जीवन का अनूठा उद्देश्य


सबके जीवन का एक अनूठा उद्देश्य होता है। और उस उद्देश्य को ढूंढ़ना तथा उसका अनुसरण करना ही अपने लिए एक खुशहाल, पूर्ण, सार्थक और संतोषप्रद जीवन के निर्माण की कुंजी है।' हालांकि कभी-कभी किन्हीं कारणों से, अनजाने ही हम जीवन के उद्देश्य से दूर हो जाते हैं, भटक जाते हैं। हर व्यक्ति के मन में ऊँचाई पर पहुँचने का आकर्षण है, पर गहराई के बिना ऊँचाई भी वरदान नहीं होकर अभिशाप सिद्ध होती है। धैर्य-संपन्न मनुष्य अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों में संतुलन करता हुआ लक्ष्य की ओर अग्रसर हो सकता है और वही शंकर की तरह विषपान कर समाज को अमृतपान कराता है। जीवन यानि संघर्ष, यानि ताकत, यानि मनोबल। मनोबल से ही व्यक्ति स्वयं को बनाए रख सकता है वरना करोड़ों की भीड़ में अलग पहचान नहीं बन सकती। सभी अपनी-अपनी पहचान के लिए दौड़ रहे हैं, चिल्ला रहे हैं। कोई पैसे से, कोई अपनी सुंदरता से, कोई विद्वता से, कोई व्यवहार से अपनी स्वतंत्र पहचान के लिए प्रयास करते हैं। पर हम कितना भ्रम पालते हैं। पहचान चरित्र के बिना नहीं बनती। बाकी सब अस्थायी है। चरित्र यानी हमारा आन्तरिक व्यक्तित्व- एक पवित्र आभामण्डल, स्थिर एवं शांत चित्त। शांत और स्थिर दिमाग बेहतर काम करता है। हर समय की बेचैनी किसी काम नहीं आती। ना हम वो कर पाते हैं, जो करना चाहते हैं और ना ही वो, जो दूसरे अपेक्षा कर रहे होते हैं। समस्याएं कैसी भी हों, हमारा संतुलित एवं व्यवस्थित ना होना समस्याओं को बढ़ा देता है। लेखक एकहार्ट टोल कहते हैं, 'हमारी भीतरी दुनिया जितनी सुलझी हुई होती है, बाहरी दुनिया उतनी व्यवस्थित होती चली जाती है।'


यह सही है कि शक्ति और सौंदर्य का समुचित योग ही हमारा व्यक्तित्व है। पर शक्ति और सौंदर्य आंतरिक भी होते हैं, बाह्य भी होते हैं। धर्म का काम है आंतरिक व्यक्तित्व का विकास। इसके लिए मस्तिष्क और हृदय को सुंदर बनाना अपेक्षित है। यह सद्विचार और सदाचार के विकास से ही संभव है। इसके लिए आध्यात्मिक चेतना का विकास आवश्यक है। आध्यात्मिक व्यक्ति की आस्थाएं, मान्यताएं, आकांक्षाएं तथा अभिरुचियां धीरे-धीरे परिष्कृत होने लगती हैं। उत्कृष्ट चिंतन और आदर्श कर्तृत्व ही परिष्कृत जीवन पद्धति है। इससे भीतर में संतोष और बाहर सम्मानपूर्ण वातावरण का सृजन होता है। इसी से प्यार की शुरुआत होती है। जहां भी जाएं, प्यार को ले जाना न भूलें। सबसे पहली शुरुआत अपने घर से करें। अपने बच्चों, पत्नी या पति और फिर पड़ोसियों को प्यार दें। संत मदर टेरेसा कहती हैं, 'जो भी आपके पास आए, वह पहले से कुछ बेहतर और खुश होकर लौटे। ईश्वर की करुणा आपके रूप में झलकनी चाहिए। आपका चेहरा, आंखें, मुस्कान और बातचीत सबमें करुणा होनी चाहिए।' जिस प्रकार अहं का पेट बड़ा होता है, उसे रोज़ कुछ न कुछ चाहिए। उसी प्रकार चरित्र को रोज़ संरक्षण चाहिए और यह सब दृढ़ मनोबल से ही प्राप्त किया जा सकता है।