इंदौर में पाल समाज ने सांसद शंकर लालवानी को ज्ञापन सौपा


विमुक्त, घुम्मकड़ एवं अर्द्ध घुम्मकड़ जनजातियों के उत्थान के लिए रेनके एवं इदाते आयोग की महत्वपूर्ण सिफारिश लागू करवाने की मांग


इंदौर 18 दिसंबर, 2019:  श्री पाल क्षत्रिय धनगर समाज, शैक्षेणिक एवं पारमार्थिक न्यास मंडल का प्रतिनिधि मंडल अध्यक्ष मन्नुराम पाल, नवयुवक मंडल अध्यक्ष वरुण पाल, उपाध्यक्ष विष्णुकांत पाल, सचिव ओमप्रकाश पाल, कोषाध्यक्ष हरिनारायण वर्मा के नेतृत्व में सांसद शंकर लालवानी से मिला। समाजजन ने ज्ञापन के माध्यम से मांग करते हुए विमुक्त, घुमंतू एवं अर्द्ध घुमंतू जनजाति के लिए गठित इदाते आयोग व रेनके आयोग की सिफारिशों को जल्द से जल्द लागू करने की बात कही।  मन्नुराम पाल ने बताया कि एकात्म मानववाद और अंत्योदय का दर्शन देने वाले महान विचारक पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का स्वप्न समाज के अंतिम पंक्ति के अंतिम व्यक्ति के कल्याण के साथ आर्थिक एवं सामाजिक रूप से मजबूत भारत की स्थापना का था। केन्द्रनीत सरकार यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में इस दिशा में सफलतापूर्वक कार्य कर रही है। लेकिन अंतिम व्यक्ति के कल्याण के लिए समाज का कल्याण जरूरी है। मोदी जी के नेतृत्व में सामाजिक न्याय को बल मिला है, लेकिन देश की एक बड़ी आबादी आज भी न्याय के लिए तरस रही है।  विगत 31 अगस्त को विमुक्ति दिवस की 67 वी सालगिरह मनाई गयी । विमुक्त जनजातियों द्वारा कार्यक्रम आयोजित कर अंग्रेजो के जुल्म की दास्तां को भुलाकर आजादी पर्व मनाया गया, लेकिन क्या आज भी ये जनजातियां वास्तव में आजाद हुई है ?  या आज भी गुलामों की तरह जीवन जीने को मजबूर है, यह शोध का विषय है। 


1857 में जब अंग्रेजों के खिलाफ पहली क्रांति हुई, तब इन जनजातियों के लोगों ने भी विद्रोह की मशाल थामी। साहसी और लड़ाकू प्रवृत्ति के कारण अंग्रेजों को इन जनजातियों के योद्धाओं से मुकाबला करने में परेशानी का सामना करना पड़ता था। 1857 की क्रांति विफल होने के बाद रानी विक्टोरिया ने शासन की कमान अपने हाथों में ले ली, और दमनकारी नीति अपनाई, जिन जातियों ने क्षमा याचना की, उन्हें माफ कर दिया गया, लेकिन कुछ जनजाति के लोग क्षमा याचना को कायरता समझते थे, उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के सामने झुकने से मना कर दिया। इसलिये 1871 में अंग्रेजों ने भारत की 193 जनजातियों को अपराधी जनजाति का घोषित कर दिया था, इन जातियों में मुख्य रूप से मल्लाह,केवट ,निषाद ,बिन्द ,धीवर ,डलेराकहार , रायसिख ,महातम,बंजारा , बाजीगर ,सिकलीगर , नालबंध , सांसी, भेदकूट ,छड़ा , भांतु , भाट , नट ,पाल ,गडरिया, बघेल ,लोहार , डोम,बावरिया ,राबरी ,गंडीला , गाडियालोहार, जंगमजोगी,नाथ,बंगाली,अहेरिया,बहेलिया नायक,सपेला,सपेरा, पारधी,लोध, गुजर, सिंघिकाट ,कुचबन्ध, गिहार, कंजड आदि सम्मिलित थी. इन जातियों को अनेक प्रतिबंधों में रहना होता था. अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों के खिलाफ स्थानीय स्तर पर इन जनजातियों ने सशस्त्र विद्रोह किये, अंग्रेज इन्हें विद्रोही मानते थे,वास्तव में वे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे, और घुमंतू जनजाति हिंदू संस्कृति की रक्षक, लेकिन आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले इस समुदाय के इतिहास को भूला दिया गया। सरकार आज भी उनके इतिहास और बलिदान को स्वीकारने की स्तिथि में नही दिखाई दे रही।


अध्यक्ष मन्नुराम पाल ने बताया कि आजादी के बाद 1952 में केन्द्र सरकार ने अपराधी के ठप्पे से तो मुक्त कर दिया लेकिन वास्तविक आजादी आज भी नहीं मिल पाई है। पूर्व की केंद्र सरकारों ने इन समाज की बेहतरी के लिये कोई ठोस उपाय नहीं किये, जिसके कारण आज भी ये जनजातियां अभिशप्त जीवन जीने को मजबूर है। 20 करोड़ से ज्यादा आबादी वाले समाज अपने हक के लिए आजादी के 72 साल बाद भी तरस रहे है। इस बड़े जनसमूह का शासन व्यवस्था के तीनों अंगों में अल्पतम प्रतिनिधित्व है। जबकि आज भी देश में इन जातियों के अधिकतर लोग बेघर, बेठिकाना, अशिक्षित, विपन्न, निर्धन होकर शासन के आंकड़ों में दर्ज नहीं हैं। नवयुवक मंडल अध्यक्ष वरुण पाल ने बताया कि तत्कालीन केंद्र सरकार ने विमुक्त जनजातियों की बेहतरी के लिए 2006 में रेनके आयोग का गठन किया, जिसने 2008 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौपी, लेकिन सरकार का यह कदम आयोग तक ही सीमित रह गया, इसके पश्चात मोदीजी के नेतृत्व में 2015 में गठित दादा इदाते आयोग बनाया गया, जिसने देशभर में घूमकर शोध करके विमुक्त जनजातियों के जीवन के पहलुओं को समझने का प्रयास किया उसके आधार पर महत्वपूर्ण रिपोर्ट तैयार की है, और 8 जनवरी 2018 को सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट सौप दी थी। 


सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने आयोग की 20 सूत्री सिफारिशों पर संबंधित 22 मंत्रालयों, आयोगों, विषय के विशेषज्ञों एवं समस्त राज्य सरकारों तथा नीति आयोग से राय मांगी है। दादा इदाते आयोग की रिपोर्ट को पेश किए 2 वर्ष पूर्ण हो जायेगे।लेकिन अभी तक सरकार ने इन जनजातियों के उत्थान के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया। केंद्र सरकार रेनके आयोग व इदाते आयोग की महत्वपूर्ण सिफारिशों को जल्द से जल्द लागू करके विमुक्त समाज को सामाजिक न्याय दिलाने में केंद्र सरकार का ध्यान आकर्षण करेगे, साथ ही जल्द से जल्द सिफारिशों को लागू करवाने का प्रयास करें।   राज्य सरकारें भी आगामी निकाय चुनावों में वार्डो व पंचायतो के आरक्षण में स्थायी प्रतिनिधित्व प्रदान करें, इसके लिए भी केन्द्र सरकार राज्य सरकार को निर्देशित करें। पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के स्वप्न अनुसार मजबूत भारत के निर्माण के लिए विमुक्त समाज को वास्तविक अधिकार प्रदान कर वास्तविक आजादी प्रदान करने का अवसर देंगे, जिससे अंतिम पंक्ति के अंतिम व्यक्ति के कल्याण का नारा चरितार्थ हो सके।