बीमारी के भय पर, भूख भारी


 बंदी का पहला चरण समाप्त होने के बाद किसी ने सोशल मीडिया पर अफवाह फैला दी थी कि मुंबई के बांद्रा स्टेशन से विशेष गाड़ियां चलने वाली हैं, जो घर लौटने के इच्छुक लोगों को ले जाएंगी इससे बड़ी संख्या में लोग बांद्रा स्टेशन पर जमा हो गएइस तरह सुरक्षित दूरी बना कर कोरोना के चक्र को तोड़ने का इरादा बाधित हुआ। इन लोगों को समझाने के लिए प्रशासन को काफी मशक्कत करनी पड़ी। महाराष्ट्र के मख्यमंत्री ने भी समझाने का प्रयास किया कि प्रवासी मजदरों को किसी भी तरह की चिंता करने की जरूरत नहीं है, उनके भोजन आदि की व्यवस्था की जाएगी। प्रशासन ने कुछ राशन सामग्री भी वितरित की, पर इतने से उनमें भरोसा नहीं बन पाया कि बंदी के दौरान उन्हें कोई तकलीफ नहीं होगी। प्रवासी मजदूरों, पटरी पर कारोबार करने वालों, रिक्शा चलाने वालों आदि की समस्याओं से सरकारें भी वाकिफ हैं, उनके भोजन वगैरह की व्यवस्था की जा रही है। जगह-जगह उन्हें ठहरने के केंद्र भी बनाए गए हैं। मगर हकीकत यह है कि सभी तक पर्याप्त भोजन नहीं पहुंचाया जा पा रहा। बहुत सारे लोगों को आधा पेट खाकर या फिर कई दिन भूखे रह कर गुजारा करना पड़ता है। मुफ्त राशन बांटने वाले केंद्रों पर दिन भर लंबी कतारें देखी जाती हैं। काम-धंधा बंद हो गया है और फिर आगे कब शुरू हो पाएगा, निश्चित नहीं है, इसलिए इस तरह खैरात पर कितने दिन गुजारा हो पाएगा, यह भी बड़ा सवाल इन मजदूरों के सामने खड़ा हैइसलिए अपने गांव लौट कर वे सुरक्षित हो जाना चाहते हैं। ऐसे में जब कोई अफवाह फैलती है और उन्हें घर लौटने की उम्मीद नजर आने लगती है, तो माथे पर गठरी, गोद में बच्चे लिए निकल पड़ते हैं अपने घर की दिशा में। बीमारी के भय पर उनकी भूख भारी पड़ रही है, निस्संदेह यह संकट का समय है और जिस तरह रोज कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं, उसमें भीड़भाड़ से इसके फैलने का खतरा अधिक है, इसलिए लोगों से धैर्य पूर्वक सुरक्षित दूरी बनाए रख कर इस संक्रमण के चक्र को तोड़ने में सहयोग अपेक्षित है। पर ऐसा क्यों हो रहा है कि लोगों का धैर्य जवाब दे रहा है और उन्हें भूख से पार पाने में मदद नहीं मिल पा रही है, यह सरकारों को सोचने की जरूरत है। यों कुछ सरकारों ने मनरेगा जैसे कामों, खेती-किसानी आदि में मजदूरों को काम देने की इजाजत दे दी है। पर गांवों से पलायन कर शहरों में जो मजदूर आए थे, उनके सामने समस्या विकट हैउन्हें सरकारों को भरोसा दिलाना पड़ेगा कि वे उनके हित में काम कर रही हैं। यह मौका भी है, जब असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए सरकारें व्यावहारिक नीति बनाएं और उनके मन में भरोसा पैदा करें कि इस संकट के बाद भी उनका भविष्य सुरक्षित रह सकेगा। इसके अलावा इस वक्त अफवाह फैला कर बेवजह अफरा-तफरी पैदा करने वालों को खिलाफ सख्त कदम उठाना बहुत जरूरी है।