जान और जहान के लिए वन धन: शाहपुर की कतकारी जनजाति की कहानी


महाराष्ट्र : एक कुशल नेता के नेतृत्व में कुछ समर्पित लड़कों के एक समूह और सरकारी संगठनों से प्राप्त सक्षमकारी सहायता से क्या-क्या हो सकता है ? जाहिर है, बहुत कुछ।


थाणे में शाहपुर की ‘आदिवासी एकात्मिक सामाजिक संस्था ‘ जो गिलोय और अन्य उत्पादों का विपणन करती है, ने एक बार फिर इसे साबित कर दिया है। गिलोय एक चिकित्सकीय पौधा है, जिसके लिए फार्मास्युटिकल कंपनियों से भारी मांग है। यह यात्रा तब प्रारंभ हुई जब कातकारी समुदाय का एक युवा सुनील पवार और 10-12 लड़कों की उसकी टीम ने अपने मूल स्थान में राजस्व कार्यालयों में कातकारी जनजातियों के विभिन्न कार्यों को सुगम बनाने का कार्य आरंभ किया। गृह मंत्रालय के वर्गीकरण के अनुसार कातकारी 75 विशिष्ट रूप से निर्बल जनजातीय समूहों में से एक है।


कुछ ऐेसे जनजातीय समुदाय हैं जो प्रौद्योगिकी के कृषि-पूर्व स्तर का उपयोग करते हैं, स्थिर या कम हो रही जनसंख्या वृद्धि का सामना करते हैं, उनमें साक्षरता और आजीविका का स्तर अत्यधिक निम्न है। 18 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में ऐसे 75 समूहों की पहचान की गई है और उन्हें विशिष्ट रूप से निर्बल जनजातीय समूहों (पीवीटीजीएस) के रूप में वर्गीकृत किया गया है। युवा सुनील पवार और उसके मित्रों ने गिलोय को स्थानीय बाजारों में बेचने का यह उद्यम आरंभ किया। अरुण पानसरे नामक एक भले और सह्रदय व्यक्ति ने उनके प्रयासों को देखा और उन्हें उनका कार्यालय खोलने के लिए एक स्थान की पेशकश की। जैसे ही उन्होंने बाजार क्षेत्र के निकट स्थित एक कार्यालय से काम करना आरंभ किया, अधिक से अधिक जनजातियों को इसके बारे में जानकारी मिलने लगी और वे उनके साथ जुड़ने लगे।


      इस बीच, सुनील पवार ने महाराष्ट्र सरकार की नोडल एजेंसी-एसटी कल्याण विभाग के सहयोग से भारत सरकार के जनजातीय मामले मंत्रालय के ट्रिफेड द्वारा संचालित प्रधानमंत्री वन धन योजना का एक विज्ञापन देखा। सुनील उनके पास सहायता मांगने पहुंचा, जो उसे तत्काल मिल गई और जल्द ही गिलोय की मांग में तेजी आ गई। आयुर्वेद में गुडूची नाम से विख्यात गिलोय का उपयोग औषधियों में होता है, जिससे विभिन्न प्रकार के बुखारों (वायरल बुखार, मलेरिया आदि) तथा मधुमेह में उपयोग में लाया जाता है। यह अर्क रूप, पाउडर रूप या क्रीम के रूप में उपयोग में लाया जाता है।  पवार कहते हैं, ‘ अपने आपको केवल स्थानीय बाजारों तथा फार्मा कंपनियों तक सीमित न रख कर, हमारी योजना डी-मार्ट जैसे बड़े रिटेल चेनों की सहायता से गिलोय को दूर दराज के बाजारों तक ले जाने की है। हमने एक वेबसाइट भी बनाई है। लॉकडाउन की अवधि के दौरान भी ऑनलाइन बिक्री हो रही है। सरकार हमें पास जारी करने के लिए सामने आ रही है, जिससे कि ऊपज का परिवहन किया जा सके और बिना किसी बाधा के बेचा जा सके। शाहपुर की आदिवासी एकात्मिक सामाजिक संस्था द्वारा किए गए प्रयासों को सुनील द्वारा समन्वित किया गया, जिससे कि न केवल ऊपज के लिए बाजार को विस्तारित किया जा सके बल्कि अन्य वन उत्पादों में भी विविधीकृत किया जा सके। उन्होंने सात प्रकार के समिधा (ज्यादातर लकड़ियों से निर्मित्त बलिदान का चढ़ावा) का संग्रह करना और उन्हें बेचना आरंभ कर दिया है, जिसकी पेशकश पूजा करने के दौरान हवन के लिए की जाती है।


      महाराष्ट्र सरकार के तहत शबरी आदिवासी वित महामंडल के प्रबंध निदेशक नितिन पाटिल ने कहा, ‘ शबरी आदिवासी वित महामंडल की योजना उनकी ऊपज के लिए बैकवार्ड एवं फारवर्ड लिंकेजों की स्थापना करने में इन एसएचजीएस को प्रशिक्षित करने की है। बैकवार्ड लिंकेजों में हम जनजातीयों को प्रशिक्षित करेंगे कि किस प्रकार वे बिना गिलोय की दीर्घकालिक उपलब्धता को प्रभावित किए गिलोय की तुड़ाई करेंगे, जिससे वे अधिक समय तक उपलब्ध रहेंगे। उन्हें इसके पौधरोपण का तरीका भी सिखाया जाएगा। फारवर्ड लिंकेजों में, हम उन्हें विभिन्न उत्पादों के निर्माण में गिलोय को प्रसंस्कृत करने में प्रशिक्षित करेगे जिससे कि उन्हें इसका बेहतर मूल्य प्राप्त हो सके। पाटिल ने बताया कि प्रधान मंत्री वन धन योजना इन एसएचजी को कार्यशील पूंजी उपलब्ध कराती है, जिससे कि उन्हें अपनी ऊपज को हड़बड़ी में न बेचना पड़े। इसके अतिरिक्त, वे जनजातियों को उनकी ऊपज के लिए तत्काल भुगतान भी कर सकते हैं, जिससे इन जनजातियों को नियमित आय पाने में काफी सहायता प्राप्त हो जाती है।