गंगाप्रहरी पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा


पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा जी के जन्मदिन {9 January } पर विशेष लेख : गंगाप्रहरी


आज सुंदरलाल बहुगुणा जी को उनके 93वें जन्मदिवस पर प्रणाम करने के लिए फोन किया तो उनकी धर्म-कर्म पत्नी श्रीमती विमला बहुगुणा जी ने कहा कि बहुगुणा जी कह रहे हैं कि उनके काम को करिए वही उनका आशीर्वाद है। बहुगुणा जी मेरे पर्यावरणीय गुरु रहे हैं। गंगा से मिलन उन्होंने ही कराया था। उन्होने अपना जीवन पर्यावरण के लिए और खासकर गंगा के लिए समर्पित किया। वे आज शारीरिक रूप से अशक्त जरूर हैं, जो कि उनके लंबे उपवास और कठिन जीवन का परिणाम है, मगर उनकी इच्छा शक्ति अपने सम विचारी लोगों में ताकत भरने की रहती ही है।


जिस समय संचार के साधन बहुत ही सीमित होते थे। ऐसे समय में उनका  संघर्ष पूर्व के उत्तर प्रदेश के टिहरी के दूरस्थ इलाके में चालू था। जहां यदा-कदा कोई समाचार लेने वाला पहुंचता था। वहां उनके लंबे उपवास हुए। और आज शारीरिक रूप से अशक्त होने के बावजूद भी गंगा और हिमालय के प्रति अपनी चिंता व्यक्त करते रहते हैं। पिछले वर्ष मातृ सदन के ब्रमचारी आत्मबोधनन्द के उपवास के दौरान भी उन्होंने अपनी वीडियो अपील जारी की थी। हिमालय के प्रति देश दुनिया का ध्यान खींचने में बहुगुणा जी का बड़ा योगदान रहा है। 1956 में गांधी जी की शिष्या सरला बहन के लक्ष्मी कौसानी आश्रम में रहने वाली दुबली पतली छोटी सी विमलाजी ने अपने से बहुत लंबे सुंदरलाल जी को कहा कि राजनैतिक पार्टी का नहीं तुम समाजिक काम करोगे तभी मैं विवाह करूंगी और बहुगुणा जी ने उनकी शर्त मान ली। भूदानी विनोबा भावे जी के कहने पर ये दंपत्ति हिमालय की सेवा करने टिहरी जिले के दूरस्थ गांव चमियाला में लोगों की सेवा करते हुए रहे।


आज के समय में यह बात कल्पना से थोड़ी बाहर है कि एक पति-पत्नी गांव में बच्चों को शिक्षा देते हैं। गांव के कार्यों में मदद करते हैं। गांधी के रचनात्मक काम को आगे बढ़ाते हैं और गांव वालों से मिले अनाज से अपना जीवन बसर करते हैं। बरसो इस तरह जीवन बिताने वाले इस दंपत्ति के दो बेटे और एक बेटी ने भी एक समय तक उनके सामाजिक काम में सहयोग किया।चिपको आंदोलन में उनकी भूमिका को नहीं नकारा जा सकता। चिपको आंदोलन को गांव से अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाने और सरकार को झुकाने में वे सफल रहे। हम चमोली जिले की गौरा देवी या गांव गांव के अन्य महिलाओं पुरुषों की संकल्प शक्ति और कार्य को नहीं नकार सकते। बहुगुणा जी ने पेड़ों की महत्ता, हिमालय के साथ उसके संबंध को बखूबी लोगों के सामने रखा। वह एक साधारण से स्कूल से लेकर अंतरराष्ट्रीय मंचों तक भी कंधे पर पिट्ठू लादकर, जिसमें किताबें और पर्चे हुआ करते थे, तब तक जाते रहे जब तक वे उसका बोझ उठा पाए।


गंगा किनारे अपनी छोटी सी टीन की कुटिया बनाकर वह बरसों तक दुनिया का ध्यान भागीरथी गंगा पर निर्माणाधीन टिहरी बांध से होने वाली पर्यावरणीय और लोगों की समस्याओं पर ध्यान दिलाते रहे। हरिद्वार ऋषिकेश के बड़े-बड़े संत मठाधीशो जो कि गंगा के नाम पर खाते कमाते रहे है तक भी वे अपनी बात पहुंचाते रहे। शिवानंद आश्रम के स्वामी जी के अलावा बाकि तो गंगा ही लील गये। शिवानंद आश्रम हमेशा उनके साथ ही रहा। सत्ता के गलियारों में घूमने से लेकर देश-दुनिया तक हुए गंगा की बातें गंगा के लोगों की बातें पहाड़ की बातें हिमालय की दुर्दशा और आने वाली खतरों के प्रति सचेत करते रहे। उन्होंने 80 के दशक में कहा था कि अगला विश्व युद्ध पानी पर हो सकता है। आज सब सामने है।


पर्यावरण की चिंता रखने वाले आज तमाम लोग जो गंगा कुटी में बहुगुणा जी के पास जाते थे। उनसे जिन्होंने पर्यावरण को सीखा समझा वे आज अपने स्तर पर पर्यावरण की रक्षा के लिए सनद दिखते हैं। मेधा पाटकर दीदी के बारे में उन्होंने ही हमारे जैसे बहुत लोगों को बताया था। 90 के दशक के अंतिम वर्षों में उनका एक लेख छपा था। जिसमें उन्हें बताया था कि एक लड़की सतपुड़ा के जंगलों में घूम रही है। आदिवासी गांवों में घूम रही है। वही लड़की फिर टिहरी भी पहुची। सरकार ने उनको पद्म विभूषण जैसे पुरस्कारों से नवाजा तो सही और उनकी चिंताओं को भी काफी समझा। काफी कुछ किया भी। वे सरकारें आज जैसी तानाशाह सरकारे नहीं थी। 1998 में उनके अंतिम और 74 दिन के लंबे उपवास की समाप्ति के लिए स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप के मना करने के बावजूद तत्कालीन प्रधानमंत्री देवेगौड़ा जी ने कहा था कि मैं राजघाट पर घुटने पानी तक में भी खड़े होकर बहुगुणा जी का उपवास समाप्त कराने के लिए जाऊंगा। बहुगुणा जी टिहरी से दिल्ली एक एंबुलेंस में आए और सुबह 7 बजे राजघाट पर बड़े मीडिया के सामने उन्होंने अपना उपवास समाप्त किया। उनको यह समझ थी कि टिहरी में उपवास समाप्ति करना जंगल में मोर नाचने जैसा था। दिल्ली आकर मीडिया के सामने प्रधानमंत्री जब उपवास समाप्ति करवाते हैं। तो एक बड़ा दबाव बनता है। सरकार की प्रतिबद्धता उसमें आती है। बहुगुणा जी लेखन कार्य भी सतत करते रहे हैं। उस जमाने में अखबार में हाथ से लिख कर दिया जाता था। यू0 एन0 आई0 के वे घुमंतू पत्रकार भी रहे है।


उत्तराखंड आंदोलन में उनकी भूमिका जमीनी मुद्दों को उठाने की थी। मुझे याद है कि उत्तराखंड आंदोलन के नेता बडोनी जी ने जब उनको आंदोलन में अपने  साथ आने को कहा तो बहुगुणा जी ने कहा कि पहले टिहरी बांध का मुद्दा तय कीजिए। बडोनी जी का उत्तर था उत्तराखंड बन जाने दीजिए। हाजिर जवाब बहुगुणा जी का प्रत्युत्तर था कि तब तो आप मंत्री बन अंदर होंगे और संतरी मेरे लिए बाहर होंगे। बांध का मुद्दा विस्थापन का मुद्दा किसी दल ने उत्तराखंड आंदोलन में नहीं स्वीकार किया। नतीजा सामने है कि वह मंत्री बनकर अंदर ही बैठे हैं और हमारे जैसे कार्यकर्ता बाहर संतरियों को झेलते हैं। बहुगुणा जी को बदनाम करने की सरकारी और बांध कंपनियों की बहुत कोशिशें रही। कभी उनके बच्चों को विदेश शिक्षा के लिए बताया गया उत्तराखंड में बहुत प्रचलित चर्चा रहती कि जब इनके पैसे खत्म हो जाते हैं तो उपवास पर बैठ जाते हैं। सीबीआई तो तब भी थी। तमाम जांच एजेंसियां तब भी थी। मगर पैसे पाई का हिसाब रखने वाले, अत्यंत सादगी और सूक्ष्मता से रहने वाले बहुगुणा जी पर कभी कोई जांच बिठाने की हिम्मत सरकारों की नहीं हुई। हां बदनाम करने के लिए तो कोई कुछ भी कह सकता है। मूर्ख ही होंगे जो इस तथ्य को ना समझे।


आज अगर टिहरी बांध के विस्थापितों के पुनर्वास का कोई काम हो पाया है तो उसमें बहुगुणा जी के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। वे जब भी उपवास पर बैठते सरकार पुनर्वास की कुछ नई बातें ला देती थी। देवेगौड़ा जी ने 1996 में उनके अंतिम उपवास के समय भी पुनर्वास और पर्यावरण पर हनुमंथा राव समिति बिठाई। इस समिति की बहुत कम सिफारिशें मानी गई मगर फिर भी इस समिति के कारण कुछ संभव हो पाया। वे सुंदरलाल बहुगुणा ही थे जिनके कारण टिहरी बांध के खिलाफ मुकदमा सर्वाेच्च न्यायालय तक पहुंचा। जिसका फायदा आज भी विस्थापितों को मिल पा रहा है। 1989 में सर्वाेच्च न्यायालय ने टिहरी बांध विरोधी संघर्ष समिति का मुकदमा यह कहकर खारिज कर दिया कि हम तकनीकी विषयों में नहीं जा सकते। गंगा कि सफाई के लिये प्रसिद्ध वकील एम0 सी0 मेहता जी ने तब यह मुकदमा लेने से इनकार कर दिया था। इसके बाद 1992 में उत्तरकाशी भूकंप के बाद जब टिहरी बांध के नींवस्थल पर 12 फीट लंबी दरार पड़ी। हजारों लोग मारे गए। उत्तर भारत पूरा कंाप उठा था। तब बहुगुणा जी अपनी गंगासागर से गंगोत्री की सायकिल यात्रा बीच में छोड़कर उपवास पर बैठे। तब ही पर्यावरण मंत्रालय के पूर्व उप सचिव श्री एन डी जुयाल व प्रो0 शेखर सिंह ने नई परिस्थितियों में टिहरी बांध पर सर्वाेच्च न्यायालय में मुकदमा दायर किया। जिसके वकिल श्री राजीव धवन जी, सुश्री इंदिरा जयसिंह जी व श्री संजय पारिख जी रहे।


मैंने उनके साथ क्या काम किया और कितने वर्ष काम किया? इसकी धन्यता इसमें ही होगी कि उनके दिए गए आज के आशीर्वाद पर जीवन पर्यंत काम कर सकूं।


विमल भाई


माटू जन संगठन, उत्तराखंड