वर्क फ्रॉम होम-संस्कृति का बढ़ता दायरा


देश एवं दुनिया में कोरोना महामारी एवं प्रकोप ने न केवल हमारी जीवनशैली बल्कि कार्यशैली में भी आमूलचूल परिवर्तन कर दिया है। जिन देशों में लॉकडाउन हुआ और तीन-तीन, चार-चार महीनों तक इन स्थितियों को सामना करना पड़ा, उन सभी देशों में वर्क फ्रॉम होम की कार्यशैली को अपनाना पड़ा। कंपनियों को अपने वर्कर के लिये वर्क फ्रॉम होम शुरू करना पड़ा था। शुरू-शुरू में इस वर्क-संस्कृति को अपनाने में कर्मचारियों को काफी सुविधा लगी, लॉकडाउन की स्थिति समाप्त होने के बाद भी यही परम्परा देखने को मिल रही है, ऐसे में अब भी ज्यादातर लोग घर से ही काम कर रहे हैं। हालांकि, अब लोगों को कई तरह की चुनौतियों एवं परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। बावजूद इसके कॉर्पोरेट एक्सपर्ट्स की मानें तो आगे चलकर भी वर्क फ्रॉम होम की संस्कृति का महत्व बढ़ेगा।
वर्क फ्रॉम होम की वर्क-संस्कृति कोरोना महामारी के चलते ही इजाद नहीं हुई है, बल्कि सुदीर्घ काल से इसे अपनाने पर बल दिया जाता रहा है। विशेषतः महिला कर्मचारियों के लिये गर्भावस्था एवं बच्चे की परवरिश को ध्यान में रखते ‘वर्क फ्रॉम होम’ की कार्य-संस्कृति की उपयोगिता पर बहस होती रही है। क्योंकि ऐसी महिलाओं के सामने पहले ऑफिस में पूरे समय चिंता लगी रहती थी- बच्चे ने ठीक से खाया होगा या नहीं, कहीं रो तो नहीं रहा होगा। अब चिंता नहीं है। घर पर कार्य करते हुए वे अपने दूधमुंहे बच्चों को बीच-बीच में संभाल लेती है, इस तरह ऑफिस के लिए भी ज्यादा समय निकल आता है।
एकल परिवारों में कामकाजी महिलाओं के लिए घर व ऑफिस में सामंजस्य बिठाना मुश्किल होता है। अमेरिका में हुए मॉम क्रॉप्स के सर्वे में पता चला कि वर्क फ्रॉम होम की सुविधा मिले, तो वहां 50 फीसदी महिलाएं थोड़े कम पैकेज पर भी काम करने को तैयार रहती हैं। यह बात सिर्फ महिलाओं पर लागू नहीं होती। ‘वर्क फ्रॉम होम’ की कार्य-संस्कृति की चाहत रखने वालों में पुरुषों की संख्या भी महिलाओं के बराबर ही है। असल में ऐसी सुविधा चाहना संबंधित कर्मचारी के पुरुष या स्त्री होने पर नहीं, उसकी पारिवारिक जरूरत और सामाजिक मूल्यों पर निर्भर करता है। यूरोपीय देशों में बच्चा पालने की जिम्मेदारी पिता भी उठाते हैं, इसलिए वहां पुरुष भी फ्लेक्सी टाइमिंग्स या वर्क फ्रॉम होम जैसी सुविधाएं मांगते हैं। भारत में बीमार सास-ससुर और बच्चों की जिम्मेदारी महिलाओं पर ही होती हैं, इसलिए यहां ज्यादातर महिलाएं ही ऐसी सुविधाएं खोजती हैं। भारत की कई कंपनियों ने इस बदलाव को पहचाना है और वे महिलाओं को लचीले वर्क अवसरों की सुविधा देने लगी हैं। इंदौर, दिल्ली, कोलकता, बैंगलोर, मुंबई और हैदराबाद में यह प्रचलन तेजी से फैल रहा है।
 विप्रो, एचपी, टीसीएस जैसी कंपनियों में लाकडाउन में तो शत-प्रतिशत लेकिन सामान्य दिनों में भी लगभग 10 से 15 फीसदी कर्मचारी ऐसी सुविधा ले रहे हैं। आईटी के अलावा यह ट्रेंड कॉपी राइटिंग, क्लाइंट सर्विसिंग, अकाउंट मैनेजमेंट और सिस्टम मैनेजमेंट जैसे क्षेत्रों में भी नजर आता है। कई कंपनियां आधुनिक सुविधाओं से जुड़े आफिस स्पेस और रख-रखाव का खर्च बचाने के लिए भी अपने कर्मचारियों को यह सुविधा देना चाहती है। बीपीओ कारोबार में यह व्यवस्था ज्यादा स्पष्ट रूप लेती रही है, इसमें वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क तकनीक का यूज कर कर्मचारी को कंप्यूटर के जरिए कंपनी के सर्वर से जोड़ दिया जाता है। कम्पनियों को इससे लाभ अधिक है, लेकिन कर्मचारियों के लिये इसके नुकसान भी है। लगातार घर से काम करने पर दिमाग व सेहत पर ज्यादा जोर पड़ता है, जिससे बचना बेहद जरूरी है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि लोगों को घर से काम करने में मानसिक तनाव के साथ शारीरिक कष्ट भी झेलना पड़ रहा है। जहां एम्पलॉयज 8-9 घंटे ऑफिस में काम करके बिताते थे वहीं वर्क फ्रॉम होम के दौरान उन्हें 10 घंटे से ज्यादा काम करना पड़ रहा है। जिसकी वजह से लोगों में चिड़चिड़ापन, उदासी और अनिद्रा जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। साथ ही किसी पर जॉब जाने का खतरा मंडरा रहा है तो कोई घंटों काम करने के लिए मजबूर है।  
वर्क फ्रॉम होम की संस्कृति में कई तरह की परेशानियां आती है, जिसमें से सबसे ज्यादा अहम है काम करते वक्त अपना शरीर का असंतुलित हो जाना। एक ही स्थान पर दिनभर बैठने से मांसपेशियां सख्त हो जाती है और कंधे, गर्दन में भी दर्द होने लगता है। ऐसी अनेक जटिल स्थितियों से बचने के लिये विशेषज्ञों की सलाह है कि कर्मचारी को लगातार घंटों काम करने के बजाय 15 मिनट का ब्रेक बीच-बीच में लेते रहना चाहिए और इस ब्रेक के बीच में मोबाइल फोन व सोशल नेटवर्किंग से दूर रह कर ही रीलेक्स करें। दिमाग को तरो-ताजा करने के लिए 8 से 9 घंटे की भरपूर नींद लें। समय मिले तो सुबह उठकर व्यायाम करके खुद को फिट रखें। काम खत्म होने के बाद अपने परिवार के साथ समय बिताएं और अपने रिश्तेदारों व प्रियजनों से इंटरनेट के द्वारा जुड़ें। इसके साथ ही आप खाली समय में बच्चों के साथ मनोरंजन व खेल भी खेलें।
वर्क फ्रॉम होम की कार्य-संस्कृति भारत में पांव पसार रही है। हर कोई अपनी मर्जी का मालिक बनना चाहता है एवं घर बैठे पैसे कमाना चाहता है। करीब दो करोड़ शहरी भारतीय यही सपना देखते हैं। यह बात फ्रीलांसर इनकम्स अराउंड द वल्र्ड रिपोर्ट 2018 के मुताबिक सामने आई है। इस तरह के लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। ये स्वरोजगार करने वाले लोग हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था को इनसे बल मिल रहा है। इससे अतिरिक्त इनकम होती है। अपनी सहूलियत के अनुसार काम करने के घंटे चुनने का मौका मिलता है। हर दिन तैयार होकर ऑफिस जाने एवं महानगरों की यातायात की जद्दोजहद से मुक्ति मिल जाती है।
कोरोना वायरस महामारी के कारण वर्क फ्रॉम होम जॉब्स की मांग में काफी इजाफा हुआ है। ऑनलाइन करियर प्लेटफॉर्म जॉब्स फॉर हर की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मार्च 2019 की तुलना में मार्च 2020 में 30 प्रतिशत ज्यादा वर्क फ्राम होम जॉब्स पोस्ट की गई। कई महिलाओं ने इस महामारी एवं लॉकडाउन के दौरान ऑनलाइन जॉब्स के जरिए अपने करियर को स्थापित किया है। सोशल मीडिया मार्केटिंग के जरिए  ब्रांड को मजबूत करने, बिक्री के बढ़ाने और वेबसाइट पर ट्रैफिक लाने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का उपयोग कर सकते है । यदि आप डिजिटल मार्केटिंग में रुचि रखते हैं, तो यह आपके लिए एक अच्छा विकल्प होगा।
वर्क फ्रॉम होम की संस्कृति की सफलता के लिये जरूरी है टाइम मैंनेजमंट। ऑफिस का एक फिक्स शिड्यूल होता है, इसी तरह वर्क फ्रॉम होम के लिए भी एक प्रॉपर शिड्यूल बनाएं। ऑफिस वर्क, घर के काम को मैनेज करने के लिए प्लानिंग करनी होगी। वर्क फ्रॉम होम में पारिवारिक सदस्यों का सपोर्ट जरूरी है। इसलिए अपने परिवार एवं बच्चों को अपने कामकाजी घंटों के बारे में जानकारी जरूर दें और कब आप फ्री होंगे। घरवाले लगातार आपसे अटेंशन मांगते हैं, पर काम के साथ उनपर ध्यान देना संभव नहीं होता। ज्यादातर घरों में ऑफिस का काम करने के लिए कोई प्रॉपर सीट नहीं होती। विश्व स्तर पर हुई शोधों से यह तथ्य भी सामने आये हैं कि कर्मचारी घर और दफ्तर, दोनों की जिम्मेदारियां निभाते-निभाते थक चुके है उनका एनर्जी लेवल जीरो हो गया है। घर बैठकर जीवनयापन के लिए काम करनेवाले अपने परिवार और ऑफिस की मांगों में तालमेल नहीं बिठा पाते हैं। एक ही वक्त में दो जगह होने की कोशिश बेहद थकाऊ होती है और इससे काम की गुणवत्ता पर असर पड़ता है।
वर्क फ्रॉम होम चाहनेवालों के लिए यह सुविधाजनक है, वही कंपनियों के लिए लाभदायक होने पर भी सिरदर्द बनी रहती है। उन्हें इस बात की चिंता लगी रहती है कि घर से काम करनेवाले क्या पूरी तरह से लॉयल बने रहेंगे? कहीं वे कंपनी के कॉन्फिडेंशियल डेटा तो नहीं लीक कर देंगे ? ऐसे कर्मचारियों पर समय की पाबंदी और अनुशासन बनाए रखना एक अलग चुनौती है। लेकिन सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे काम छोड़कर भागने वाले कर्मचारियों की रफ्तार कम हुई है। वर्क फ्रॉम होम की संस्कृति भारत में तेजी से स्थापित होगी और इससे कार्यशैली का एक नया स्वरूप सामने आयेगा।
ललित गर्ग