये आज अहिंसक जीवनशैली को प्रतिष्ठापित करना जरूरी है। सामाजिक अलगाव और अकेलेपन से जूझ रहे व्यक्ति को हृदयरोग का खतरा सबसे ज्यादा होता है। ठीक उस तरह जिस तरह धूम्रपान करने वाले को होता है। कहा जा सकता है कि अकेलापन धूम्रपान के बराबर घातक है। बढ़ती हिंसक मानसिकता एवं परिस्थितियों के बीच न जिन्दगी सुरक्षित रही, न इंसान का स्वास्थ्य और न जीवन-मूल्यों की विरासत।
वर्तमान के संदर्भ में देखा जाए तो लगता है, महापुरुषों के स्वर कहीं शून्य में खो गए हैं। जीवन के श्रेष्ठ मूल्य व्यवहार के धरातल पर अर्थहीन से हो रहे हैं। तभी विश्व मानव में सामाजिक अलगाव एवं अकेलेपन की त्रासद स्थितियां देखने को मिल रही है। विश्व अणु-परमाणु हथियारों के ढेर पर खड़ा है। दुनिया हिंसा की लपटों से झुलस रही है। अर्थ प्रधान दृष्टिकोण, सुविधावादी मनोवृत्ति, उपभोक्ता संस्कृति, सांप्रदायिक कट्टरता, जातीय विद्वेष आदि हथियारों ने मानवता की काया में न जाने कितने गहरे घाव दिये हैं। क्रूरता के बीज, सामाजिक अलगाव एवं अकेलेपन के दंश इंसान के जीने पर ही प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं।