इस दुनिया में हर व्यक्ति दुःखी है और दुखों से परेशान है, असफल होने के डर में जी रहा है। इस परेशानी से मुक्ति भी चाहता है लेकिन प्रयास अधिक दुःखी एवं असफल होने के ही करता है। हर व्यक्ति का ध्यान अपनी सफलताओं पर कम एवं असफलताओं पर अधिक टिका है। सकारात्मक नजरिया बनाने से ही असफलता का धुंध हट सकती है एवं सफलता की धूप खिल सकती है। ये हम पर ही है कि हम चाहें तो बिखर जाएं या पहले से बेहतर बन जाएं। आप बुरी किस्मत कहकर खुद को दिलासा भी दे देते हैं। लेकिन, सच यही है कि यह भाग्य पर नहीं, आप पर निर्भर करता है। आप वही बन जाते हैं, जो आप चुनते हैं। लेखक स्टीफन कोवे कहते हैं, ‘मैं अपने हालात से नहीं, फैसलों से बना हूं।’
वह व्यक्ति बहुत दुःखी है जो पूर्वाग्रह से ग्रस्त है। यह सही है कि हम सबकी एक सामाजिक जिंदगी है। हमें उसे भी जीना होता है। हम एक-दूसरे से मिलते हैं, आपस की कहते-सुनते हैं। हो सकता है कि आप बहुत समझदार हों। लोग आपकी सलाह को तवज्जो देते हों। पर यह जरूरी नहीं कि आप ही सबकुछ हो, आपको ही सारा ज्ञान हो। इस तरह का ‘हम सब जानते हैं’ का भाव चित्त को शांत नहीं होने देता। अहं से अहं टकराते रहते हैं। शक व संदेहों की कड़ियां बढ़ती जाती हैं। जहां जरूरत ठहरने की होती है, हम दौड़ते चले जाते हैं। संभावनाओं का पूरा आकाश हमारे इंतजार में होता है और हम भटकते रह जाते हैं। यह भटकन ही सारे दुःखों, परेशानियों एवं समस्याओं का कारण है।
इस तरह के हठ एवं जड़ कोटि के लोग समझाने पर भी समझ नहीं पाते हैं या समझना नहीं चाहते, जो समझना नहीं चाहता, उसे समझाया नहीं जा सकता। कहावत है कि आप घोड़े को जलाशय तक ले जा सकते हैं, किन्तु उसे पानी पीने के लिए बाध्य नहीं कर सकते। जो यह धार कर बैठा है कि मुझे समझना नहीं है, उन्हें ब्रह्माजी भी आ जाएं तो भी समझना नहीं सकते। रात-दिन कानों के परदों से हजारों शब्द व ध्वनियां गुजरती हंै। हम कुछ पर ही गौर करते हैं। उनमें भी बहुत कम शब्द होते हैं, जो दिल को छू पाते हैं। दरअसल, हमारे सुनने और समझने के बीच एक दूरी होती है। जरूरी नहीं जो सुना, उसे वैसा ही समझ लिया जाए। रूमी तो कहते हैं, ‘जब कान ध्यान से सुनते हैं तो वे आंख बन जाते हैं। पर शब्द अगर दिल के कानों तक नहीं जाते, तो कुछ नहीं घटता।’ इस बात का पता लगाने की कोशिश करें कि आपको अपने जीवन में किन चीजों से शिकायते हैं, क्यों आप मुस्कराते नहीं हैं, क्यों आप दूसरों के करीब जाने से हिचकिचाते हैं और आपको क्यों लगता है कि सिर्फ आप ही सब कुछ जानते हैं और जो आप सोचते हैं, वही अंतिम सत्य है।
जीवन कभी एक-सा नहीं रहता, इसलिए स्थायी सुरक्षा जैसा कोई पल नहीं होता। इसलिए अपने सपनों को पूरा करने के लिए प्रयास कीजिए। आपके जो डर हैं, उनसे मुंह छिपाने के बजाय उनका सामना कीजिए। यह अच्छी बात है कि सकारात्मकता से हमें आगे बढ़ने की ऊर्जा मिलती है, लेकिन यह भी जरूरी नहीं कि हमेशा सब कुछ खूबसूरत, सहज और सकारात्मक ही हो। इसलिए परेशानियों का सामना भी पूरी ऊर्जा के साथ करें। हमेशा खुद को सुरक्षा के घेरे में न बांधें, चुनौतियां जरूरी है सफल जीवन के लिये, इसलिये चुनौतियों से भागे नहीं, उनका सामना करें। आप भी इंसान हैं और आपसे भी गलती हो सकती है, इसका अर्थ यह नहीं कि आप कर्म करना ही छोड़ दे। गलतियों से न घबराएं, उनमें सुधार करते रहें। गलती एक ऐसा अनुभव है, जो आपको अगली बार सही काम करने के लिए प्रेरित करता है।
अहंकार से परेशान लोगों की बहुत बड़ी दुनिया है, जहां दूसरों के अहंकार से परेशान लोग कम हैं और खुद के अहंकार से परेशान ज्यादा। सबसे बड़ी समस्या यह है कि हमें दूसरों का अहं तो दिखता है, लेकिन अपना नहीं। अपने भीतर का अहंकार देखे और अहंकारमुक्त होने का प्रयत्न करें। लेखिका स्पिनेजा कहती हैं, ‘अहंकारी व्यक्ति अपने अच्छे काम की और दूसरों के खराब काम की गिनती ही करता रहता है।’ यह अहंकार ही है जिसके चलते सब चाहते हैं कि उनके आसपास वाले उन्हें सुनें, उनका अनुसरण करें। जैसा वह कह रहे हैं, वैसा ही करें। पर क्या ऐसा हो पाता है? ज्यादातर यही कहते हुए मिलते हैं कि डराए-धमकाए बिना काम ही नहीं होता। नतीजा, कहने और सुनने वाले के बीच एक दूरी ही बनी रहती है और नयी-नयी समस्याएं पैदा करती रहती है। मैनेजमेंट गुरु ब्रायन टेªसी कहते हैं, ‘किसी भी क्षेत्र में प्रबंधन का एक ही अचूक नियम है। दूसरों से उसी तरह काम करवाएं, जिस तरह आप चाहते हैं कि दूसरे आप से काम करवाएं।’
मैनेजमेंट का सिद्धांत है कि कर्मचारी को अधिकारी के संकेत को समझना चाहिए। दूसरे शब्दों में दृष्टांत की भाषा में कहा गया कि कर्मचारी को अपने अधिकारी का महाराणा प्रताप वाला चेतक होना चाहिए। चेतक घोड़े की समझ-बूझ और स्वामीभक्ति प्रसिद्ध है। अगर ऐसे कर्मचारी हों तो कंपनी का बहुत विकास होगा। ऐसे लोगों का जीवन भी सुखी होता है। लेकिन आज यह बात देखने में नहीं आती। यही कारण है कि हर व्यक्ति का अपने काम के प्रति उत्साह कम होता जा रहा है। कितने ही काम ऐसे होते हैं, जो रोज जेहन में आते हैं और उन्हें हम बिना कुछ किए आगे के लिए खिसका देते हैं। हमारे कितने ही सपने और विचार इसी तरह टलते-टलते अतीत बन चुके हैं। और फिर हमें लगता है कि जिंदगी भी खिसकते-खिसकते ही बीत रही है। दरअसल हम जानते ही नहीं कि आखिर हम चाहते क्या हैं? हम जो चाहते हैं और उसे पूरा करने के लिए जो करना है, इस बीच की दूरी को कम करना ही सफलता दिलाता है।
आज की सबसे बड़ी समस्या यह है कि ज्ञान का विकास तो बहुत हो रहा है, किन्तु आग्रह को कम करने की साधना नहीं हो रही है। समस्या यह भी है कि चरित्र का पाठ भी नहीं पढ़ाया जाता। केवल पैसा कमाने का पाठ पढ़ाया जाता है। अब कौन समझाए कि गाली के बदले में गाली देना तो गाली देने वाले की श्रेणी में आना है। सफलता सिर पर जल्दी चढ़ती है और असफलता दिल पर। जीत के नशे में झूमते हुए को हार नहीं दिखती और हारे हुए को जीत की कोई उम्मीद नजर नहीं आती। लेकिन, असली जीत उनकी होती है जो सफलता को सिर नहीं चढ़ने देते और हार को दिल से नहीं लगाते। लेखक क्रिस गार्डनर कहते हैं, ‘समस्याओं को हल नहीं कर पाना ठीक है, पर उनसे भागना, बिल्कुल नहीं।’ हार हो या जीत, हमें अपना सौ प्रतिशत देने पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। यही है सार्थक एवं सफल जीवन का मार्ग, नये जीवन की शुरुआत।
ललित गर्ग