नई दिल्ली : रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) नेअपना 63 वां स्थापना दिवस मनाया । रक्षा अनुसंधान एवं विकास विभाग के सचिव एवं डीआरडीओ के अध्यक्ष डॉक्टर जी सतीश रेड्डी ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात की एवं उन्हें आकाश मिसाइल प्रणाली का एक नमूना भेंट किया । इस नमूने को हाल ही में निर्यात करने की अनुमति प्रदान की गई है । इस अवसर पर रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन के अध्यक्ष ने डीआरडीओ मुख्यालय में महानिदेशकों एवं निदेशकों के साथ डीआरडीओ भवन स्थित डॉक्टर ए पी जे अब्दुल कलाम की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की ।
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की स्थापना रक्षा क्षेत्र में शोध को बढ़ावा देने के लिये मात्र 10 प्रयोगशालाओं के साथ 1958 में की गई थी एवं इसको भारतीय सशस्त्र बलों के लिये आधुनिकतम प्रौद्योगिकियों को तैयार कर उनका विकास करने का लक्ष्य सौंपा गया था । आज रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) सैन्य क्षेत्र में अनेक आधुनिक तकनीकों का निर्माण करने में लगा हुआ है जिनमें एयरोनॉटिक्स, आर्मामेंट्स, युद्धक वाहन, इलेक्ट्रॉनिक्स, इंस्ट्र्मेंटेशन, इंजीनियरिंग प्रणालियां, मिसाइलें, साज़ो सामान, नौसेना प्रणालियां, एड्वांस कम्प्यूटिंग, सिम्युलेशन, साइबर, जीवन विज्ञान एवं रक्षा क्षेत्र की अन्य प्रौद्योगिकियां सम्मिलित हैं ।
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) में उपस्थित संगठन से जुड़े समुदाय को संबोधित करते हुए डीआरडीओ के अध्यक्ष ने संगठन के कर्मचारियों एवं उनके परिजनों को हृदय की गहराईयों से शुभकामनाएं दी । उन्होंने कहा कि एक घटनाप्रद वर्ष की समाप्ति हुई है एवं एक नया साल आरंभ होने जा रहा है, उन्होंने वैज्ञानिकों से नवीन प्रयोग कर देश के लिये सृजन करने के लिये कहा । उन्होंने कहा कि रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के प्रयासों से भारत को रक्षा क्षेत्र में अपने पैरों पर खड़ा होने में अभूतपूर्व सफलता मिली है,यथा डीआरडीओ ने आत्मनिर्भर भारत की दिशा में योगदान दिया है ।
उन्होंने 2021 के लिये निर्यात को एक थीम बनाया एवं कहा कि रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की तकनीकों पर आधारित अनेक उत्पाद रक्षा क्षेत्र में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों तथा उद्योगों द्वारा निर्यात किये जा चुके हैं । डीआरडीओ भारतीय सशस्त्र बलों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये रक्षा क्षेत्र की मूलभूत तकनीकों एवं उत्पादों का विकास करता है ।
उन्होंने कहा कि 2020 में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने अनेक उपलब्धियां हासिल की जैसे आईएनएस विक्रमादित्य पर लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एलसीए) की लैंडिंग, हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डेमोन्स्ट्रेशन व्हीकल (एचएसटीडीवी) का परीक्षण, क्वांटम तकनीक के क्षेत्र में क्वांटम की डिस्ट्रीब्यूशन (क्यूकेडी) एवं क्यूआरएनजी उपलब्धियां, लेज़र गाइडेड एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल (एटीजीएम), सुपरसोनिक मिसाइल असिस्टेड रिलीज़ ऑफ टॉरपीडो (स्मार्ट), एंटी रेडिएशन मिसाइल (एनजीएआरएम), पिनाका रॉकेट सिस्टम का उन्नत स्वरूप, क्विक रिएक्शन सरफेस टू एयर मिसाइल (क्यूआर-सैम), एमआर-सैम का परीक्षण, 5.56x 30 एमएम ज्वाइंट वेंचर प्रोटेक्टिव कार्बाइन (जेवीपीसी) तथा अन्य उपलब्धियां ।
उन्होंने कोविड महामारी के दौरान रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के योगदान को चिह्नांकित किया एवं कहा कि संगठन की 40 प्रयोगशालाओं ने भारत में कोविड19 महामारी से लड़ने के लिये युद्ध स्तर पर 50 प्रकार की प्रौद्योगिकियों तथा 100 उत्पादों का विकास किया । इनमें पीपीई किट, सैनिटाइज़र्स, मास्क, यूवी आधारित विसंक्रमीकरण प्रणालियां, जर्मी क्लीन एवं वेंटीलेटर के महत्वपूर्ण भाग, जिनसे बहुत कम समय में देश में वेंटीलेटर निर्माणका मार्ग प्रशस्त हो पाया, शामिल हैं । उन्होंने आगे कहा कि रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने चिकित्सा संबंधी आधारभूत ढांचे को मज़बूती देने के लिये रिकॉर्ड समय में दिल्ली, पटना एवं मुज़फ्फरपुर में तीन समर्पित कोविड अस्पतालों का निर्माण किया । इसके अतिरिक्त कोविड19 की स्क्रीनिंग में तेज़ी लाने तथा विभिन्न स्थानों पर कोविड परीक्षण की क्षमताओं को बेहतर बनाने के लिये मोबाइल वायरोलोजी रिसर्च एंड डायग्नोस्टिक लैबोरेट्री (एमवीआरडीएल) की स्थापना की गई ।
उन्होंने कहा कि विकास संबंधी कामकाज हेतु क्षमता में बढ़ोतरी करने तथा विभिन्न हिस्सेदारों में परस्पर संपर्क की प्रक्रिया को आसान बनाने के लिये नई नीतियों एवं प्रक्रियाओं की शुरुआत की गई । रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने रक्षा प्रणालियों के विकास हेतु तकनीक संबंधी चुनौतियों का सामना करने के लिये अपना आधार मज़बूत करने हेतु बड़े कदम उठाए हैं एवं संगठन रक्षा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में श्रेष्ठता की प्राप्ति तथा न्यूनतम समय में रक्षा प्रणालियों का विकास करने हेतु प्रयास करता रहेगा ।
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के वैज्ञानिकों एवं अन्य कार्मिकों, जिन्होंने सशस्त्र बलों के साथ करीबी समन्वय के साथ कार्य किया है, को बधाई देते हुए उन्होंने उनके लिये अनेक लक्ष्य तय कर दिए । उन्होंने डीआरडीओ की फ्लैगशिप परियोजनाओं- जैसे हाइपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल, एडवांस मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एएमसीए), नई पीढ़ी का एमबीटी, चालकरहित कॉम्बैट एरियल व्हीकल, उन्नत एईडबल्यू एंड सीएस, एलसीए एमके II एवं कई हथियार प्रणालियोंका उल्लेख किया । अपने संबोधन में उन्होंने डीआरडीओ के वैज्ञानिकों से साइबर सुरक्षा, अंतरिक्ष एवं कृत्रिम बुद्धिमता समेत अगली पीढ़ी की आवश्यकताओं पर ध्यान देने के लिये कहा । रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन में उपलब्ध विशाल क्षमता रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में सक्रिय उद्योगों के विकास में उत्प्रेरक साबित हुई है ।
उन्होंने रक्षा क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिये अकादमिक संस्थाओं, अनुसंधान एवं विकास संगठनों एवं उद्योगों से अत्याधुनिक एवं भविष्य में इस्तेमाल होने वाली तकनीकों पर साथ मिल कर कार्य करने की आवश्यकता को चिह्नांकित किया । उन्होंने कहा किअनेक छोटे एवं मझौले (एसएमई) तथा सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उपक्रम (एमएसएमई) रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की अनेक परियोजनाओं हेतु उप-प्रणालियों के लिये पुर्जों की आपूर्ति कर रहे हैं एवं यह डीआरडीओ द्वारा पोषित है । अब वह सभी नवीन घटनाओं में साझेदार हैं । उन्होंने कहा कि डीआरडीओ ने स्टार्टअप्स के लिये “डेयर टू ड्रीम” प्रतिस्पर्धा का संचालन किया था एवं इसका काफी उत्साहजनक परिणाम सामने आया । उन्होंने आगे कहा कि हमारे सैन्य बलों के लिये नवीन उत्पादों का विकास करने के लिये प्रति वर्ष कम से कम 30 स्टार्टअप्स को सहारा दिया जाना चाहिये ।
उन्होंने कहा कि रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) को उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय समुदाय से दीर्घकालिक संबंध सुदृढ़ करने के लिये प्रयास करने चाहिये एवं देश में मौजूद इस समुदाय के अनुभव का लाभ उठाना चाहिये तथा उनके साथ तालमेल बढ़ाना चाहिये । डीआरडीओ को एप्लाइड शोध तथा अंतर्राष्ट्रीयशोध के क्षेत्र में ध्यान देना चाहिये एवं तत्पश्चात एप्लाइड शोध के क्षेत्र में ऐसे प्रतिमान तैयार करने चाहिये । उन्होंने आगे कहा कि उद्योग इन प्रौद्योगिकियों को अंगीकार करने की स्थिति में होने चाहिये एवं इसके लिये आवश्यक आधारभूत संरचना होनी चाहिये तथा लंबे समय तक बने रहने वाली गुणवत्ता के साथ इनको बाज़ार में भेजना चाहिये ।
उन्होंने शीघ्र अधिष्ठापन के लिये दस्तावेज़ीकरण एवं उत्पादन बढ़ाने पर ज़ोर देने की आवश्यकता को रेखांकित किया एवं कहा कि उद्योगों को सक्षम बनाने व रक्षा अनुसंधान एवं विकास के क्षेत्र में युवाओं का सशक्तिकरण करने के लिये डीआरडीओ अनेक कदम उठा रहा है । रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के अध्यक्ष ने विक्रेताओं का पंजीकरण करने के लिये एक ऑनलाइन इण्डस्ट्री पार्टनर रजिस्ट्रेशन मॉड्यूल भी शुरू किया । उन्होंने “इश्यूज़ ऑन डेवलपमेंट ऑफ कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी यूज़िंग ऑर्बिटिंग सैटेलाइट्स” एवं एनवायरनमेंटल सेफ्टी मैनुअल एंड गाइडलाइंस फॉर डिस्पोज़ल ऑफ लाइफ एक्सपायर्ड केमिकल्स एंड गेसेज़ एट डीआरडीओ लैबोरेट्रीज़ पर डीआरडीओ का मोनोग्राफ भी जारी किया ।